Saturday, January 23, 2016

और इश्क़ को मंज़िल मिल गई.......


अजी..........  ये इश्क़ भी बड़ा फरेबी है। एकदम चुनावी वादो की तरह कमबख्त जब आता है बड़े शब्ज़बाग़ दिखता है। भले ही बाद में सब्जी के भी लाले पड़ जाये। ऐसा ही कुछ हमारे प्यारे मित्र के साथ भी हुआ। उसको भी प्यार हो गया है। और वो भी ऐसा की पूछो मत,साला पगला गया है। बिलकुल हमारी मीडिया की तरह। अच्छा खासा नौकरी कर रहा था बैंक में कैशियर है। पर जवानी होती ही दीवानी है कर दिया दीवाना।
वो राहिल के मोहल्ले में ही रहती है। समझो के बस एक मुंडेर परे है। 'दुआ ' प्याले सी बड़ी बड़ी आँखे,बाल खुदा की कसम क़ानून के हाथो से लम्बे और नेताओ के कारनामो से काले,गुलाबी होंठ,केजरीवाल के चरित्र सा उजला रंग। रविश कुमार सी साफ़ और बेबाक। जिधर से निकलती है मोदी से ज्यादा भक्त इकठ्ठा हो जाते है। गली के सारे कुंवारे चाहे कोई लंगड़ा हो या लुल्ला सब जान छिड़कते है। पर सामत तो हमारे राहिल की आई थी। बस छत पर आँखे क्या चार हुई ,जनाब सब गुना भाग भूल गए। अब वो जमाना तो है नही की लड़की रुमाल में प्यार बाँध कर फेंके और लड़का,जैसे बिजली के बढे बिल को कम करवाने के लिए सरकारी दफ़्तर के चक्कर काटने पड़ते  है ऐसे उसके घर के चक्कर काटे। मोबाइल का ज़माना है इंटरनेट का बोल बाल है। बस जी शुरू हो गया धीरू भाई का सस्ता प्लान। पहले पहले व्हाट्सऐप पर मिज़ाज़पुर्सी हुई ,फिर खट्टे  मीठे चुटकुले आने जाने लगे। धीरे धीरे बाबू ,सोना जैसे उपनामों के साथ साथ ग़ालिब से लेकर सारे सड़क छाप बेतुके शायरों के कलाम थोक के भाव बरसने लगे। अब अगर इतने पर ही बात रुक जाती तो अडानी,अम्बानी कैसे तरक्की करते। बस बातो का ऐसा सिलसिला निकला की राहिल के दिन रात फ़ोन पर ही छिपने और निकलने लगे। आधी सैलरी मोबाइल और आधी 'अच्छे दिनों' वाली महंगाई की भेट चढ़ने लगी। मैडम जी मिस कॉल करती और जनाब शुरू हो जाते। वैसे ये 'मिस कॉल' क्या फिट नाम रखा है किसी बेचारे ने,मिस के ही काम की चीज़ है मिस्टर तो बेचारा इसको देख कर ही अपना बैलेंस चेक करने लगता है।
अब भैय्या भारत में तो दाल भी बिना तड़के के नही बनती ये तो इश्क़ था। ऐसा अंधेर कैसे हो सकता है कि मुंडेर के परे प्यार चले और मोहल्ले में पता न चले। ये तो वो ही बात होगी के मंत्री घोटाले करे और हमारे प्रधानमंत्री जी कहे के हमे तो कुछ पता ही नही। लव की बात थी। डेंगू से भी तेज़ पूरे मोहल्ले में फ़ैल गई। दोनों के घरो में हाय तोबा मच गई। अब्बू पल भर में ही नकटे हो गये और अम्मी का मेकअप से चमकता चेहरा मोहल्ले में दिखाने के लायक ही नही रहा। यार,रिश्तेदरो को विपक्ष की तरह एक नया मुद्दा मिल गया। हर शादी ब्याह में मोदी के जुमलों और केजरीवाल के कारनामो की तरह इन दोनो के ही चर्चे थे।