Tuesday, August 22, 2017

"अगर तुम मर ही जाते तो कम से कम ये शुकून तो रहता कि कोई करने वाला नही भीख ही मांग लेते । पर तेरे होते हुए तो कोई भीख भी नही देता। कहते है कि इसका तो हट्टा कट्टा शौहर जिन्दा है। इन बच्चो को संभालूँ , लोगो के घरो में बर्तन मांजू  ? या जिन से उधार लिया है उनकी की गालियाँ और गन्दी नज़र बर्दास्त करूँ।" हमेशा की तरह वो रो पीट रही थी। और उसका शौहर आराम से बीड़ी फूंक रहा था। उस पर बीवी की बातो का कोई असर ही नही हो रहा था। या शायद अब उसे ऐसे ताने सुनने की आदत थी। "अरे. . . . . . . जब बेटा........ इतना........ निकम्मा, नकारा था तो इसकी शादी क्यों की. . . . . . . . क्या शौंक चढ़ा था ऐसे निठल्ले के सर पर सेहरा सजाने का।" राशिद पर अपनी बातो का असर होता न देख अब रुखसाना ने दांत भींच -२ कर सास की तरफ गोले दागने शुरू कर दिए। पर उसकी सास ताहिरा बेगम एक नेक और समझदार खातून थी हमेशा की तरह शर्म से गर्दन झुका कर चुप रही। ( जो की सास बहू के मसले में एक अजीब बात है। )

पूरा घर राशिद के निकम्मेपन और आवारागर्दी से परेशान था। बूढ़ा बाप दिन रात बिजली के कारखाने में काम करता और जवान बेटा सड़को पर आवारागर्दी। छोटा परिवार था।  इसलिए दो वक़्त की रोटी नसीब हो रही थी, वरना ऐसे महंगाई के जमाने में कहाँ गुजारा होता है। दो बहन-भाई और माँ-बाप बस चार लोग थे परिवार में। जमील मियां ने काफी कोशिश की बेटा कुछ पढ़ लिख जाये। पर अकेला होने की वज़ह से घर पर मिले ज्यादा लाड प्यार और उसकी आवारा सोहबत ने उसे कहीं का नही छोड़ा। घर से स्कूल का कहकर निकलता और सारा दिन आवारा दोस्तों के साथ मटरगस्ती करता, यहाँ-वहाँ घूमता। बाप सारा दिन ड्यूटी पर रहता डर किसी का था नही, इसीलिए दिन पर दिन बिगड़ता चला गया। गली मोहल्ले से रोज़ शिकायते आने लगी कभी किसी के साथ मारपीट और कभी किसी के साथ गाली गलोच। रोज़ रोज़ की शिकायतों से तंग आकर जब बाप ने डांट पिलाई कि "राशिद देख या तो ये आवारागर्दी छोड़ दे वरना कहीं का नही छोड़ेगी ये तुझे। पढाई पर ध्यान लगा " तो तिडक कर बोला।  "मुझे...... नही पढ़ना  है। मुझे पढाई समझ नही आती... । मुझे काम...  करना है "
"बेटा पढ़ लिख जायेगा तो तेरे ही काम आएगा। और आजकल तो हर काम में पढाई की जरूरत पड़ती है "
माँ ने भी प्यार से समझाया। पर पत्थर दिमाग पर जोंक न लगी। थक हार कर जुम्मन चाचा की फर्नीचर की दुकान पर ये सोच कर छोड़ दिया के पढ़ा नही है। कम से कम हाथ का दस्तकार ही हो जायेगा तो जिंदगी में भूखा नही मरेगा।

पर आवारा तबियत राशिद यहाँ भी नही टिक सका। दो तीन महीने काम करके जुम्मन चाचा को भी टाटा बाय-बाय कर दिया। बूढ़े बाप ने जैसे तैसे करके बेटी के तो हाथ पीले कर दिए। पर नालायक बेटे को लाइन पर न ला सके। आस-पडोस, यार-रिश्तेदार सब ने ये ही सलाह दी। कि  शादी कर दो खूंटे से बंधेगा तो खुद-बर-खुद लाइन पर आ जायेगा। बूढ़े कंधो ने सोचा, ठीक है शादी तो करनी ही है। हो सकता है के दुल्हन का मुंह देख कर ही कुछ अक्ल आ जाये। और इस तरह रुखसाना दुल्हन बनकर इस आवारा के पल्ले बंध गयी।

नयी दुल्हन घर में आई तो खर्चे भी बढ़ गए। कुछ दिनों तक तो सब ठीक चला । पर बूढी कमाई,जवान बहू के खर्चे कहाँ तक बर्दास्त करती। बहू के ताने सास के कानो तक जाने लगे। घर के बिगड़ते हालात को देखकर माँ ने बेटे को खूब समझाया  "देख अब कुछ काम धंधा शुरू कर दे। मजदूरी ही करने लग,बहू भी आ गई है कब तक तेरे अब्बू अकेले पूरे घर का खर्च उठाते रहेंगे। अब बहुत हुआ संभल जा बेटा ।"  पता नही माँ की नसीहत का असर था या बीवी के खर्चो का ,अक्ल में कुछ बात आई और मजदूरी करने लगा। पर वो कहावत है ना कि चोर चोरी छोड़ देता है पर हेरा-फेरी नही छोड़ता। राशिद पर एक दम सही बैठती है। अब काम तो करता पर अगर दो दिन काम करता तो तीन दिन पड़कर खाता। ऊपर से हर साल बढ़ते परिवार से हालात और ख़राब हो गए। बहू हर वक़त सास को ताने देती। पर ताहिरा बेगम अपनी किस्मत समझ कर चुप रहती। वैसे भी माँ बाप जन्म के साथी होते है कर्म के नही। समझा-समझा कर थक गए। पर राशिद पर कोई फर्क नही पड़ता।

जब तक बाप का साया सर पर था। घर की गाडी किसी तरह चलती रही, पर उनके इंतकाल के बाद हालात बद से बत्तर होते गए। कभी कभी तो फाको की नौबत आजाती। रोज़ रोज़ के झगडे बढ़ने लगे। रुखसाना सास को कोसती, मायके जाने की धमकी देती। इधर बेटा अपने निकम्मेपन से बाज नही आता और इन दोनों के बीच में बूढी ताहिरा बेगम घुन की तरह पिस रही थी। ऊपर से भूखे पोता-पोती, अपनी भूख तो कैसे भी दबा लेती। पर दादी पर छोटे छोटे बच्चो का तड़पना नही देखा जाता। सच ही कहा किसी ने कि मूल से ज्यादा सूद प्यारा हो जाता है। इसीलिए ताहिरा बेगम ने बच्चो की भूख मिटाने के लिए आस-पड़ोस से काफी क़र्ज़ ले लिया था। जो वक़्त पर चुका न सकी और कर्ज़े वाले अब रोज़ आकर खरी खोटी सुना देते। बूढी आँखे शर्म से गर्दन झुकाकर उनसे ना जाने किस उम्मीद पर कल परसो के वादे कर लेती। और हर बार वादा खिलाफी पर नयी ज़लालत और नए वादे । पर नालायक बेटे पर कोई फ़र्क़ नही पड़ा।

