Thursday, October 13, 2016

मोहिनी



"देखो बाबू मोहिनी अभी ग्राहक के साथ बिजी है। वो नही मिल सकती। ज्यादा आग लगी है तो इनमें से कोई ले जा।" उसने कतार में खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा किया।
"नही,मुझे मोहिनी ही चाहिए।"
"ऐ ! ऐड़ा हे क्या,बात समझ में नही आती तेरे, बोला न मोहिनी बिजी है।और सुन और कोई नही चाहिए तो फूट यहाँ से"
"नही में बिना मिले नही जाऊँगा।" और वो ढीट बनकर वही बैठ गया। "
"हेल्लो...... औरत ने चुटकी बजाते हुए कहा। ज्यादा अन्ना हज़ारे बनने की कोशिश ना कर वरना ऐसी मार पड़ेगी के बाबा को तो स्त्री के कपडे भी नसीब हो गए थे। तुझे नंगा ही भागना पड़ेगा। हरामी साला....। धंधा तो पहले ही मंदा है ऊपर से ये ऐसे ढीठ ग्राहक सालो ने दिमाग का कश्मीर बना के रख दिया।"
"प्लीज...सुन ना,मिलवा दे ना मोहिनी से कुछ ले दे ले मैं 1000 दे सकता हूँ।अगर तू उस से मिला दे।"
"ओये सुन बे दल्ले साले हम यहाँ जिश्म बेचते है। हमारे भी कुछ कायदे है। ईमान खरीदना है तो बराबर में पुलिस स्टेशन है वहाँ जा समझा।और तू एक बात तो बता इतना पागल क्यों है तू मोहिनी के पीछे ऐसा क्या है उसमें जो इन सब में नही है।"
"आप जैसा समझ रही है ऐसा कुछ नही है मुझे कोई गलत काम नही करना है बस में तो उसके लिए कुछ अच्छा करना चाहता हूँ।"
"हा...हा...हा...उसने पान से लाल दांतो को दिखाते हुए बेहूदा सा ठहाका मारा। कुत्ते..नेता है क्या ? जो वोट से पहले ही मदद करना चाहता है।और वो भी पैसे देकर।"
"देखिये आप मुझे गलत समझ रही है मैं ऐसा नही हूँ। मैं शरीफ आदमी हूँ।"
"हुंन..न..न.. सारे शरीफजादे रंडियों के कोठो और संसद में ही तो आते है। भाग साले नोटंकी कही का।" उसने पान की पिचकारी पास रखे थूकदान में मारते हुए झिड़की लगाई। "अच्छा एक बता तुझे जब कुछ करना नही तो मिलना क्यों है? काम क्या है मोहिनी से ?"
"जी वो...वो....कुछ बात करनी है उसने हकलाते हुए कहा।"
"देख सुन बे तू जो भी है सही-सही बता दे अब, नही तो अपनी तशरीफ़ लेकर दफा हो जा यहाँ से मुझे गुस्सा आ गया तो तेरा ऐसा हाल करूंगी की रेलगाड़ियों में बधाई मांगता फिरेगा। ये कोठा है कोई मोबाइल बूथ नही कि बात करनी है"
"देखिये बहन जी आप मिलवाने के पैसे लेती है ना, तो आप मेहरबानी करके उस से मिला दे। मैं आप को जितना टाइम उसके साथ रहूँगा उसके पैसे दूँगा।" "ओये बिन बरसात के मेंढक बहन होगी तेरी माँ, पर ये बात तूने सही कही कि हम अपने वक़्त के पैसे लेते है।"औरत ने सोचते हुए कहाँ। "चल ठीक है। ढिल्ले मिलवाती हूँ।पर एक बात कान खोल कर सुन ले अगर तुने कोई चालाकी की या तू कोई फालतू का समाजसेवी निकला तो मेरे से बुरा कोई नही होगा। मुझे कोई लफड़ा नही मांगता मेरे कोठे पर।" औरत ने आँखों में आँखे डालते हुए कहा।
"जी...जी.. ऐसा कुछ नही है।आप निश्चिन्त रहे।"
"सुन दीपा देख तो मोहिनी फ्री हुई या नही, फ्री हो तो बोल के तुझसे देवदास मिलने आया है। हा..हा..हा..हा। साला हलकट।" पान का बीड़ा गाल में दबाते हुए उसने फिर से ठहाका मारा" एक लड़की मटकते हुए छम छम करती और तिरछी नज़रो से आदमी को घूरते हुए कमरे से बाहर चली गई।
"आपा........  फ्री है। पर कह रही है। कि अभी थकी हुई है। सांस ठिकाने आने दे जब ही कोई नया मुर्गा भेजना।" लड़की ने औरत से आकर कहा।
"ह्म्म्म.. ठीक है ठीक है। जा जाकर कोई ग्राहक फंसा सुबह से तेरी बोहनी नही हुई दीपा। बहुत ठंडी जा रही है तू आजकल।" उसने लड़की को फटकारते हुए से लहज़े में कहा। और आदमी से बोली। " दस मिलट रुक बे! मिलवाती हूँ। 500 की पत्ती दिल से जुदा कर" आदमी ने चुपचाप अपने बटुए से 500 का एक नोट निकाल कर औरत के हाथ पर रख दिया।
"पानी पियेगा या कुछ ठंडा मंगाऊँ।"
"जी..जी नही.. कुछ नही शुक्रिया।" आदमी पता नही किन सोचो में गुम था औरत की बात सुनकर थोड़ा हड़बड़ा कर बोला।
"डर मत इस मेहमान नवाजी के हम पैसे नही लेते।" और उसने आवाज़ लगाई "जुगनी दो पेप्सी लाना ठंडी सी।"
"आपा मोहिनी ने कहा है कि वो अब ठीक है मुर्गा भेज दे।" लड़की ने कोल्डड्रिंक की बोतल देते हुए कहा।
"जाओ जी आप की मुलाकात का वक़्त आ गया यहाँ से तीसरा कमरा मोहिनी का ही है। जा बे  ठंडे ये पेप्सी भी वही जाकर पी लेना।" औरत ने पेप्सी का घूँट गले से उतारते हुए कहा। "और सुन एक बार फिर कह रही है कुछ गड़बड़ नही चाहिए मुझे समझ लेना वरना नाम गुलाबबाई है पर में गुलाब जैसी हूँ नही।" औरत ने धमकी भरे अंदाज़ में आदमी को सिर से पांव तक ताड़ते हुए कहा।