गली नुक्कड़ हर जगह न्यूज़ चैनलों की बिना सिर-पैर की डिबेट की तरह लोग इन दोनों के बारे में ही बहस कर रहे थे। हर कोई संबित पात्रा बना फिर रहा था। दुआ घर वालो के लिए बद दुआ बन गई थी या यूँ कहिये मोदी की स्मृति ईरानी। अम्मी DDCA के घोटाले में जेटली की तरह इसकी पैदाइश पर ही लानत भेज रही थी अब्बू हर मामले की तरह इस मामले में भी नए मोदी और पुराने मनमोहन को फॉलो कर थे एकदम चुप। गली मोहल्ले में दीदी से लेकर दादी सब चटखारे ले लेकर 'ट्वीट' कर रही थी। रोज़ नए नए सगूफे भ्रष्टचार के जिन की तरह बहार आ रहे थे।
दुआ से मोबाइल ऐसे छिन गया जैसे शीला से दिल्ली। राहिल साहब लड़को के बीच नए इमरान हाश्मी बन गए। जिधर से भी निकलता लोग ऐसे घूरते जैसे इश्क़ नही 'मर्डर' किया हो बेचारे ने। ऊपर से घर वालो के ताने,टूट कर रह गया। सब ने खूब समझाया के बेटा छोड़ दे। काम पर ध्यान दे कुछ नही रखा इन बातो में। पर राहिल किसी की नही सुनता इश्क़ का बुखार था इतनी जल्दी कहा उतरता। अम्मी ने भी खूब समझाया "देख बेटा तू राहिल है 'राहुल' नही की तेरी उम्र निकली जा है" जो हुआ उसे 'अच्छे दिनों' के वादे और 'काले धन' के जुमलों की तरह भूल जा।
गली मोहल्ले की लड़कियां दुआ को कोस रही थे "कमबख्त . . . . . . .   नैन ये लड़ाई और दफा १४४ हम पर लग गई।"
 मामले को ज्यादा बढ़ता देख 'बीजेपी की बुजुर्ग मण्डली' की तरह बिरादरी के बड़े बुजुर्गो ने परिवार वालो को समझाया की लड़का अपने पैरो पर खड़ा है लड़की भी अच्छे घर से है एक दूसरे को पसंद करते है। दोनों की शादी करवा दो अच्छा रहेगा वरना गरम खून है कुछ ऐसा वैसा कर लिया तो बिहार की हार की तरह किसी को मुहं दिखाने के काबिल नही रहोगे। और बदनामी 'आशाराम' से ज्यादा होगी। पर क्या है न की भारत पाक में क्रिकेट मैच तो हो सकता है दोस्ती नही। दोनों परिवार एक दूसरे पर इल्जाम लगाते रहे और समझोता नही हो सका।
आखिर जिसका डर था वो ही हुआ। राहिल दुआ को लेकर रातो रात फुर्र हो गया। दोनों के घरवालो के मिज़ाज़ ऐसे ठण्डे हो गए जैसे दिल्ली के चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी और कांग्रेस के।
दोनों प्रेमी ऐसे गायब हुए जैसे व्यापम घोटाले की फाइल,किसी को कुछ खबर नही। पुलिस ने भी कई जगह दबिश दी पर जैसे 'मफलरमैन' के दफ्तर पर रेड मरकर सीबीआई को कुछ नही मिला। वैसे ही पुलिस को भी कुछ हासिल न हुआ।
राहिल घर का अकेला कमाऊं बेटा था। उसके घर छोड़ते ही घर के हालत ऐसे बिगड़ गए जैसे लोकसभा के चुनाव के बाद कांग्रेस के । राहिल के अब्बू उसकी घर वापसी के लिए हाथ पाँव मरने लगे। और दुआ के घर वाले भी रूपये की तरह दिन पर दिन अपनी गिरती साख को बचाने के लिए छटपटाने लगे। थक हार कर मामला फिर से बिरादरी के बुजुर्गो के पास ले जाना पड़ा। बिरादरी ने माँ बाप को ही कसूरवार ठहराया और दोनों बच्चो की घरवापसी का फरमान सुनाया। इस तरह प्रेमी युगल घर लौट आया। और इश्क़ को मंज़िल मिल गई।