और फिर अचानक सब कुछ बदल गया। घर के आँगन में हमेशा ठंडा पड़ा रहने वाला चूल्हा आग से दहकने लगा। पहले हर वक्त भूख से रोने बिलखने वाले बच्चे अब अपनी मस्ती में खेलने लगे। रुखसाना के चीखने चिल्लाने की जगह अब निकम्मे और नकारा राशिद की गन्दी गन्दी गालियों की आवाज आने लगी। "तू...बदचलन है, तू ... बाज़ारू औरत है रुखसाना ..." और रुखसाना आराम से घर के कामो में लगी रहती। उस पर शौहर की बातो का कोई असर नही होता। या शायद अब उसे ऐसे ताने सुनने की आदत थी। कर्ज़े वालो की गन्दी गालियाँ भी अब मुस्कुराहटों में बदल गई थी। बस एक चीज़ अब भी नही बदली थी। और वो थी बूढी ताहिरा बेगम की शर्म से झुकी गर्दन ।


Monday, August 21, 2017

मैं अधूरा इश्क़

तुम तितली सी फुदको, मैं भौंरे सा मंडराऊँ,
तुम बसन्त सी महको मैं पतझड़ सा बिखर जाऊँ।
तुम गंगा सी पावन मैं झरना कोई आवारा सा,
तुम सुबह की पहली किरण, मैं ढलते सूरज का कोई किनारा सा।
तुम कोई ज्ञानी आत्मा, मैं दुर्बल शरीर,
तुम धरा सी दानी, मैं कोई मलंग फ़कीर।
मैं कतरा कतरा सा, तुम सागर की अल्हड़ लहर,
मैं जेठ की तपती दोपहरी सा, तुम सुबह की पहली पहर।
तुम पूजा की थाली सी, मस्जिद की अजानों सी,
मीर की ग़ज़लों सी, मंटो के अफसानों सी।
मैं किसी मंदिर की सीढ़ी सा, मस्जिद के चौबारे सा,
राँझें की परछाई सा मजनूं के दुआरे सा।
तुम सच्ची कसम, किस्मत की लकीरों सी
कृष्ण की मुरली सी मीठी, तान कोई मंजीरों सी।
मैं अधूरा इश्क़, किताबो में रखें सूखे इरादों सा।
खतों की झूठी तहरीरों सा,सा जन्मों के बचकाने वादों सा।



Wednesday, May 31, 2017

दाग़



 "चल मीना अब तेरा नंबर है अच्छे से नाप देना।" सपना ने पास खड़ी मीना को हाथ से खींच कर दर्ज़ी के सामने खड़े करते हुए कहा। "और हाँ चाचा इसका नाप थोड़ा टाइट रखना।" ठीक है बेटा दर्ज़ी चाचा ने अपनी ऐनक सही करते हुए कहा।
"पर दीदी टाइट चोली में दम घुटता है।" मीना ने मिनमिनाते हुए कहा। "ठीक है चाचा टाइट चोली में इसका दम घुटता तो एक काम करना चोली पीछे से पूरी खुली रखना मेडम को सांस आती रहेगी।" उसने ठहाका लगाते हुए कहा।
"क्या दीदी आप भी हर बख्त मज़ाक करती रहती है।"
"ऐ बस कर हरामखोर इतने सालो से पालपोस कर तुझे बड़ा किया है अब दो पैसे कमाने का वक़्त आया, तो तेरा दम घुटने लगा। चुपकर निगोड़ी कही की।" सपना ने गुस्से से दाँत पीसते हुए कहा।
"देख मीना अगले हफ्ते एक मोटी असामी आ रही है। तेरी नत उतारी की रस्म करने, इसलिए मुझे कुछ कमी नही चाहिए समझी।"
"पर दीदी पिछले महीने ही तो नत उतारी हुई थी मेरी,पेट में अब-तक दर्द है।" मीना ने पेट पर हाथ लगाकर कहा।
"अरे मेरी भोली ये बात हमे ही तो पता है।" सपना ने उँगलियों से उसके गाल खींचते हुए कहा।
"चाचा एक काम और करना लहंगा ऐसे सिलना की नाभि से कम से कम 5 इंच नीचे बंधे हाय आधे ग्राहक तो तेरे पेट पर ही टाँय टाँय फिस्स हो जायेंगे।" दोनों हाथों से बलाये लेते हुए सपना फूली न समायी।
"दीदी आप भी न।" मीना ने शरमाते हुए नज़र झुका ली।
"चल छिलनाल शर्माना भी नही आता। सपना ने मीना के बनावटी शर्म के नाटक पर तुनक कर कहा।"
"हा..हा " मीना ने ठहाका लगाया।
चल जल्दी से निपट के नीचे आजा सपने ने सीढ़िया उतरते हुए कहा।

ये छोटी सी झलक थी फूलपुर की उन बदनाम गलियों की जहाँ की रानी सपना है। इन बदनाम गलियों में बड़े बड़े नवाब जादे अपनी नवाबी लुटा गए। वैसे अब नवाब तो रहे नही पर मर्द तो आज भी बाकि है। जो ख़ूब धड़ल्ले से अपनी हवस का बोझ इन गलियों की चौखट पर उतारने आते है। पर असल मे ये कहानी इन गलियों की नही है। ये कहानी है फूलपुर के चौधरी साहब की जिनके बेटे की शादी है। तो आइये चलते है शादी वाले घर की चौखट पर।

"अरे सत्तू चौबारे को सही से पुतवा दियो दीवारों पर इस्तिहार वालो ने न जाने क्या क्या लिखा दिया है।"
"अरे भौजाई घबराये नाही हम सब सँभाल लेंगे।" सत्तू ने दृढ़ता के साथ कहा।

"न जाने सारे हक़ीम डॉक्टर चार दिन में मर्दानगी बढ़ाने का ही इश्तहार क्यों करते है। कोई कमबख्त इंसानियत भी बढाये भले ही चार महीने लग जाये।" बड़ी चौधराइन दीवार पर लिखे इश्तहार पढ़कर बड़बड़ाते हुए चली गई।

"देखो पेंटर बाबु हमरे बिटवा की शादी है। कोनो कसर बाकी न रहे। अइसन पेंट करो की दीवारों की सारी कालक सफेदी में बदल जाये। सत्तू ने रंग वाले के कंधे पर हाथ रखकर दीवारों पर लिखे इस्तेहार पढ़ते हुए कहा।
"चार दिनों में मर्दाना ताकत बढाइये।
शर्तिया लड़का ही होगा।
शादी से घबराना क्या। समस्त रोगों का इक इलाज़
मिले डॉ. सम्राट गुपत रोग विशेषयज्ञ लाल चौक बस अड्डे के बराबर में फूलपुर,
"हे ससुरे का नाती शादी से कौउन घबराता है।" सत्तू ने बड़बड़ाते हुए कहा।
"पेंटर बाबु ये सब साफ़ चाहिए हम का ठीक से।" रंग वाले को हिदायत देते हुए आगे बढ़ गए सत्तू।
ये चौधरी साहब के छोटे भाई है सुजान सिंह उर्फ सत्तू सुना है इनकी बीवी शादी के दस दिन बाद ही इन्हें छोड़कर भाग गई थी। खैर.....