"जी समझ गया।"
ठक-ठक... उसने तीसरे कमरे के सामने जाकर धीरे से दरवाजा खट खटाया।
"ज्यादा शरीफ ना बन अंदर आ जा दरवाज़ा खुला है ।" अंदर से एक चटकीली सी आवाज़ आई।
आदमी दरवाज़ा खोल कर अंदर चला गया। पूरा कमरा बीड़ी के धुंए से भरा हुआ था। सामने एक बेड पड़ा था और उस पर सिलवटों भरी एक मटमैली सी चादर जो कुछ देर पहले ही गुजरे लम्हो की दास्तान बयान कर रही थी। बेड के बगल में कुर्सी पर लगभग 25 -26  साल की लड़की अपने मुहँ से भट्टे की चिमनी की तरह धुंआ निकाल रही थी। कमरे में एक तो रौशनी कम थी ऊपर से धुआं इसिलए चेहरा साफ़ नज़र नही आ
रहा था। आदमी ने दरवाजा धीरे से बंद किया और लड़की की तरफ बढ़ा।
"रुक जा रुक जा इतनी भी क्या गर्मी चढ़ी है थोड़ा सब्र रख बीड़ी तो आराम से पीने दे। तू भी पियेगा क्या?" लड़की ने बीड़ी का लंबा सा कस मारते हुए कहा। आदमी कुछ नही बोला चुप-चाप आराम से बेड के एक कोने पर बैठ गया।
"इस उम्र में भी गर्मी नही गई तेरी।" लड़की ने बीड़ी बुझाते हुए कहा।
"चल अब ज्यादा टाइम कल्टी ना कर काम पे लग जा और भी कस्टमर है मेरे" उसने कॉन्डोम का पैकिट आदमी के ऊपर फेंकते हुए कहा।
"बि..ट... बिट्टू...." आदमी ने आँसूओ के साथ सिसकी लेते हुए मुश्किल से कहा।
कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया सांस लेने की भी आवाज़ नही आ रही थी। "कौन हो तुम ?" कहते हुए लड़की ने जल्दी से कमरे की खिड़की खोल दी। और फटी आँखों से देखते हुए जमीन पर ढह गई। कुछ देर बाद अपने बेतरतीब कपड़ो को सही करते हुए लड़की ने सिसकी भरी आवाज़ में बस इतना कहा "बाबा" ये सुनते ही आदमी दहाड़े मार-मार कर रोने लगा। लड़की जिसका नाम कुछ देर पहले तक मोहिनी था और जो बड़ी बेशर्मी से बक बक कर रही थी बहते आंसू और पथराई नजरो से उस आदमी को देख रही थी। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे और रोते रहे।
"आज अचानक यहाँ क्यों,कैसे?"
आदमी गर्दन झुकाये बैठा रहा कुछ नही बोला।
"भईया कैसा है" लड़की ने सिसकी दबाते हुए फिर पूछा। आदमी अब भी चुप ऐसे ही बैठा रहा ।
"हमारा घर, वो नीम का पेड़, मेरा झूला, गाँव की वो कच्ची कीचड़ से भरी गालियां,वो आम का बाग़ और बाबा वो मेरे सब दोस्त , सब कैसे है बाबा ?"  लड़की एक सांस में सब कुछ बोल गयी , मानो एक पल में सब कुछ जो पीछे छूट गया था उसे पाना चाहती हो जीना चाहती हो सब कुछ फिर से।
"बिट्टू मेरी बच्ची" आदमी ने उठ कर लड़की को गले से लगा लिया।

"आप यहाँ कैसे और क्यों आये है?" उसने डब बाई आँखों से देखते हुए कहा। 
"बिट्टू मैं तुम्हे लेने आया हूँ मेरी बच्ची।" आदमी ने सिसकी लेते हुए कहा।
"हरिपुर में लाला के बेटे की शादी में तुम्हे नाचते हुए देखा था। वहां बिरादरी की शर्म से कुछ ना कह सका बड़ी मुश्किल से पता ढूँढ़ते ढूँढ़ते आया हूँ बेटी मेरे साथ चलो घर।"

"बिरादरी की शर्म  ह्म्म्म....." इतना कहकर लड़की छत को घूरने लगी। 
"बिट्टू अब में तुझे यहाँ  से घर ले जाऊंगा।" आदमी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"घर...... हुं.... घर..." कहते कहते लड़की की हिचकी बंध गई। थोड़ी देर बाद खुद को संभालते हुए उसने कहा "देखिये आप अच्छे घर के नैक इंसान मालूम पड़ते है। मुझे ऐसे बार बार मत छुइए आप अपवित्र हो जायेंगे। और शायद आप को कोई गलतफेमी हुई है। मैं कोई बिट्टू सिट्टू नही हूँ मैं मोहिनी हूँ।
"नही नही ऐसे मत कहो" आदमी ने तड़प कर कहा उसका हाथ पकडते हुए कहा।

"अभी तो तुमने मुझे बाबा कहा था।"
"वो शायद आप को रोता देख कर मेरे मुहँ से निकल गया।" उसने हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"नही बेटी तुम मेरी बिट्टू ही हो अभी तुमने भईया को और सबको पूछा तुम मेरी बिट्टू ही हो।" आदमी ने लड़की का हाथ पकड़ते हुए बेचैनी से कहा।
"बेटी मुझे मेरी गलती की सजा मिल चुकी है। तेरी सौतेली माँ और भाई सब केदारनाथ में आई बाढ़ में बह गए मेरा अब तुम्हारे सिवा कोई नही है।" और वह घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया।
"देखिये मैं आप को नही जानती आप यहाँ से चले जाइए वरना में धक्के देकर आप को यहाँ से निकलवा दूंगी आप एक शरीफ और अच्छे आदमी है आप की बेटी इस कोठे पर कैसे हो सकती है। आपा..... आपा...लड़की ने चिल्लाकर आवाज़ लगाई। एक साथ कई लड़कियां दौड़ी आई क्या हुआ मोहिनी, आपा इसे निकल दीजिये बड़ा बेहूदा इंसान है शायद पागल है मुझे अपनी बेटी बता रहा है।"
 आदमी रोता रहा गिड़गिड़ाता रहा पर मोहिनी या और लड़कियों ने एक न सुनी और उसे धक्के मार कर गली से बहार पटक आये। मोहिनी खिड़की से देखती रही। बीते 12 सालों की एक-एक बात उसके जहन में घूमने लगी।
"बाबा मुझे नही जाना इनके साथ ये मेरे सगे मामा नहीं है। माँ की बातों में मत आइये मैं सारे काम करूंगी सब बात मानूँगी आप की, मुझे इनके साथ मत भेजिए मैं आप की बेटी हूँ।  मैं बिट्टू हूँ आप की बिट्टू।"
"अरे देखा मुझे माँ नही समझती तो मेरे भाई को मामा कैसे समझेगी, मैं तो इसके भले के लिए ही भेज रही हूँ। शहर में रहेगी कुछ तौर तरीके सीख लेगी फिर किसी अच्छे घर इसकी शादी कर देंगे। बाकि आप की मर्जी वैसे सौतेली माँ की कौन सुनता है ।"
"चटाक...चटाक...  दो थप्पड़ गालो को लाल कर गए। चुपचाप चली जा तेरे भले के लिए ही भेज रहा हूँ मै। बाबा....बाबा........
"क्या हुआ मोहिनी ?" दीपा दौड़ी हुई आई । मोहिनी जैसे नींन्द से जाग गई।
"नही कुछ नही बस ऐसे ही  इस आदमी को देख कर कुछ भूली बाते याद आ गई " उसने बेड की चादर से आँसू पोछते हुए कहाँ।

क्यों दिल छोटा करती है। हम सब है न यहाँ और वो तो कोई सटका हुआ आदमी था। चला गया। और सुन तेरा चहेता कस्टमर आया है राकेश, भेज दूँ क्या ?" दीपा ने आँख मरते हुए कहा।
"हाँ भेज दें।"

ना जाना कि दुनिया से जाता है कोई। 
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते।।
क़यामत भी आती थी हमराह उनके।
मगर रह गई हम-इना* आते आते।।


(लगाम, बंधी हुई, same rein, common bridle)



Sunday, October 2, 2016

मोहिनी (नाट्य रूपांतर )


                
पात्र: ५५ साल का अधेड़ आदमी, कोठे वाली आपा (गुलाबबाई), मोहिनी, दीपा, जुगनी, ३ चार लडकियां, शराबी आदमी (दलाल)

