मुसाफिर
Monday, July 4, 2022
क्या अहल ऐ जहाँ तुझको सितमगर नही कहते....
Sunday, October 24, 2021
भेड़िये
Saturday, August 28, 2021
मेरे बचपन का स्वतंत्रता दिवस 🇮🇳🇮🇳
गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त
Sunday, September 1, 2019
खुशनसीब है जिन्हे टिकटोक और पब जी के ज़माने में जवानी जीने का मौका मिल रहा है
क्यूंकि हम सब एक सांचे में फिट हो गए है, हमें पढ़ने से ज्यादा देखना पसंद है , सोचने से ज्यादा मुस्कुराना पसंद है। खैर सोशल मीडिया पर अपनी फ्री की 1.5 GB में से #aveKashmir लिखकर अपना फ़र्ज़ पूरा करने वाली पीढ़ी खुशनसीब है जिन्हे टिकटोक और पब जी के ज़माने में जवानी जीने का मौका मिल रहा है इसके लिए हम सभी को बधाई।
क्या आप पता है की ......
१-अर्जेंटीना और भारत की अर्थव्यवस्था की तुलना क्यों की जा रही है?
२- मदन मल्लिक कौन है?
३- मौहम्मद अलीम सैय्यद कौन है ?
४ - अगर आप उपरोक्त सवालों के जवाब नहीं जानतें तो मुबारक हो आप सच्चे देशभक्त भारतीय हो।
पिछले दिनों हम सबने सुना है कि भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक लाख 76 हज़ार करोड़ भारत सरकार को देने का फैसला किया है जिसपर हम सबने नोटबंदी की तरह ही बड़े मज़ेदार जोक्स भी शेयर किये है। ख़ैर तो मैं ऊपर पूछे गए सवालो की बात करता हूँ।
१ - दरअसल, अर्जेंटीना की सरकार ने अपने सेंट्रल बैंक को फंड देने के लिए मजबूर किया था.
ये साल 2010 की बात है. अर्जेंटीना की सरकार ने सेंट्रल बैंक के तत्कालीन चीफ़ को बाहर कर बैंक के रिज़र्व फंड का इस्तेमाल अपना क़र्ज़ चुकाने के लिए किया था.
अब भारत सरकार के रिज़र्व बैंक से फ़ंड लेने की तुलना अर्जेंटीना के अपने सेंट्रल बैंक से फंड लेने से की जा रही है.
अर्जेंटीना लातिन अमरीका की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन आज अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था बेहद ख़राब दौर में है। विश्लेषक मानते हैं कि अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था के पटरी से उतरने की शुरुआत तब ही हो गई थी जब सेंट्रल बैंक से ज़बर्दस्ती पैसा लिया गया था। भारत और अर्जेंटीना के घटनाक्रम में फ़र्क ये है कि अर्जेंटीना की सरकार ने आदेश पारित कर सेंट्रल बैंक से पैसा लिया जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने विमल जालान समिति की सिफ़ारिश पर सरकार को पैसा दिया। अब अर्जेंटीना लगातार जटिल हो रहे आर्थिक संकट में फंस गया है जिससे बाहर निकलने का रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने देश के दीवालिया होने का अंदेशा ज़ाहिर कर दिया है।
भारतीय रुपया डॉलर के मुक़ाबले लगातार टूट रहा है. बेरोज़गारी दर बीते 45 सालों में सर्वोच्च स्तर पर है. जीडीपी की दर सात सालों में सबसे कम होकर सिर्फ़ पांच प्रतिशत रह गई है. अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत स्पष्ट नज़र आ रहे हैं। सरकार के सहयोगी ही इन दावों पर सवाल उठा रहे हैं.
Saturday, December 29, 2018
दुःख और ख़ुशी
दुःख और ख़ुशी
सब कहते है खुश रहा करो, अपने मन मस्तिष्क को सकारात्मक विचारों से भरो।
करो ख़ुद ही मंथन दुःख का खुशी का, जो इनसे पार पा गया अमर हो गया जीवन उसी का है।
किया मैंने गहन आत्ममंथन, सोचा जीवन में दुःख और ख़ुशी का क्या है बन्धन?
पहला प्रश्न जो मैंने खुद से किया, ख़ुशी है क्या?
सकुचाये से मन ने यह लंबा सा उत्तर दिया।
खुशी है दुःखों की दवा या गम की आँधी में कहीं से आया
रंगीन दुपट्टा जो किसी की उतरन है।
या वो किलकारी जो नौ महीने बाद माँ के
कानों में पड़ती है और क्षण भर में 'लड़की
है' जैसे शब्दों में फिर से दफ़न हो जाती है।
या वो प्रेम जो अपनी सीमाओं को लांघ कर
अस्पताल के पीछे नाले में बह जाता है।
या वो सम्मान जो ताबूतों में बंद कर दिया जाता है,
जात-पात के ताले लगाकर।
या वो चमक जो पिचके हुए जर्जर शरीर के सहारे, बेजान आँखों से,
टकटकी लगायें शीशे की दीवार के उस पार रखी रोटी को तकते हुए आंखों में आ जाती है।
या दुल्हन के जोड़े में सजी बेटी की झोली में भरे अरमान,
या उसी दुल्हन को दहेज के लोभ में आग लगाने वालों की
लालच भरी सोच जिसमें भरा है निर्दोष सिद्ध होने का सन्तोष।
इससे आगे मेरा मन उखड़ गया गुस्से से बोला, इसके अलावा कोई और प्रश्न हो तो बोलो, मुझकों ख़ुद के विचारों की तराजू में मत तोलो।
अच्छा दुःख क्या है? बस इतना और बता दो,
तुम ज्ञानी हो तो बिना रुके इसका भी उत्तर दो?
मन ने मुझकों अजीब सी नज़रो से देखा,
नादान!
दुःख और खुशी के बीच है बस एक महीन रेखा।
और बोला दुःख है...
वृद्धाश्रम में लेटी हुई उस माँ की प्रसव पीड़ा जिसकी साँसों की डोर अटकी है किसी अपने के आने की झूठी आस में ।
या सड़कों पर इंसानी भेड़ियों के पंजों में तड़पती किसी निर्भया की चीख,
या मारो-मारो के शोर के साथ अपने हाथों से इंसाफ करती कथित भीड़,
या अन्नदाता का अन्न के लिए तडपकर मर जाना।
या सत्ता के घमंड में जनता की त्राहि-त्राहि पर ठहाके लगाना।
या सीमा पर राष्ट्र की रक्षा करते-करते ठंड से सिकुड जाना।
या इंजीनियर की डिग्री लेकर चपरासी की जॉब के लिए लाइन में लग जाना।
और भी कई रंग है दुःख और खुशी के इस दुनिया में, पर बहुत मुश्किल है सब को एक साथ कह पाना।
इतना कहकर मन मौन हो गया, मेरे विचारों में जैसे कहीं वो खो गया।
और मैं आज भी अटका हूँ उस महीन सी रेखा के सहारे,
जिसे लांघकर जीवन, दुखों को खुशी के पार उतारे।