सामने चौधरी दिलवार सिंह का दरबार सजा है। यहाँ बैठ कर चौधरी साहब सारा दिन चिलम पीते रहते है और गरीबो की किस्मत अपने रजिस्टर में लिखते रहते है। बियाज़ पर पैसे देते है ना, छोटे किसानों और मज़दूरों को। जिसने बख्त में दे दिया ठीक नही तो भईया। चौधरी साहब प्राण भी ले लेते है।
चौधरी साहब की दो बीवी है एक जो अभी आप को गेट पर मिली यानी बड़ी चौधराइन दुर्गा रानी और दूसरी छोटी  चौधराइन कमलेश देवी। बड़ी चौधराइन से चौधरी साहब की शादी की रात से ही नही बनी, न जाने एक रात में ऐसा क्या हुआ कि चौधरी साहब का दिल दुर्गा देवी से ऐसा खट्टा हुआ कि तीन महीने बाद ही दूसरी शादी कर ली। पहले तो दुर्गा को छोड़ने का मन था पर दहेज़ में मिली 30 एकड़ जमीन और एक एम्बेसडर कार ने चौधरी को फ़ैसला बदलने पर मजबूर कर दिया। पर ईश्वर की करनी देखिये चौधरी साहब के यहाँ एक ही लड़का है और वो भी बड़ी चौधराइन दुर्गा रानी की कोख से। और बाकी 3 लडकियाँ है जो छोटी चौधराइन से है।

तो भैय्या चौधरी साहब के इकलौते बेटे की शादी है। दहेज़ से लेकर दुल्हन तक सब बहुत सोच समझकर चुनी है चौधरी साहब ने। दुल्हन मीठापुर के सांसद चौधरी ओम सिंह की एक लौती कन्या है। एक साथ दो निशाने साधे है चौधरी ने अपने निकम्मे आवारा बेटे के लिए एक तो आने वाले विधान सभा मे अपनी उम्मीदवारी पक्की कर ली दूसरे दहेज़ के रूप में इकलौती होने की वजह से सारा कुछ बेटे को ही मिलना है। इसीलिए चौधरी साहब आजकल हवाओ में उड़ रहे है।

और ये है दूल्ह राजा श्रीमान बहादुर सिंह जी 24 घण्टे अपनी मस्ती में मस्त, जिधर से भी निकलते है औरतो को अपना पल्लू बचाना भारी हो जाता है। हर वक़्त अय्यासी और दादागिरी इनका शौक़ है। बड़ी चौधराइन ने बहुत चाहा कि बेटा किसी तरह पढ़ लिख जाए पर चौधरी साहब से मिली बेपनाह छूट के सामने उनकी एक न चली ।
"ओये बिरजू ज़रा सपना को फोन तो लगा माल तैयार है या नही ।" बहादुर  सिंह ने अपने लपाटी दोस्त को नशे में झूमते हुए कहा।

"अभी पूछता हूँ भाई जी"
"हेलो सपना रानी बिरजू बोलूं हूँ। छोटे चौधरी साहब का खास सुनो आज भाई का मूड है माल तो तैयार है जैसा बोला था।"
"भाई सपना ने नमस्ते कही है थारे से और बोली है कि मामला पूरा सेट है।" बिरजू ने आंख दबाते हुए कहा।

"ठीक है तो फेर आज की शाम सपना डार्लिंग के नाम।" छोटे चौधरी ने हिचकी ली।

"कोई कही नही जायेगा। बहादुर  बहुत हुई तुम्हारी ये आवारा गर्दी अब तेरी शादी है कुछ अक्ल और होश की दवा कर समझा।" बड़ी चौधराइन जाने कब वहां आ गई थी और उसने उनकी बातें सुन ली थी।

"ओये मेरी माते रानी ये ही तो दिन है मेरे खेलने खाने के अब मस्ती नही करूँगा तो कब करूँगा, फिर तो बापू की तरह सारा दिन बहीखातों में ही बीतने है।" बहादुर  सिंह ने नशे में झूमते हुए कहा।
"शादी के दो दिन बचे है और तू नशे में धुत इन निकम्मे दोस्तो के साथ अय्याशियों के प्लान बना रहा है। शर्म कर शर्म।" चौधराइन ने शराब की बोतल को ठोकर मरते हुए कहा।

"शर्म, कैसी शर्म,मर्द है हम मर्द, शर्म औरतो के पास मिलती है यहाँ सिर्फ मर्दानगी और ज़िगर मिलता है माता।" बहादुर सिंह ने नशे में लड़खड़ाते हुए अपनी छाती पीटते हुए कहा।

"तेरे जैसे पूत से तो में कुपूत ही रह लेती ना जाने कौन से कर्मो का फल मेरे सामने आ रहा है। सारी उम्र इस उम्मीद पर जीती रही कि तू अपने बाप के जैसा नही बनेगा पर हाई री मेरी किस्मत एक अंडा और वो भी गंदा निकला।" चौधराइन अपने नसीब को कोसते हुए कमरे से बहार निकल गई।
कितनी मुसीबतों से इस घर में खुद को संभाला था दुर्गा रानी ने एक तो पति के होते हुए भी कभी सुहागन सा सुख ना भोग पायी थी। दूसरा पूरे घर का बोझ भार बस एक इस उम्मीद पर संभाल रखा था। कि बेटा बड़ा होगा तो उसके भी दिन बदलेंगे। वरना दिलावर सिंह ने क्या कुछ ज़ुल्म नही किये थे उसके साथ। दूसरी शादी से पहले हर रोज़ उसी के सामने बाज़ारू औरतो के साथ मुंह काला करता। दोस्तो की महफ़िलो में उससे जाम पे जाम बनवाता। कभी गुस्से में पीटता तो कभी घर के नौकरो के सामने गाली देता और ज़लील करता। वैसे तो बेटे से दुर्गा को कुछ खास उम्मीद नही थी मगर फिर भी उसे लगता था कि शादी के बाद शायद कुछ बदल जाये। पर आज की बातों से उसकी वो उम्मीद भी जाती रही।