सूत्रधार :- (स्टेज पर सूत्रधार आता है। पुरे स्टेज पर अन्धकार है। केवल सूत्रधार के ऊपर ही प्रकाश है। सूत्रधार बोलता है।) आज हम आपके सामने एक ऐसा नाटक प्रस्तुत करने जा रहे है। जो सत्य घटना पर तो आधारित नही, परन्तु सत्य के बहुत करीब है। जो आधारित है। हमारे समाज की एक ऐसी डरावनी और काली सच्चाई पर जो आज भी खूब फूल फल रही है। जहाँ नारी केवल मनोरंजन का साधन मात्र है। केवल भोग की वस्तु है। जो हमारे बनवाटी समाज के झूठे रिश्तो और हमारी बीमार मानसिकता का प्रमाण है। तो पर्दा उठाते है उसी काली सच्चाई से। (इतना कहकर सूत्रधार अँधेरे में विलुप्त हो जाता है।)

                     (पहला दृश्य)

धीरे-धीरे पर्दा उठता है। स्टेज पर तवायफ के कोठे का सेट लगा है। शाम का समय है। कोठे पर मद्धम रौशनी है। नैपथ्य में कुछ फ़िल्मी गीतों की आवाज़ आ रही है। सामने ही एक तगड़ी सी औरत दीवान पर बैठी सरोते से छालिया (सुपारी) काट रही है। उसकी बगल में एक पानदान रखा है। कुछ लडकिया सजी धजी हाथो में अपनी चोटिया घूमाते इठलाती इधर से उधर घूम रही है। गलियो में राहगीर आ जा रहे है और लडकिया उन्हें अश्लील इशारे कर रही है।
स्टेज पर एक अधेड़ आदमी का प्रवेश होता है। उसने सफेद धोती और कुरता पहना रखा है। लडकिया उसे देखकर खिलखिला कर हंसती है। आदमी थोड़ा सा सहमकर इधर उधर देखता है। और लडकियो से पूछता है। 

अधेड़ आदमी - बी/१६३ ये ही है?

लडकियाँ (खिलखिलाकर)- डाकिया है क्या ?

अधेड़ आदमी - नही डाकिया नही हूँ पर मुझे बी/१६३ पर जाना है। (आदमी थोड़ा सा सकपकाकर बोलता है)
लडकियाँ (एक साथ बोलती है।) - डर मत तू सही जगह पर आया है। 

आपा- (गुलाबबाई जो दूर से ही इनकी बात सुन रही थी)- ऐ क्यों ग्राहक का टाइम खोटी करती हो, आने दो। आओ साहब (हाथ से इशारा करती है।) बोलो कौन सी चाहिए। सामने खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा करके पूछती है। 

आदमी - जी मुझे मोहिनी चाहिए।

आपा - (आश्चर्य से घूरते हुए) तू पहले तो कभी नही आया यहाँ, फिर मोहिनी को कैसे जनता है?

अधेड़ आदमी - जी दोस्तों से काफी नाम सुना है, उन्ही से पता पूछ कर आया हूँ। 

आपा - (मुस्कुराते हुए लड़कियों की तरफ हाथ करके) देखा इसलिए मैं मोहिनी को तुम सब से जायदा प्यार करती हूँ। ग्राहक जाकर तारीफ करते है उसकी। सीखो कुछ हराम खोरो। (फिर आदमी की तरफ देख कर बोलती है) सारी साहब पर मोहिनी नही मिल सकती इस बख़्त। 

अधेड़ आदमी - पर मुझे तो मोहिनी ही चाहिए। 
आपा - पर साहब ये सब भी तो काफी अच्छी है। इनमे से ले जाओ कोई। देखो वो सनम है। कमाल की लड़की है उसे ले जाओ। 

अधेड़ आदमी - (थोडे उतावले पन से) आप समझ नही रही मुझे मोहिनी ही चाहिए। 

आपा - (थोड़े से तल्ख़ अंदाज में) - देखो बाबू मोहिनी अभी ग्राहक के साथ बिजी है। वो नही मिल सकती। ज्यादा आग लगी है तो इनमें से कोई भी ले जा।" (कतार में खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा करते हुए कहती है।)

अधेड़ आदमी- (बैचेन सा होकर) नही, मुझे मोहिनी ही चाहिए।
आपा - (गुस्से से झल्लाकर) ऐ! ऐड़ा है क्या, बात समझ में नही आती तेरी, बोला न मोहिनी बिजी है। और सुन और कोई नही चाहिए तो फूट यहाँ से"

आदमी - (थोडी सी हठधर्मी के साथ) नही में बिना मिले नही 
जाऊँगा। (और वो ढीट बनकर वही बैठ गया।)

आपा - (गुस्से से खड़ी हो जाती है। और चुटकी बजाते हुए कहती है) "हेल्लो...... ज्यादा अन्ना हज़ारे बनने की कोशिश ना कर वरना ऐसी मार पड़ेगी के बाबा को तो स्त्री के कपडे भी नसीब हो गए थे। तुझे नंगा ही भागना पड़ेगा। हरामी साला....। धंधा तो पहले ही मंदा है ऊपर से ये ऐसे ढीठ ग्राहक सालो ने दिमाग का कश्मीर बना के रख दिया।"

अधेड़ आदमी - (आपा की बातो को अनसुना करके ढीटता के साथ) अगर आप मुझे मोहिनी से मिलवा देगी तो मैं 1000 दे सकता हूँ। सोच लो ।

आपा- (गुस्से से थोड़ी तेज़ आवाज़ में) ओये सुन बे दल्ले साले हम यहाँ जिस्म बेचते है। हमारे भी कुछ कायदे-कानून है। ईमान खरीदना है तो बराबर में पुलिस स्टेशन है वहाँ जा समझा। और तू एक बात तो बता इतना पागल क्यों है तू मोहिनी के पीछे ऐसा क्या है उसमें जो इन सब में नही है। (पास खड़ी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहती है।)

अधेड़ आदमी - आप जैसा समझ रही है ऐसा कुछ नही है मुझे कोई गलत काम नही करना है। बस में तो सिर्फ एक बार उस से मिलना चाहता हूँ।

आपा - (हा...हा...हा... पान से लाल दांतो को दिखाते हुए बेहूदा सा ठहाका मारती है।) साले हरामी तू..नेता है क्या? जो वोट से पहले ही मदद करना चाहता है। और वो भी पैसे देकर।

अधेड़ आदमी - (थोड़ा सा शर्मिदा होकर) देखिये आप मुझे गलत समझ रही है मैं ऐसा नही हूँ। मैं शरीफ आदमी हूँ।

आपा - (हुंन.न..न.. गहरी सांस लेकर पान की पिचकारी पास रखे थूकदान में मारते हुए) सारे शरीफजादे रंडियों के कोठो और संसद में ही तो आते है। भाग साले नोटंकी कही का। और हाँ एक बात तो बता तुझे जब कुछ करना नही तो मिलना क्यों है? काम क्या है मोहिनी से?"

