Sunday, August 21, 2016

सृष्टि की अनमोल रचना

झरोंको से झांकती धूप जब तेरे चेहरे को छूती है,
तुम सूरज बन जाती हो ।
आंगन में जब खिले फूलो के बीच जाती हो ,
तुम चंचल तितली बन जाती हो।
जब जब लहराता है रेशमी अंचल तेरा,
तुम पुरवाइयाँ बन जाती हो।
ये स्याह ज़ुल्फे करती है जब चेहरे से अठखेलियाँ, ये भौंरा ,
तुम खिलता कमल बन जाती हो।
शब्द जब जब तेरे होंठो को छूकर बरसते है।
तुम मीर की रुबाई,ग़ालिब की ग़ज़ल बन जाती हो।
काजल भरी नज़रो से यूँ तेरा जी भर कर ताकना,
तुम सच में कातिल बन जाती हो।
जब लगाती हो बेबाक ठहाके सब कुछ भुलाकर,
तुम मेरी पूरी दुनिया बन जाती हो।
नन्हे कदमो के पीछे मधम-मधम जब दौड़ लगाती हो ,
तुम सृष्टि की सबसे अनमोल रचना ममता बन जाती हो।