शाम थोड़ी सी जवान क्या होती सपना के घर की तरफ जाने वाली बदनाम पगडंडियों पर मर्दानगी का खुमार चढ़ने लागता। छोटे चौधरी हो या बड़े चौधरी सब सपना के खासम खास थे। आज छोटे चौधरी की फ़रमाइश पर सपना ने खास तैयारी की थी। मीना जो अभी अभी जवान हुई थी या सपना की जुबान में कहे तो मार्कीट में बिल्कुल जीरो मीटर थी। खास आज छोटे चौधरी के लिये तैयार थी। वैसे तो पिछले महीने ही मीना की नत उतारी हो चुकी थी पर सपना नए पैकिट में पुराने माल को बेचने का हुनर बख़ूबी जानती है।

"आइये आइये सरकार नाचीज़ के गरीब खाने पेे स्वागत है।" सपना ने बहादुर  सिंह को देखते ही जोरो-खरोश से स्वागत किया।
"वो सब तो ठीक है पर हमारा माल रेडी है या नही?" चौधरी ने अपनी हवस भारी आवाज़ में सपना को अनदेखा करते हुए कहा।
"उफ्फ मेरे सरकार जरा दम तो ले। ऐसा पटाखा लाई हूँ आप के लिए की तमाम उम्र याद राखोंगे एक दम जीरो मीटर है।" सपना ने अपने अंदाज में आंखे मटकाते हुए कहा।
"फिर तो तुम इनाम की हक़दार हो सपना।" और चौधरी ने जेब से करारे नोटो की गड्डी निकाल कर सपना की तरफ उछाल दी।
"आप अपने खास कमरे में तशरीफ़ ले चलिये मैं अभी आप की अमानत भेजती हूँ।" सपना ने गेंदे के फूलों से सजे एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा।
कमरे में एक पलंग पर सफेद चादर बिछी थी। अगरबत्ती के धुंए से तर कमरा गेंदे के फूलों की अजीब गन्ध से महक रहा था।
सपना झट से दूसरे कमरे में गई और मीना को कुछ खास हिदायत देते हुए बोली देख कमरे की लाइट बंद रखना और जैसा बोले ठीक वैसा ही करना समझी और थोड़ा जोर जोर से चिल्लाना। और हाँ ये ले सपना ने एक कांच की शीशी मीना की तरफ बढ़ते हुए कहा।
"ये क्या है ? मीना ने पूछा।
सपना ने मुँह मीना के कान के पास ले जाकर धीरे से फुसफुसाया इसमें आज जो मुर्गा फ्राई करके तुझे खिलाया है ना उसका खून है। चुपके से चादर पर गिरा देना। ताकि तेरा जीरो मीटर और चौधरी की मर्दानगी दोनों का भरम बना रहे। और हाँ बाद में लाइट जलाना मत भूलना आख़िर चौधरी को सफेद चादर पर दाग नज़र भी तो आना चाहिये। सपना ने ठहाका लगाया।

बड़ी धूमधाम से चौधरी की चौखट से सजी धजी बारात बैंड बाजो की धुन के साथ निकली । चौधरी दिलावर सिंह ने दिलखोल कर ख़र्च किया था आखिर इकलौता बेटा जो था बहादुर  सिंह उनका ऊपर से सिमधी भी पैसे वाला तो जो भी खर्च कर रहे थे वो सब सूद समेत आने वाला था। बहादुर  सिंह अपने पिस्टल से और चौधरी साहब अपनी दो नली पुस्तैनी बंदूक से हवा में धायं धायं गोलिया दाग रहे थे। बारात की आन बान देखते ही बन रही थी। ऐसे ही नाचते गाते बारात दुल्हन के दरवाजे तक पहुंच गई। बड़ी धूमधाम से स्वागत हुआ चौधरी साहब के सिमधि ने कोई कोर कसर बाकी नही छोड़ी थी। ख़ूबखातिर दारी हुई। जय माला और फेरो के बाद आखिर बिदाई का बख्त भी आ गया । चौधरी ओम सिंह ने दहेज़ में दी गाड़ी की चाबी चौधरी दिलावर सिंह को देते हुए कहाँ। "देख चौधरी मुझे दामाद के सारे लच्छन पता है। पर मैंने फिर भी अपनी बेटी खुशी खुशी बियाह दी पर अब ध्यान रहे । मेरी बेटी को कोई कष्ट ना हो। वैसे मैं समझ सकता हूँ। जवानी में नादानी हमने भी की है पर अब दामाद को मैं खुद का उत्तराधिकारी समझ रहा हूँ। और विधान सभा चुनाव सर पर है तो कोई ऐसी हरकत ना हो जिस से हमारी साख पर आंच आये।"
अरे ओम सिंह जी ऐसी शुभ घड़ी में आप भी कैसी बाते लेकर बैठ गए। बेफिक्र रहिये आप की बेटी अब हमारी बेटी है। और रही बहादुर  की बात उसे मुझ पर छोड़ दीजिए। ये कहकर दिलावर सिंह ने ओम सिंह को गले लगा लिया।

नई दुल्हन की डोली चौधरी दिलवार की चौखट पर पहुंच गई। बड़ी धूमधाम से मंगल गीतों के साथ दुल्हन का स्वागत हुआ। दुल्हन क्या चाँद का टुकड़ा थी जिसने भी देखा देखता ही राह गया। बड़ी चौधराइन फूली न समाती बेटा भले ही कितना नकारा था पर सास बनने की खुशी तो अपनी जगह है। छोटी चौधराइन ने मुहँ दिखाई में सोने के कंगन पहनाये तो सबने बड़ी प्रसंशा की
"सौतेली होते हुए भी इतना प्यार बड़े दिल वाली है छोटी चौधराइन।"
उधर नई दुल्हन की मुँह दिखाई चल रही थी और यहाँ चौधरी बहादुर  सिंह की चाण्डाल चौकड़ी जमी हुई थी।

"भैय्या असली मर्दानगी दिखाने का बख्त तो आज आया है।" एक ने शराब गटकते हुए कहा।
"तेरा भाई मर्द है मर्द, तुझे कोई शक है क्या? छोटे चौधरी ने गर्व से सीना फुला कर पूछा।
"भैया जी शक तो कोई न पर नारी के सामने अच्छे अच्छे मर्द पानी भरते देखे है हमने और भाभी तो वैसे भी सुना है बी.ए. पास है।" दोस्तो ने ठहाका लगाया।
"अबे चल साले चौधरी बहादुर  सिंह उनमे से नही जो बीवी के गुलाम होते है।"
"अच्छा भैया भाभी कॉलेज पढ़ी है ज़रा चेक कर लियो कही सेकेण्ड हैंड माल न निकले।" और जोर से ठहाका गूंजा।