अधेड़ आदमी - (हकलाते हुए) जी वो...वो....कुछ बात करनी है उसने हकलाते हुए कहा।"
आपा- (हाथ की ऊँगली हिलाते हुए) अच्छा देख अब यहाँ से फूट जा कल्टी मार वरना लड़कियों से बोल कर तेरा वो हाल करुँगी के सारी उम्र याद रखेगा। 
अधेड़ आदमी औरत की बात सुनकर चुपचाप वहां से चला जाता है। हरामी पता नही कहाँ-कहाँ से आ जाते है। नामुराद बोहनी के टाइम दिमाग की दही कर दी आपा के बड़बड़ाने की आवाज़ आती है। अब स्टेज पर धीरे धीरे अंधकार होने लगता है। और अन्धकार से सूत्रधार की आवाज़ उभरती है। 


सूत्रधार - कौन था ये आदमी, जो इस उम्र में भी इन बदनाम गलियो में अपनी हवस का बोझ लिए घूम रहा है। क्या वो कोई समाज सेवक था। जो मोहिनी को इस जहन्नुम से आजाद कराना चाहता है। या हवस की आग में जलता कोई ग्राहक जिसे सिर्फ मोहिनी ही चाहिए थी। आये देखते है।
                            
                    (दूसरा दृश्य)

स्टेज पर धीरे धीरे रौशनी होने लगती है। सामने गली के नुक्कड़ पर एक चाय के ठेले के पर वो ही अधेड़ आदमी हाथ में चाय का कप लिए बैठा है। और गुलाब बाई के कोठे की तरफ देख रहा है। नेपथ्य में फ़िल्मी गानो की आवाज़ आ रही है। एक शराबी किस्म का आदमी अधेड़ के पास आता है। 
शराबी आदमी - (अधेड़ की तरफ आँख मरते हुए) क्यों साहब मोहिनी पर दिल आ गया क्या? खैर आपकी ही क्या गलती मोहिनी माल ही ऐसा है। मुलाकात हुई या नही। (खिलखिलाकर भँवरे मटकाता है।)

अधेड़ आदमी - आप कौन हो और आप को कैसे पता की मुझे मोहिनी से मिलना है। 

शराबी आदमी - (ठहाका लगते हुए) मैं इन बदनाम गलियो का ठेकेदार हूँ। मोहिनी से मिलना है है तो एक ५०० सो का हरा पत्ता निकाल। 

अधेड़ आदमी - (उसकी तरफ बेयक़ीनी से देखते हुए) तुम दलाल हो? 

शराबी आदमी - (खिस्यानी सी हंसी के साथ) बाबु तमाशा देखना है तो पैसे निकाल। मैं कौन हूँ ये छोड़। 

अधेड़ आदमी - (चाय का कप रखते हुए) ठीक है पहले मिलवाओ फिर पैसे दूंगा। 

शराबी आदमी - देख बाबु ये धंधा गन्दा जरूर है। पऱ यहाँ जिस्म के साथ जुबान का भी मोल है। कह दिया मिलवा दूंगा तो मिलवाऊंगा समझे। 

अधेड़ आदमी - (जेब में हाथ डालकर पैसे निकालने लगता है।) ये लो। 

शराबी आदमी - (500 का नोट चूम कर जेब में रख लेता है) देख बाबु अपने रिस्क पर तुझे गुलाबो के कोठे पर दोबारा ले जा रहा हूँ। कोई गड़बड़ की तो समझ लेना यहाँ इज़्ज़त का कोई मोल नही। 

अधेड़ आदमी- पता है मुझे ।

और चुप-चाप उस दलाल के साथ चल देता है। अब प्रकाश उन पर से हटकर स्टेज के दूसरी और चला जाता है। जहाँ गुलाब बाई का कोठा है। कोठा पहले की तरह ही है। दोनों आदमी अंदर दाखिल होते है। 

शराबी आदमी - (जबरदस्ती से मुस्कुराते हुए) आपा क्या हाल चाल। 

आपा - (शराबी के साथ अधेड़ को देखकर कुछ गुस्से में) साले हलकट तू फिर ले आया इस सनकी को। 

शराबी आदमी - अरे आप क्यों काम के टाइम दिमाग को परेशान कर रही है। (धीरे से कान के पास जाकर) मोटी चिड़िया है फंसा लो, एक बार मोहिनी का चस्का लग गया न तो सोने की मुर्गी साबित होगा। जमीन जायदाद सब लुटा देगा। 

आपा - (शराबी की बातो से थोड़ी सी प्रभावित होकर अधेड़ से) देखो बाबु वैसे तो जिसे हम एक बार अपनी दहलीज से दुत्कार देते है। उसे फिर दुबारा फटकने नही देते। पर जब ये मुआ (शराबी की तरफ देखकर) आप को दोबारा ले ही आया तो आ जाओ। पर मोहिनी अभी भी व्यस्त है। 

अधेड़ आदमी - देखिये मुझे मोहिनी ही चाहिए। और मुझे कोई गलत काम नही करना बस मैं उसे देखना चाहता हूँ बाते करना चाहता हूँ उससे।

आपा- (थोड़ा सा मुस्कुराकर) शर्माओ नही यहाँ शर्म नही रहती, और तेरे जैसे खूसट यहाँ बात करने के हज़ारो रुपाये नही लुटाते। 


अधेड़ आदमी - देखिये में ओरो की तरह नही हूँ। 

आपा - (फिर से गुस्से से तन तनाकर) देख सुन बे तू जो भी है सही-सही बता दे अब, नही तो अपनी तशरीफ़ लेकर दफा हो जा यहाँ से मुझे गुस्सा आ गया तो, तेरा ऐसा हाल करूंगी की रेलगाड़ियों में बधाई मांगता फिरेगा। ये कोठा है कोई मोबाइल बूथ नही कि बात करनी है। 

अधेड़ आदमी - (थोड़ा सा घबराकर) देखिये बहन जी आप मिलवाने के पैसे लेती है ना, तो आप मेहरबानी करके उस से मिलावा दे। मैं आप को जितना टाइम उसके साथ रहूँगा उसके पैसे दूँगा।

आपा - (थोड़ा सा चिढ़कर) ओये बिन बरसात के मेंढक बहन होगी तेरी माँ, पर ये बात तूने सही कही कि हम अपने वक़्त के पैसे लेते है। चल ठीक है। ढिल्ले मिलवाती हूँ। पर एक बात कान खोल कर सुन ले अगर तुने कोई चालाकी की या तू कोई फालतू का समाजसेवी निकला तो मेरे से बुरा कोई नही होगा। मुझे कोई लफड़ा नही मांगता मेरे कोठे पर। (अधेड़ के साथ साथ शराबी आदमी की तरफ भी ऊँगली घुमाकर आँखों में आँखे डालते हुए कहती है।)
अधेड़ आदमी - (खुश होकर) जी...जी.. ऐसा कुछ नही है। आप निश्चिन्त रहे।
आपा - (एक लड़की को आवाज़ लगाकर) ऐ..... दीपा देख तो मोहिनी फ्री हुई या नही, फ्री हो तो बोल के तुझसे देवदास मिलने आया है। हा..हा..हा..हा। साला हलकट। (पान का बीड़ा गाल में दबाते हुए ठहाका मारती है)

(एक लड़की जिसका नाम दीपा है। मटकते हुए छम छम करती और तिरछी नज़रो से आदमी को घूरते हुए कमरे से बाहर चली जाती है। आदमी चुप-चाप ऐसे ही खड़ा रहता है। थोड़ी देर बाद वो ही लड़की अंदर आती है।)

दीपा - आपा........  फ्री है। पर कह रही है। कि अभी थकी हुई है। सांस ठिकाने आने दे जब ही कोई नया मुर्गा भेजना।
आपा - ह्म्म्म.. ठीक है ठीक है। जा जाकर कोई ग्राहक फंसा सुबह से तेरी बोहनी नही हुई दीपा। बहुत ठंडी जा रही है तू आजकल। (लड़की को फटकारते हुए से लहज़े में कहती है)

आपा- (अधेड़ आदमी से) "दस मिलट रुक बे! मिलवाती हूँ। तब तक १००० रुपए दिल से जुदा कर। 