खूबसूरत लाइट से सजे और फूलो से महकते कमरे में अपने लड़खड़ाते कदमो के साथ बहादुर  सिंह दाखिल हुआ। सामने बेड पर लंबा सा घूंघट निकाले उसकी नई दुल्हन अनीता बैठी थी। ये पर्दा हटा दो ये..य...य मुखड़ा दिखा दो बहादुर  सिंह ने नशे में झूमते हुए अपनी बेसुरी आवाज़ में गाना गाया। और झट से दुल्हन के सर से दुपट्टा उतार कर दूर फैंक दिया। अनीता ने सकपका कर खुद को घुटनों में समेट लिया। बहादुर  सिंह ने ठहाका लगाया। "रे डर गई क्या तू हमरी पत्नी है और हम तुम्हारे पति परमेश्वर।" इतना कहकर बहादुर  सिंह ने लाइट का स्विच ऑफ कर दिया।

सुबह सारी हवेली में तहलका मच गया। बहादुर  सिंह को दुल्हन पसन्द नही आई थी और वो उसे छोड़ने की जिद्द पर अड़ गया। "रे बुलाओ इसके बाप नु ससुरे ने नए पैकिट में सेकंड हैंड माल थमा दिया।" बहादुर  सिंह एक हाथ मे शराब की बोतल और दूसरे में रिवाल्वर लहराता हुआ चिल्ला रहा था। किसी की समझ मे कुछ नही आ रहा था कि बात क्या है।

"रे शांत हो जा बात तो बता क्या हुई क्यों नशे में अनाप शनाप बोले है। सत्तू ने बहादुर  के पास जाकर कहा।"
"चाचा हमारे मथ्थे सेकंड हैंड माल मढ़ दिया है। छोरी खेली खाई है। कॉलेज से पढ़ी है जाने कितने यारो के साथ मुँह काला किया है। कुलटा ने" बहादुर  सिंह ने बदहवासी में अपना सिर पीटते हुए कहा।
"रे बावले चुप हो जा ज्यादा चढ़ गई है तुझे। किसी ने तेरे कान भर दिए। भैय्या को पता चल गया तो कयामत आ जायेगी " सत्तू ने बहादुर  सिंह को समझाते हुए कहा।
"बापू ने ही अपनी विधायकी के चक्कर मे ये किया है। और हमे किसी ने नही बहकाया खुद अपनी आंखों से देखा है यकीन ना आवे तो लो तुम भी खुद देख लो।" बहादुर  सिंह ने एक सफेद चादर सत्तू के ऊपर फेंकते हुए कहा।
"ध्यान से देख चाचा, है कोनो लाल दाग चादर पर, रात ये ही चादर बिछी थी हमरी सेज़ पर।"
सत्तू निःशब्द सा कभी मसले हुये फूलो के दागो से भरी चादर को देखता ओर कभी दरवाज़े में शांत खड़ी बड़ी चौधराइन दुर्गा देवी को। सत्तू ने एक शब्द नही कहा ओर चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया। बड़े चौधरी बैचेनी से इधर उधर टहल रहे थे। उन्हें अपने विधायक बनने के सपने की चिंता सता रही थी। उन्होंने दुर्गा देवी से नज़र बचा कर कहा।
"समझाओ अपने लाट साहब को वरना बहुत बुरा होगा।"

दुर्गा देवी ने एक तीखी चुभती नज़र से बहादुर  सिंह के कमरे की तरफ बढ़ते हुए बड़े चौधरी की तरफ देखा । चौधरी ने नज़रे झुका ली।
दुर्गा देवी कमरे में दाखिल हुए और दरवाज़ा अंदर से बन्द कर लिया।
"हवस ने तोड़ दी बरसों की साधना मेरी
गुनाह क्या है ये जाना मगर गुनाह के बाद।"

"यहाँ हमारी लंका लगी पड़ी है और आप को शायरी सूझ रही है।" बहादुर  सिंह ने गुस्से से कहा।

दुर्गा ने हल्का सा ठहाका लगाया। और फिर शांत स्वर में बोली। "तुझे पता है। बहादुर  तेरे बापू ने दूसरी शादी क्यों कि थी, क्यों पहली रात से ही तेरा बापू मुझसे नफरत करता है। क्योंकि मेरी सेज़ पर जो सफेद चादर बिछी थी उस पर भी लाल दाग नही थे। मैं भी तेरी पत्नी की तरह कुल्टा थी तेरे बापू की नज़र में। मैं भी तेरे बापू की मर्दानगी की कसौटी पर खरी नही उतरी थी।"
दुर्गा देवी ने धीरे धीरे बहादुर  की तरफ बढ़ते हुए कहा।

"और मज़े की बात तो ये थी है कि तेरी चाची सत्तू की बीवी वो भी कमीनी कुल्टा निकली। और उसने ऊपर से बेशर्मी ये की। कि तेरे चाचा को छोड़कर भाग भी गई।" काश! मैं भी उसकी तरह भाग जाती। दुर्गा ने ठंडी आह भरी।
"तो आप हमें यहाँ ये रामायण सुनाने आई है।" बहादुर  के स्वर में अब भी गुस्सा था।
"आप कुछ भी कहो में इस कुलटा को अपनी पत्नी नही मानूँगा ये मेरी मर्दानगी पर दाग़ है।" बहादुर  सिंह ने मेज़ पर हाथ मरते हुए कहा।

"अरे हां रामायण से याद आया उसमे भी तो नारी ने ही अग्निपरीक्षा दी थी। खैर वो सतजुग था और ये कलजुग
है। अब कलजुग है तो क्या पता तेरी पत्नी ही तुझे सबके सामने नामर्द घोषित कर दे। वो कह दे कि जब तुमसे कुछ हुआ ही नही तो दाग कहाँ से आएंगे।" दुर्गा देवी ने बेटे की आंखों में आंखे डालते हुए कहा।
बहादुर  सिंह के शरीर मे एक बार को बिजली सी कौंध गई।
"औरत अगर अपनी पर आ जाये तो अच्छे-अच्छोे की घिघि बंध जाती है। डर गए न छोटे चौधरी" दुर्गा देवी ने बहादुर  के चेहरे के बदलते भाव को पढ़ते हुई तंज़ के साथ कहा।
"आप कुछ भी कहे कोई भी दलील दी लें पर मैं उसे अपनी पत्नी नही स्वीकार करूँगा।" बहादुर  ने दुर्गा देवी के तंज़ भरे शब्दो से खीज़ कर कहा।
"क्यों नही स्वीकार करोगें?..क्योंकि चादर पर दाग नही?" दुर्गा देवी ने सवाल किया
"कभी खुद को आईने में देखा है। कभी झाँका है अपने गिरेबान में कितने दाग है तुम्हारे दिमाग़ में तुम्हारी आत्मा पर,औरतो के प्रति तेरी गिरी हुई सोच देख कर तो लगता है तू खुद एक दाग़ है मेरी कोख़ पर बहादुर  और तेरा बापू दो-दो बीवी रख कर बाहर मुहँ काला करता है। तुम खुद रात रात भर उन बदनाम गलियों में जाकर न जाने कितने बेजान जिस्मों को रौंदते हो। क्या इसे ही मर्दानगी कहते हो। बहादुर , दुःख होता है मुझे तुम्हे अपना बेटा कहते हुए। कभी कभी तो लगता है कि दीवाली पर हर साल जलने वाला रावण तुम जैसो से लाख दर्जा अच्छा था। हम हर साल उसे जलाते है बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में पर असली रावण और असली बुराई तो हमारे घरों में है। ना जाने बहादुर  तेरे जैसीे गंदी सोच के कितने हज़ारों रावण आज भी सड़को पर खुला घूमते है और हम उन्हें रिश्तों की आड़ में छुपाए रखते है। एक दशहरा तो तुम लोगो के लिए भी मनना चाहिए।" दुर्गा देवी ने धिक्कारते हुए कहा। "अरे अगर मर्द बनना है तो औरत की इज़्ज़त करनी सीखो उसको सम्मान दो उसे खिलौना या समान ना समझो।और अगर पति बनना है तो पत्नी को पत्नी का दर्जा दो उसे अपनी हवस का सामान न समझो उसे प्यार की कसौटी पर परखो अपनी दकियानूस और बेग़ैरत मर्दानगी के तराजू में मत तौलो और हां बहादुर  दुर्गा देवी ने दृढ़ता के साथ बहादुर  की आँखों मे देखते हुए कहा "जो कुछ मैं भुगत चुकी हूँ उसे दोबारा नही होने दूंगी चाहे कुछ भी हो जाये।"
"अब आप मुझे गुस्सा दिला रही है माँ " बहादुर  सिंह ने अपनी पिस्तौल हाथ मे लेकर कहा।
"अच्छा बेटा खुद के कर्मो का चिट्ठा सुना तो गुस्सा आ गया। पिस्तौल निकल आयी। इस गुस्से को छोड़कर कभी ठंडे दिल-दिमाग़ से सोचो अपनी हैवानियत को छोड़कर कर इंसानियत को अपनाओ।"
"जिस चरित्रहीन के लिए तुम भाषण दे रही हो ना मैं उसका ही खेल खत्म करता हूँ। और इतना कहकर बहादुर  सिंह हाथ में पिस्तौल लेकर दरवाज़े की तरफ लपका। दुर्गा देवी झट से उसके सामने आ गई "पहले मुझे मार"
"हट जा......माते....." दुर्गा को धक्का देकर बहादुर  ने कदम आगे बढ़ाए। आवाज़ सुनकर बड़े चौधरी बाहर से दरवाज़ा पीटने लगे " बहादुर  दरवाज़ा खोल।"
दुर्गा देवी ने बहादुर  को झंझोड़ते हुए कहा। अब तो शर्म कर त्याग दे अपना ये झूठा मर्दानगी का अहंकार और उसके हाथ से पिस्तौल छीनने की नाकाम सी कोशिश करने लगी पर बहादुर  के सिर पर खून सवार था उसने दुर्गा को झटका दिया। और अचानक इसी खींचातानी में धायं की आवाज़ के साथ गोली चली। हड़बड़ाए चौधरी दिलावर सिंह ने बाहर से गोली की आवाज़ सुनकर बंद दरवाज़े को धक्का देकर खोल दिया। सामने फर्श पर बहादुर  सिंह का बेजान ज़िस्म पड़ा था। और उससे उबल उबलकर निकलने वाले खून से पास पड़ी सफेद चादर पर लाल दाग उभर आये थे।

Saturday, March 11, 2017

बाँझ


“अरे….आओ आओ रामदुलारी बहन आज हमारे घर का रास्ता कैसे याद आ गया। जब से मौहल्ला छोड़ा है तुम तो जैसे हमे भूल ही गई।”
“नही बिलक़ीस आपा कैसी बाते करती हो। अपनों को भी भला कोई भूलता है। वो तो बस काम में वक़्त ही नही मिल पता। खैर छोडो ये लो मिठाई खाओ रामदुलारी ने मिठाई का डब्बा आगे करते हुए कहा।
“अरे मिठाई ये किस ख़ुशी में?”
“बताती हूँ पहले आप मुहँ मीठा करो।”
“चलो अब बताओ।” बिलक़ीस ने बर्फी का टुकड़ा मुहँ में रखते हुए कहा।
“तुम दादी बन गई हो आपा। दिनेश के यहाँ लड़का हुआ है। रामदुलारी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“माशाल्लाह अल्लाह लम्बी उम्र दे बच्चे को। ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई दुलारी। और बिलक़ीस ने एक सौ का नोट पर्स से निकाल कर रामदुलारी की तरफ बढ़ा दिया।
“नही…नही…. आपा इसकी कोई जरूरत नही है।” दुलारी ने हिचकते हुए कहा।
“अरे तुझे नही दे रही ये तो मेरे पोते के लिए है।” बिलक़ीस ने आँखे मटकाते हुए कहा।
“जब आप घर आओगी तभी देना।”
“अरे दुलारी रख ले घर जब आऊँगी तब तो में पोते को गोद में लेकर ढेरे दुआएँ दूंगी।” बिलक़ीस ने नोट दुलारी के हाथ में रखते हुए कहा।
“हाँ…हाँ क्यों नही आपा, वैसे बहु नज़र नही आ रही कही बाहर गई है क्या?” दुलारी ने अंदर झाँकते हुए कहा।
“होगी यही कही बाँझ।” बहू के नाम पर बिलक़ीस ने मुँह बनाते हुए कहा।
“ऐसे नही बोलते आपा ऊपर वाले पर भरोसा रखिये भगवान ने चाहा तो जल्दी ही आप के घर में भी किलकारियां गूंजेगी।” दुलारी ने बिलक़ीस को तसल्ली देते हुए कहा।
“हम्म पिछले 4 साल से ये ही उम्मीद किये जा रही हूँ दुलारी।” बिलक़ीस ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
“तुम्हे तो पता है दुलारी, आसिफ के अब्बू की मौत के बाद कितनी मुसीबतों से ज़िन्दगी बसर की है मैंने’ सिर्फ आसिफ को क़ाबिल बनाने के लिए। इकलौते बेटी की शादी के कितने अरमान थे। पर आसिफ की ख़ुशी के लिए उनका भी गला घोट दिया मैंने, जहाँ उसने कहा वही शादी कर दी। पर क्या अब पोता-पोती को गोद में खिलाने का अरमान भी सीने में दफ़न कर दूँ।”
बिलक़ीस ने दुपट्टे से आँसू पोछते होये आह भरी।
“बिलक़ीस दिल छोटा नही करो भगवान के घर देर है अंधेर नही।” दुलारी ने उसको तसल्ली देते हुए कहा।
“लो मैं भी किन बातों में लग गई, तुमको को चाय नाश्ता भी नही पूछा, मरियम…..अरी… ओ मरियम कहाँ मर गई। बाहर  आ जल्दी।”
बिलक़ीस ने बहु को आवाज़ लगाई।
अंदर से एक नाज़ुक सी लड़की अपना दुपट्टा सही करते हुए सकपकाई सी जल्दी से बहार आई।
“जी अम्मी कहिये।”
“अरे कहना क्या है। दिखता नही दुलारी बहन आई है। इनके लिए कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम करो। वैसे किसी से सलाम दुआ की तो, तुम्हे तौफ़ीक़ है नही, कि किसी बड़े छोटे को देखकर सलाम कर ले।”
बिलक़ीस ने कड़वे लहज़े में कहा।
“आदाब आंटी” मरियम ने दुलारी की तरफ देखते हुए कहा।
“जीती रहो बेटी दूधो नहाओ पूतो फलो।” दुलारी ने सिर पर हाथ रखते हुए बड़ी मोहब्बत से कहा।
“अब यही खड़ी रहोगी या चाय भी लेकर आओगी।” बिलक़ीस ने एक बार फिर से बहु को झिड़की लगाई। और मरियम चुपचाप वहाँ से चली गई।
“बिलक़ीस क्यों खामा खा उस बिचारी पर गुस्सा होती रहती हो। कितनी प्यारी बच्ची है। भगवान ने चाहा तो बच्चे भी हो जायेंगे।” दुलारी ने बहु के साथ बिलक़ीस के रवैय्ये को देखते हुए समझाने के लहजे में कहा।