(आदमी चुपचाप अपने बटुए से ५००-५०० के दो  नोट निकाल कर औरत के हाथ पर रख देता है। शराबी आदमी आपा की तरफ देखता। आपा उसका आशय समझ जाती है और एक सो का नोट उसे पकड़ा देती है। शराबी खुश होकर दीपा के साथ मुस्कुराता हुआ वहां से बहार चला जाता है।) 
कमरे में केवल गुलाब बाई (आपा) और अधेड़ आदमी ही रह जाते है।)
आपा- पानी पियेगा या कुछ ठंडा मंगाऊँ।"
अधेड़ आदमी - (थोड़ा सकपकाते हुए) जी..जी नही.. कुछ नही शुक्रिया।
आपा- डर मत इस मेहमान नवाजी के हम पैसे नही लेते। (और आवाज़ लगाती है) जुगनी..... दो पेप्सी लाना ठंडी सी।

(दूसरे कमरे से मेकअप से पुते चेहरे वाली एक लड़की जिसका नाम जुगनी है। ट्रे में दो पेप्सी की बोतल रखे हुए अंदर आती है।)

जुगनी - (कोल्डड्रिंक की बोतल देते हुए) आपा मोहिनी ने कहा है कि वो अब ठीक है। कस्टमर को भेज दे।

आपा- (आदमी की तरफ कोल्ड्रिंक की बोतल बढ़ाते हुए) जाओ जी आप की मुलाकात का वक़्त आ गया। यहाँ से तीसरा कमरा मोहिनी का ही है। ये पेप्सी भी वही जाकर पी लेना। और सुन एक बार फिर कह रही है कुछ गड़बड़ नही चाहिए मुझे समझ लेना वरना नाम गुलाबबाई जरूर है पर में गुलाब जैसी हूँ नही। (धमकी भरे अंदाज़ में आदमी को सिर से पांव तक ताड़ती है)

अधेड़ आदमी - जी बेफिक्र रहिये।

(आदमी धीरे धीरे दूसरी तरफ चल देता है। स्टेज पर अँधेरा होने लगता है। नेपथ्य में गानो की आवाज़ आती रहती है। एक बार फिर सूत्र धार की आवाज़ आती है।)

सूत्रधार- आखिर इस अधेड़ का मसला क्या है। क्यों ये मोहिनी (जिसे इसने पहले देखा तक नही बस दोस्तों से नाम ही सुना है) मिलने के लिए इतना बेकरार है। क्या गुलाबबाई का शक सही है। कि ये कोई समाज सेवक है। या ये कोई बहरूपिया है। जो मोहिनी के बहाने अपना कोई हित साधना चाहता है। आये देखते है आखिर इस आदमी का सच क्या है। और कौन है मोहिनी।
                       
                    (अंतिम दृश्य)

स्टेज पर मद्धम सी रौशनी हो जाती है। अधेड़ आदमी एक दरवाजे के सामने खड़ा है। 

अधेड़ आदमी (ठक-ठक...दरवाज़ा खट खटाता)अं दर से एक चटकीली सी आवाज आती है। ज्यादा शरीफ ना बन अंदर आ जा दरवाज़ा खुला है। अधेड़ आदमी दरवाज़ा खोल कर अंदर चला जाता है। पूरा कमरा बीड़ी के धुंए से भरा हुआ है। सामने एक बेड पड़ा था और उस पर सिलवटों भरी एक मटमैली सी चादर बिछी है। बेड के बगल में कुर्सी पर लगभग 26-27 साल की लड़की जिसका नाम मोहिनी है वो बैठी है और अपने मुहँ से भट्टे की चिमनी की तरह धुंआ निकाल रही। कमरे में कम रौशनी और धुएं के कारण लड़की का चेहरा साफ़ नज़र नही आ रहा है। अधेड़ आदमी धीरे से दरवाजा बंद करता है। और लड़की की तरफ बढ़ता है।

मोहिनी - (हाथ से रुकने का इशारा करते हुए) रुक जा इतनी भी क्या गर्मी चढ़ी है थोड़ा सब्र रख बीड़ी तो आराम से पीने दे। तू भी पियेगा क्या?

अधेड़ आदमी कुछ नही बोलता है चुप-चाप आराम से बेड के एक कोने पर बैठ जाता है। 

मोहिनी- (आदमी के हाव-भाव और क़द काठी देखकर बोलती है) इस उम्र में भी गर्मी नही गई तेरी। 

(आदमी अब भी कुछ नही बोलता है।)
मोहिनी- बीड़ी को जमीन पर फेंकती है और कुर्सी से उठकर पास से एक कंडोम का पैकिट उठाकर आदमी के ऊपर फेंकती है) चल अब ज्यादा टाइम कल्टी ना कर काम पे लग जा और भी कस्टमर है मेरे।
अधेड़ आदमी-(रोते हुए सिसकी भरी आवाज में) बि..ट... बिट्टू....।
कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा हो जाता है। सांस लेने की भी आवाज़ नही आती। 

मोहिनी- (चोंककर जल्दी से कमरे की खिड़की खोल देती है। और पास जाकर बोलती है।) कौन हो तुम? और अधेड़ का चेहरा फटी आँखों से देखते हुए जमीन पर ढह जाती। कमरे में फिर कुछ देर के लिए सन्नाटा हो जाता है। अब मोहिनी धीरे धीरे अपने बेतरतीब कपड़ो को सही करते हुए। जमीन से उठती है। आदमी पागलो की तरह मोहिनी को देख रहा है।

मोहिनी- (सिसकी भरी आवाज़ में) बाबा तुम ।

इतना सुनते ही आदमी दहाड़े मार-मार कर रोने लगता है। लड़की जिसका नाम कुछ देर पहले तक मोहिनी था और जो बड़ी बेशर्मी से बक बक कर रही थी बहते आंसू और पथराई नजरो से उस आदमी को देखती रहती है। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे और रोते रहे। फिर मोहिनी बोलती है।
मोहिनी- (हाथो से आंसू पूछते हुए) आज अचानक यहाँ क्यों, कैसे?"
अधेड़ आदमी गर्दन झुकाये बैठा रहता कुछ नही बोला।
मोहिनी- (सिसकी दबाते हुए एक सांस में बोलती है) भैय्या कैसा है? हमारा घर, वो नीम का पेड़, मेरा झूला, गाँव की वो कच्ची कीचड़ से भरी गालियां, वो आम का बाग़ और बाबा वो मेरे सब दोस्त, सब कैसे है बाबा?"
अधेड़ आदमी- (मोहिनी के पास आकर) मेरी बच्ची तू कैसी है?

मोहिनी- (अधेड़ आदमी की बात काटते हुए डब डबाई आँखों से) आप यहाँ इतने सालों के बाद कैसे और क्यों आये है? 