मरियम की शादी 4 साल पहले बड़ी धूम-धाम से आसिफ़ से हुई थी। दरअस्ल ये एक लव मैरिज थी। आसिफ और मरियम एक ही कॉल सेंटर में जॉब करते थे। वही दोनों में प्यार हुआ और घर वालो की मर्ज़ी से दोनों ने शादी कर ली। पर शादी के 4 साल बाद भी मरियम माँ नही बन सकी। जिसकी वजह से उसकी सास बिलक़ीस उस से काफी नाराज़ रहती थी। आसिफ उनकी एकलौती औलाद थी और वैसे भी बिलक़ीस की बेटे के लिये अपनी मर्ज़ी की दुल्हन लाने की ख्वाहिश पहले ही अधूरी रह गई थी। और अब पोते पोती की शक्ल देखने की उम्मीद भी पूरी होती नजर नही आ रही थी। इसीलिए जब भी किसी के यहाँ से बच्चे होने की खबर आती बिलक़ीस मायूस हो जाती और सारी भड़ास बिचारी मरियम पर निकालती।

रामदुलारी पहले इसी मोहल्ले में रहती थी। पर पिछले साल अपना मकान बेच कर वो दूसरे मोहल्ले में रहने लगी थी। बिलक़ीस उसे प्यार से दुलारी कहती और दुलारी बिलक़ीस को हमेशा आपा बुलाती। बिलक़ीस और दुलारी पड़ोसन होने के साथ एक दूसरे की हमदर्द भी थी। इसीलिए दोनों एक दूसरे को दुःख-सुख में हमेशा याद रखती थी। जब से बिलक़ीस ने दुलारी के यहाँ पोता होने की बात सुनी थी। दादी बनने की उसकी ख्वाहिश और भी बढ़ गई थी। इसीलिए उसके सिर पर आजकल बेटे की दूसरी शादी का भूत सवार था। उठते बैठते खाते-पीते अब बस ये ही रट लगाये रखती, मरियम उनकी इस बात पर वैसे तो कभी कोई जवाब नही देती और अगर गलती से कोई जवाब दे देती तो कई दिनों तक उसे खरी खोटी सुन्नी पड़ती। अक्सर वो आसिफ़ को उनकी अम्मी की ये बात बताती पर आसिफ हमेशा उसे बड़ी मोहब्बत से समझाता। “मरियम तुम अम्मी की बात का बुरा मत माना करो। तुम्हे तो पता है कि उन्हें बच्चो से कितना प्यार है। इसीलिए कभी-कभी अपने जज़्बातों पर काबू नही रख पाती है।”
“तो आसिफ इसमें मेरी क्या गलती है। उन्होंने जिस डॉक्टर को कहा मैं वहाँ गई। जिस हकीम को बोला उसकी कड़वी दवाई खाई। यहाँ तक के कई झोला छाप और मौलवी मुल्लाओं से भी ना चाहते हुए इलाज़ कराया। सिर्फ उनकी खुशी के लिए। फिर भी बच्चे नही हुए तो इसमें मेरा क्या कुसूर है। क्या मेरा दिल नही करता की मैं भी माँ बनू, मेरे भी बच्चे हो जो मुझे अम्मी कहे। मरियम की आँखों से आंसू झरने लगे।
“पागल क्यों दिल छोटा करती हो मैं हूँ ना तुम्हारे साथ तुम अम्मी की बात दिल से न लगाया करो वो जुबान की कड़वी जरूर है पर दिल की बहुत अच्छी है। तुम परेशान न हो मैं अम्मी से बात करूँगा।” आसिफ ने मरियम को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