अधेड़ आदमी- (सिसकी भरते हुए) मैं तुम्हे लेने आया हूँ मेरी बच्ची। पिछले महीने हरिपुर में लाला के बेटे की शादी में तुम्हे नाचते हुए देखा था। वहां बिरादरी की शर्म से कुछ ना कह सका बड़ी मुश्किल से तेरा पता ढूँढ़ते ढूँढ़ते आया हूँ बेटी मेरे साथ घर चलो।

मोहिनी- (आदमी की तरफ देखते हुए) बिरादरी की शर्म  ह्म्म्म.....।

अधेड़ आदमी- (मोहिनी के सर पर हाथ रखते हुए) अब में तुझे यहाँ  से घर ले जाऊंगा बेटी।

मोहिनी- (तिरिस्कार भरी नजरों से आदमी को देखते हुए) घर...... हुं.... घर...(कहते कहते रोने लगती है)

आदमी बेबस सा मोहिनी की तरफ देखता रहता है। और उसके कंधों पर हाथ रख देता है।
मोहिनी- (आदमी की तरफ से मुंह फेरकर) देखिये आप अच्छे घर के नैक इंसान मालूम पड़ते है। मुझे ऐसे बार बार मत छुइए आप अपवित्र हो जायेंगे। और शायद आप को कोई गलतफेमी हुई है। मैं कोई बिट्टू सिट्टू नही हूँ मैं मोहिनी हूँ।

अधेड़ आदमी - (एकदम सकपका कर) नही नही ऐसे मत कहो बेटी, अभी तो तुमने मुझे बाबा कहा था।

मोहिनी- वो शायद आप को रोता देख कर मेरे मुहँ से निकल गया।
अधेड़ आदमी- (तड़पकर बेचैनी से) नही बेटी तुम मेरी बिट्टू ही हो अभी तुमने भईया को और सबको पूछा था। तुम मेरी बिट्टू ही हो। बेटी मुझे मेरी गलती की सजा मिल चुकी है। तेरी सौतेली माँ और भाई सब के सब केदारनाथ में आई बाढ़ में बह गए मेरा अब तुम्हारे सिवा कोई नही है। (और वह घुटनों के बल जमीन पर बैठ जाता है)

मोहिनी- (सपाट लहजे में) देखिये मैं आप को नही जानती आप यहाँ से चले जाइए वरना में धक्के देकर आप को यहाँ से निकलवा दूंगी आप एक शरीफ और अच्छे आदमी है आप की बेटी इस कोठे पर कैसे हो सकती है। (और चिल्लाने लगती है)
मोहिनी- आपा..... आपा...

एक साथ कई लड़कियां और गुलाबबाई (आपा) दौड़ीती हुई आती है।

आपा- (जमीन पर घुटने के बल बैठे अधेड़ की तरफ देखते हुए) क्या हुआ मोहिनी?

मोहिनी- (आदमी की तरफ ऊँगली से इशारा करते हुए) आपा इसे निकल दीजिये बड़ा बेहूदा इंसान है शायद पागल है मुझे अपनी बेटी बता रहा है।
आपा- (गुस्से से) साले हरामी मैं तुझसे पहले ही बोली थी कि कोई लफड़ा नही करना । पर तू माना नही। ऐ लड़कियों फेंक दो उठाकर इसे बहार। और अगर आइंदा इधर नज़र भी आये तो साले के कपडे फाड़ कर नंगा कर देना।

लडकिया अधेड़ को घसीटते हुए कमरे से बहार ले जाती है। आदमी बिट्टू मेरी बच्ची, बिट्टू…बिट्टू चिल्लाता रहता है। सब लडकिया और आपा स्टेज से चली जाती है। और मोहिनी बेदम सी वही बैठ जाती है। और रोते हुए बोलने लगती है।
मोहिनी- बाबा जब मुझे सौतेली माँ अपने भाई के साथ शहर भेज रही थी। मैं भी ऐसे ही बाबा..बाबा चिल्ला रही थी। काश! आपने उस दिन मेरी बात सुनी होती, काश! आपने उस दिन माँ की बात न सुनकर मुझे रोक लिया होता। तो आज आप की बिट्टू यूँ इन बदनाम गलियों की जीनत नही बनते। अब मै आप के साथ कैसे जा सकती हूं। अब बहुत देर से आये है बाबा काश आप पहले आ जाते। अब तो आप की बिट्टू मर चुकी है यहाँ अब बिट्टू नही सिर्फ मोहिनी है। और दहाड़े मार मार कर रोने लगती है। स्टेज पर धीरे धीरे अँधेरा होने लगता है।

और सूत्रधार की आवाज आती है।
ना जाना कि दुनिया से जाता है कोई। 
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते।।
क़यामत भी आती थी हमराह उनके।
मगर रह गई हम-इना* आते आते।।

और पर्दा गिर जाता है।


हमसफ़र

"अम्मी क्यों ? आप खामा खा इतनी परेशान होती है। हो जाएगी मेरी शादी आप टेंशन न ले...। "अरे बेटी क्यों न लूँ टेंशन तेरी उम्र  की सब लडकियाँ अपने घर-बार की हो गई है। ओर बेटी  मैं तो माँ हूँ। मुझे फ़िक्र होती है। अल्लाह करे कल तुम उन्हें पसन्द आ जाए तो मैं शुकर की नमाज़ पढूंगी।" जैनब ने लंबी सांस लेते हुए कहा।
"बहुत मज़ा आता है आप को मेरी नुमाइश लगाते हुए।" उसने गुस्से से कहा।
"नुमाइश कैसी पगली ये तो रिवाज़ है और अच्छा ही तो है मिलकर पहले ही सारे मामले तय हो जाये बाद में कोई परेशानी नही होती है।"
"तो लगाती रहिये हर आठवे दिन मेरी नुमाइश जानवरो की तरह, कोई पूछेगी जरा चलके दिखाना ?  कोई बोलेगी,बाल खुले रखती हो या चोटी बनाती हो बेटी ? कमीनी सीधे ही पूछ ले बाल कितने लम्बे है। ऊपर से खाने पीने की चीज़ों पर नदीदो की तरह ऐसे टूटते है मानो कई दिन के भूखे है।" 
"बेटा ये सब करना पड़ता है और अब तुम इतनी भी जाहिल ना बनो।" 
"पर अम्मी आप को पता है इन रोज़-रोज़ के चक्करो में पूरे महीने का बजट गड़बड़ा जाता है। अब्बू की मुक्तसर तनख्वाह है। और पुरे महीने मैं देखती हूँ आप कैसे हलकान होती है एक-एक चीज़ के लिए...... ।" "रिदा गलत बात है बेटा ऐसे नाशुक्री नही भेजते अल्लाह का शुकर है दो वक़्त अच्छी रोटी खाते है।" 
"हाँ पता है मुझे, सब कुछ होने के बाद बात दहेज़ पर आ जाती है " उसने गुस्से से मुंह बनाते हुए कहा।
"अच्छा अपना ज्यादा खून न जला सब लोग बुरे नही होते अच्छे लोग भी दुनिया में है बेटा जो दहेज़ को तवज्जो नही देते।
 "ये जिन्हें आप अच्छे लोग कहती है न बस किस्से कहानियो में  ही मिलते है" 
"अच्छा बस अब ख़त्म कर अपनी ये बेहुदा तक़रीर,शकीला बोल रही थी के वे लोग सुबह जल्दी आएंगे। जाकर कुछ तैयारी कर ले और घर की साफ़-सफाई भी अच्छे से कर लेना।"
"ये शकीला खाला तो किसी दिन मरेगी मेरे हाथ से। ये ही लाती है रोज़-रोज़ नये रिश्ते, चटोरी कही की।"  "तौबा है रिदा शर्म करो बड़ी है वो तुम्हारी,जाओ अब यहाँ से जो मुंह में आता है बके जाती है।"

मुस्तकीम मियां डाकघर में बाबू  है। रिदा, सदफ फिर अली और आलम दो लड़की और दो लड़के चार औलाद है सब पढाई में मसरूफ है। रिदा सबसे बड़ी है अभी बी ए से फारिग हुई है और जैनब को उसकी शादी की फिक्र हो गई वैसे भी लोअर मिडिल क्लास में लड़कियों की शादी हमेशा से बड़ा मशलाह होता है। रिदा जॉब करना चाहती थी पर अम्मी को उसकी शादी की जिद्द है।  इसीलिये आये दिन कोई न कोई रिश्ता आता ही रहता है। और रिदा इन सब से परेशान हो जाती है।

"बाज़ी हमे आप की लड़की माशाल्लाह बहुत पसन्द है। एक मोटी सी खातून जो लड़के की माँ थी उसने समोसे को चटनी में डुबकी लगवाते हुए कहा।  "कमीनी तेरे से दस साल छोटी होगी मेरी अम्मी आयी कही से बाजी.......कहने वाली।" रिदा ने दिल ही दिल में दांत पीसते हुए कहा। "देखिये बाजी बस अच्छी शक्लो सूरत से तो घर नही चलता और भी बहुत कुछ  होता है जैसे खाना बनाना,कपडे धुलना सिलाई कढ़ाई वगैरह ये सब तो कर लेती हो न बेटा? अम्मी से मुखातिब होते हुए एक दूसरी खातून (जो लड़के की फुफ्फ़ो थी) ने मुझसे सवाल किया। "दिल तो किया बोल दूँ की बहु ढूंढ रही हो या नोकरानी पर अम्मी की आँखों ही आँखों में धमकी देख कर मैंने हाँ में गर्दन हिला दी।" "माशाल्लाह बहुत खूब मुझे अपने राहिल के लिए ऐसी ही बीवी चाहिए थी। बाजी हमारी तरफ से रिश्ता पक्का समझो बाकि अब आप के हाथ में है।" मोटी ने काजू कतली पर हाथ साफ़ करते हुए कहा।

"और राबिया माशाल्लाह हमारी रिदा ने बी.ए. भी किया है।" शकीला खाला जो अब-तक बस कोल्डड्रिंक और बाकि खाने की चीज़ों में ही मसरूफ थी पहली बार बोली और मुझे उनकी ये बात अच्छी लगी चलो कुछ तो ढंग की बात की इन्होंने मेरे बारे में। "देखिये जी हमे नौकरी तो करानी नही पढ़ी लिखी है सही है  पर अनपढ़ भी होती तो हमे कोई फर्क नही पड़ता हमे तो बस एक सलीकेमन्द बहु चाहिए। मोटी जिसका नाम अभी-अभी मुझे पता लगा कि राबिया है ने एक ही सांस में कोलड्रिंक के गिलास को गटकते हुए कहा।"
"दिल तो किया की मोटी के बाल नोच लू पर तहज़ीब और तरबियत आड़े आ गई।" अम्मी तो जैसे निहाल ही हुई जा रही थी उनकी तो दिली मुराद पूरी हो रही थी। "जी बहुत शुक्रिया आप ने हमारी बेटी को अपने घर की बहु बनने के काबिल समझा पर अगर सब कुछ तय करने से पहले लेन- देन की बात भी कर ले तो मैं समझती हूँ बेहतर रहेगा। वैसे तो अल्लाह के करम से हम से जो बन सकेगा हम देंगे पर फिर भी अगर आप की कोई ख्वाईश हो तो बताइये।" अम्मी ने मसनवी अपनी तरफ से दहेज़ की बात की। "देखिये बाज़ी हमारा राहिल माशाल्लाह बैंक में मैनेजर है। और हमारे घर में किसी भी चीज़ की कमी नही बस हमे तो आप की बेटी चाहिए बाकि जो भी आप अपनी बेटी और दामाद को देना चाहे हमे कोई मसला नही। " मुझे तो लगा था कि मोटी जरूर लंबी सी लिस्ट बना कर लायी होगी पर उसकी बात सुनकर मुझे यकीन नही हुआ और खुद अपनी सोच पर नदामत भी हुई।  क़ि मैं खामा खा इनके बारे में अनाप सनाप सोचे जा रही थी "
"अच्छा तो ठीक है अब आप लोग मशवरा कर के हमे खबर कर दीजियेगा  मेरी होने वाली सास ने बड़ी मुहब्बत से मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा। और बस अब इज़ाज़त दीजिये। अरे बातो-बातो में, मैं तो भूल ही गई अगर आप को ऐतराज़ न हो तो क्या में बच्ची की एक फोटो खींच लू ? "जी.......  जी क्यों नही" अम्मी से पहले शकीला खाला बोल पड़ी और उसने खटाक से मेरी फोटो अपने फोन में कैद कर ली।

अब्बू और चाचू ने लड़के और उसके घर वालो के बारे में काफी तहकीकात की और सब कुछ पसंद आने पर एक महीने बाद की शादी तय कर दी।  अब्बू ने कुछ अपने फण्ड और कुछ क़र्ज़ लेकर शादी की तैयारी शुरू कर दी लड़के वालो की तरफ से बस एक मांग थी कि शादी किसी अच्छे से मेर्रिज हाल में हो और खाने का इंतज़ाम भी अच्छा हो जो की कोई बड़ा मशला नही था। अम्मी और अब्बू ने अपनी हैसियत से बढ़ कर सब तैयारी की थी और वो मुतमईन थे कि चलो सब अच्छे से निपट जायेगा। पर अगर सब कुछ इतना आसान हो तो ज़िन्दगी इतनी मुश्किल न हो।

शादी से तीन  दिन पहले शकील खाला एक तूफ़ान लेकर आई  लड़के वालो ने कहलवाया था कि उन्हें कार चाहिए थी दहेज में। इस खबर ने हम सब के होश उडा दिए खुशी का माहौल पल में मातम में बदल गया। अब्बू की हालत बहुत बुरी थी जो कुछ था सब पहले ही खर्च कर दिया और अब जबकि शादी में तीन दिन बचे थे ये नामुमकिन सी मांग कैसे पूरी करेंगे। चाचू और अब्बू ने लड़के वालो से बात की पर उनका कहना था कि  उनका लड़का इतना काबिल है और समाज में उनकी काफी इज़्ज़त भी है अगर दहेज़ में कार  नही मिली तो उनकी क्या इज़्ज़त रह जाएगी। अब्बू ने काफी मिन्नतें की पर उन्होंने दो टूक लहजे में जवाब दे दिया कि अगर कार नही मिली तो वें बारात नही लाएंगे। बिरादरी में शादी के कार्ड बट चुके थे वक़्त पर बारात नही आई तो हमारी तो इज़्ज़त की धज्जिया  उड़ जाएँगी। अब्बू और अम्मी ये सोच सोच कर मरे जा रहे थे।