दिन ऐसे ही बीतते रहे मरियम और आसिफ ने बहुत से डॉक्टर्स को दिखाया बहुत सारी जाँच कराई पर कोई फायदा नही हुआ। पर बिलक़ीस की पोते-पोती की चाहत उम्र के साथ-साथ और बढ़ती जा रही थी। और मरियम के लिए उसके ताने और तीखे हो गये थे। पर मरियम आसिफ़ की मोहब्बत की वजह से कुछ नही बोलती। शायद उसने भी वक़्त और हालात से समझौता कर लिया था। अब बच्चो के लिए मरियम की बेकरारी भी उतनी नही रही थी। आसिफ और बिलक़ीस के लाख कहने पर भी वो डॉक्टर के पास नही जाती। बिलक़ीस के बाँझ कहने पर उसकी आँखों से अब आंसू नही गिरते। नाजुक सी मरियम अब बहुत मज़बूत हो गई थी। या शायद होने का दिखावा करती थी। क्योंकि आसिफ की मोहब्बत हमेशा उसकी ढाल बन जाती थी। पर एक दिन आसिफ़ की बात सुनकर वो अंदर तक टूट गई। उसके सारे भर्म रेत की दिवार की तरह ढह गए।
“मरियम, देखो तुम्हे तो पता है कि मुझे अम्मी ने अब्बू की मौत के बाद कितनी मुसीबतो से पाला है। उनके और तुम्हारे सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नही है। अम्मी ने आजकल फिर से दूसरी शादी की जिद लगा रखी है। और तुम तो जानती हो। कि कितने दिनों से मैं अम्मी को टालता आ रहा हूँ। पर अब अम्मी ने खाना पीना भी छोड़ दिया है। और जिद लगा कर बैठी है कि जब तक मैं दूसरी शादी के लिए हाँ नही करूँगा वो खाना नही खायेगी। अब मैं अपना मुकदमा तुम्हारी अदालत मैं लेकर आया हूँ। तुम ही बताओ अब मैं क्या करूँ एक तरफ माँ की ममता है और दूसरी तरफ तुम्हारी मोहब्बत।” आसिफ ने मरियम के हाथो को थामते हुए कहा।
मरियम किसी बुत की तरह एकटक आसिफ का चेहरा देख रही थी।
“बोलो मरियम ” आसिफ ने मरियम की ख़ामोशी से परेशान होकर पूछा।
“क्या बोलूं आसिफ़ तुम्ही बताओ? क्योंकि इन्कार शायद तुम्हे पसन्द नही आएगा और हाँ मेरे होंटो से निकलेंगे नही। तो अब तुम ही बताओ आसिफ क्या बोलूं ? ” मरियम ने खुद को सँभालते हुए कहा।
“तुम्हे क्या लगता है मरियम की ये सब मेरे लिए आसान है। क्या ये मैं अपने लिए कर रहा हूँ?” आसिफ ने सवाल करते हुए कहा।
“तो फिर ठीक है कर दो हमेशा की तरह इंकार दूसरी शादी से”
“मरियम बहुत इंकार किया मैंने, पर अम्मी को तो तुम जानती हो की वो जिद की कितनी पक्की है।”
“तो कर लो शादी, फिर मेरी इज़ाज़त की क्या जरूरत है।” मरियम ने सपाट लहजे में कहा।
“समझने की कोशिश करो मरियम वो माँ है मेरी, उन्होंने पूरी जावनी मेरे ऊपर कुर्बान की है मरियम, मेरे ऊपर। मैं उनकी एकलौती औलाद हूँ। मुझसे उनका दुःख नही देखा जाता।” आसिफ ने मरियम को झंझोड़ते हुए कहा।
“उनकी तो एक औलाद है। जो कम से कम उन्हें माँ तो कह सकता है। पर मेरा, मेरा कौन है आसिफ? मुझे तो एक भी माँ कहने वाला नही है। मैं किस से जिद करूँ?” मरियम ने आँसूओ को रोकते हुए सवाल किया। कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया।
“मरियम तुम तो इतनी बेहिस और बेदर्द नही थी। ” आसिफ ने कमज़ोर सी आवाज़ में कहा। “अब तुम बेहिस कहो या बेदर्द पर मैं तुम्हे दूसरी शादी नही करने दूंगी। क्योंकि अगर बात अम्मी की ख़ुशी की होती तो मैं कभी तुम्हारी दूसरी शादी के लिए इंकार नही करती। पर बात है उनके विश्वास की उनकी ममता की उनकी सारी जिद बच्चों के लिए है। पर तुम्हारी दूसरी शादी से क्या उनकी ये चाहत पूरी हो सकेगी?” मरियम ने आसिफ़ की आँखों में आँखे डालकर चुभते लहज़े में पूछा।
“आसिफ़ मैं अपने दिल पर पत्थर रखकर तुम्हारी मोहब्बत बाँट लेती तुम्हे ख़ुशी ख़ुशी दूसरी शादी की इज़ाज़त दे देती। पर जिस वजह से ये सब हो रहा है क्या वो वजह खत्म हो सकेगी? क्या तुम अम्मी को दादी बनने का सुख दे सकोगे?” मरियम ने आँसूओ से भरी आँखों से आसिफ़ की तरफ देखते हुए पूछा। आसिफ बुत बना बैठा रहा।
“आसिफ तुमने ये बात हमेशा मुझसे छुपाई है कि कमी मुझमे नही तुम में है और तुम्हारी मोहब्बत की जमानत पर मैंने कभी तुम्हे जाहिर ही नही होने दिया कि मुझे ये पता है कि तुम कभी मुझे माँ नही बना सकते। पर आज तुम्हारी बातो ने मुझे बोलने के लिए मजबूर कर दिया। मैंने आजतक तुम्हे ये जाहिर नही होने दिया की वो सारी रिपोर्ट्स मैंने पढ़ी है। जिनमे साफ़ साफ़ लिखा है कि तुम कभी बाप नही बन सकते। फिर भी मैं तुम्हारी मोहब्बत में ये सोच कर चुप रही की तुम्हे कमतरी का एहसास न हो। अपनी ममता का गला उसी दिन घोट लिया था मैंने। अम्मी के और दुनिया वालो के ताने सुनती रही। सिर्फ तुम्हारी खातिर, हमेशा सोचती रही की शायद तुम खुद मुझे एक दिन ये सच बता दोंगे। पर तुम में शायद सच कहने की हिम्मत ही नही थी। हाँ तुम मुझे बेदर्द कह सकते हो आसिफ क्योंकि अब मुझे दर्द का एहसास नही होता। हूँ मैं बेहिस क्योंकि जिससे मैंने बेपनाह मोहब्बत की थी उसे शायद मुझ पर यकीन ही नही था।” मरियम बदहवास बोले जा रही थी और आसिफ बेदम सा बैठा सब सुन रहा था।
“और सुनो आसिफ ये सिर्फ दूसरी शादी की इज़ाज़त और इनकार का मसला नही। ये बात है औरत के सम्मान की .. उसके वजूद की .. उसकी अना की ..  इसलिए मैं तुम्हे इस शादी की कभी इज़ाज़त नही दे सकती। क्योंकि मैं नही चाहती की मेरी तरह, तुम्हारी दूसरी बीवी भी अपने माथे पर बाँझ का तमगा लगाकर अपनी सारी उम्र घुट-घुट कर काट दे।”
मरियम ने हिचकी लेते हुए कहा।
आसिफ़ को काटो तो खून नही। वो बदहवास सा बैठा मरियम को देख रहा था। और दरवाज़े पर खड़ी बिलक़ीस अपने बिखरते वजूद को संभालने की नाकाम सी कोशिश करते हुए जमीन पर ढह गई।