मेरी हालत ऐसी थी के काटो तो खून नही अब्बू और चाचू ने काफी भाग दौड़ की पर कुछ न हो सका आखिर थक हार कर घर को बेचने का फैसला किया गया। ये बात सुनकर मेरा मारने का दिल किया आज समझ में आया की लडकिया क्यों बोझ होती है क्यों उनकी पैदाइश पर लोग मातम करते है। मैंने अम्मी को साफ़ मना कर दिया।
"अम्मी मैं ये शादी नही करूँगी। मैं अपना घर बसाने के लिए अपने घर वालो के सिर से छत नही छीन सकती "
"पागल मत बनो रिदा अब्बू कुछ न कुछ  कर लेंगे बेटी।" "क्या कर लेंगे खुद को बेच देंगे।" आंसुओ का सेलाब था के रुकने का नाम ही नही ले रहा था।  फोन पर किये गए राहिल के बड़े बड़े वादे प्यार वफ़ा की बात सब तीर बनके दिल में चुभ रहे थे। "अम्मी में राहिल से बात करूँगी अभी " "पर.......  रिदा इस वक़्त.......  इतनी रात को और क्या बात करोगी बेटी तुम ? नही तुम परेशान न हो बेटी अल्लाह सब ठीक कर देगा अब्बू और चाचू लगे हुए है कुछ न कुछ हल जरूर निकल आयेगा।" "नही मुझे बात करनी है "  और राहिल का नंबर मिला दिया।  दूसरी  तरफ से कोई फ़ोन नही उठा रहा था उसने दोबारा ट्राई किया।
 हेल्लो.......  कौन....... रिदा तुम  क्या बात है इतनी रात को सब खैरियत "
"मुझे आप से शादी नही करनी आप बरात लेकर न आये हमारे यहाँ "
"यार ये कोई वक़्त है मज़ाक का हद करती हो तुम भी "
"मैं मज़ाक नही कर रही राहिल "
"क्या हुआ प्लीज मुझे बताओ तो सही क्यों ऐसी बहकी -बहकी बाते  कर रही हो। "
"अच्छा मैं बहकी बाते कर रही  हूँ और आपने क्या किया अगर कार मुझसे ज्यादा प्यारी थी तो पहले बताते ऐसे हमे दुनिया में जलील करने की क्या जरूरत थी। "
"कैसी कार क्या बोले जा रही हो  "
"ज्यादा भोले न बनिए आप को पता है मैं क्या बात कर रही हूँ।  वो ही कार जो अगर आप को हमने दहेज़ में न दी तो आप बारात नही लाएंगे।  जिसके लिए मेरे अब्बू हमारा घर बेच रहे है। " आँसुओ  के साथ सिसकी निकल गई। दूसरी तरफ सन्नाटा पसर गया। "तो बराए करम आप बारात न लाये। मुझे नही करनी आप से शादी" उसने मुश्किल से सिसकीयां रोकते हुए कहा।  दूसरी तरफ अब भी सन्नाटा था कोई जवाब नही और टू........ टू  की आवाज़ के साथ फ़ोन कट गया।


"अम्मी दहेज़ में कार की डिमांड आप ने की "
"क्या हुआ राहिल बेटा ?"
"अम्मी हाँ या ना में जवाब दीजिये आपने दहेज़ में कार की मांग की है या नही ? "
"हाँ की है और वें राजी भी है बेटा देने के लिए " राबिया बेगम ने खुश दिली से जवाब दिया।
"हाँ बहुत खुश है और इसी ख़ुशी में अपना घर बेच रहे है" उसने तन्ज़िया लहज़े में कहा।
"अम्मी क्या कमी है हमारे पास क्यों आपने उनसे कार की मांग की ?"
"बेटा तुम काबिल हो आला तालीम हो समाज में इज़्ज़त है तुम्हारी और हमने तुम्हारी परवरिश में कोई कमी भी तो नही की इस लिहाज़ से हमारे भी कुछ अरमान है "
"तो वो अरमान आप मुझसे पूरे कीजिये यूं  मेरा सौदा करके नही,आपने मुझे तालीम दी मुझे काबिल बनाया इसमें रिदा की फॅमिली का क्या फायदा सब के माँ बाप अपने बच्चो के लिए ये सब करते है। आप ने क्या नया किया अम्मी आप मुझे बोलो आप को क्या चाहिए, मैं आप को वो सब ला कर दूंगा ऐसे दहेज़ मांग कर आप किसी को मज़बूर नही कर सकती।"
"राहिल समझने की कोशिश करो बेटा समाज में हमारी इज़्ज़त है लोग क्या कहेंगे तुम्हारे दोस्त क्या बोलेंगे की राहिल को ससुराल से कुछ नही मिला। "
"अम्मी मुझे लोगो की परवाह नही वो क्या कहते है आप अभी रिदा के घर फोन करके उन्हें कहे की हमे कुछ नही चाहिए "
"मैं ऐसा नही करूँगी। और तुम्हे उनकी इतनी फिक्र है मेरे जज़्बातो की मेरी इज़्ज़त की मेरे अरमानो की कोई कदर नही राहिल "
अम्मी बात इज़्ज़त की नही इंसानियत की है आप ऐसे मुझे जज़्बाती होकर ब्लैकमेल न करे। और प्लीज इस तरह की बाते करके आप मुझे मेरी नज़रो में गिरा रही है। मुझे कार या दहेज़ नही एक हमसफ़र चाहिए जो मेरे दुःख सुख में मेरे अच्छे बुरे में मेरा साथ निभाए जो मेरी इज़्ज़त करे मेरे माँ बाप का अहतराम करे नाकि की किसी के अरमानो और मज़बूरी के सौदे में मिली कोई अदना सी चीज़। अगर आप ये काम नही कर सकती तो में खुद उन्हें फोन करता हूँ।"
"मुझे ये हरगिज़ मंज़ूर नही और अगर तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हारी शादी में शामिल नही हूँगी।  राबिया बेगम ने आखरी दांव चला "
"ठीक है जैसी आप की मर्ज़ी। " और राहिल ने फोन मिला दिया
"हेल्लो........ अस्सलाम वालेकुम मुस्तकीम अंकल में राहिल बोल रहा हूँ। आप बिलकुल फ़िक्र न करे हम टाइम से बारात लेकर आयेंगे और हमे कार या किसी भी चीज़ की कोई जरूररत नही बस आप शादी की तैयारी करे अल्लाह हाफिज।" और राबिया बेटे का मुंह ताकती रह गई।

Friday, September 2, 2016

पागल

"जज साहब....मेरे चारो तरफ गिद्ध थे। जो मेरे जिस्म को नोंच रहे थे।"
"अच्छा...तो वो गिद्ध थे। तुम्हे सही से याद है ना...?"
"जी....नही गिद्ध नही, गिद्ध तो मुर्दो को नोचते है। और मैं तो ज़िंदा हूँ। वें तो बाज़ थे। जो मुझे अपनी तेज़ निकुली चोंच से नोच रहे थे।"
"पक्का बाज़ ही थे ना...?" उन्होंने घूरते हुए पूछा।
"नही-नही बाज़ भी नही,बाज़ तो आसमान में उड़कर शिकार करते है। और वें तो खुली सड़क पर मुझे नोच रहे थे। लगता है वें आवारा कुत्ते थे। जो मुझे चाट भी रहे थे और पंजो से नोच भी रहे थे।"
"अरे...... सही से,आराम से सोच कर बताओ डरो नही।" उन्होंने अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए कहा।
अदालत में बैठे लोगो में भी खुसर-फुसर होने लगी।
"ओह ! रुकिए। वें कुत्ते भी नही थे। कुत्ते होते तो भौंकते जरूर । पर वें तो चुप थे।" उसने सोचते हुए कहा।
"पक्का वें शेर या चीते थे। जो इतनी बेरहमी से मुझे झंझोड़ रहे थे। पर शेर या चीते तो झुण्ड में शिकार नही करते है। और वें तो बहुत सारे थे। वें शायद.............???
"रुको, रुको.....एक मिनट रुको जरा। तुम पागल हो या अंधी हो, ये क्या तुमने कुत्ता,शेर ,बाज़,गिद्ध लगा रखा है इतनी देर से,क्यों जानवरो और पक्षियों को ज़लील और शर्मिंदा कर रही हो। आँखे खोल कर ध्यान से देखो क्या वें इनके जैसे ही इंसान नही थे। जो यहाँ बैठे है। और जब तुम बचाओ... बचाओ चिल्ला रही थी। क्या ये सब वहां खड़े तमाशा नही देख रहे  थे..? ध्यान से देखो।" एक बंदर जो काफी देर से अदालत की करवाई देख और सुन रहा था। उसने चिल्ला कर कहा।
"अरे हाँ वें तो इंसान थे। मैं भी कितनी बड़ी उल्लू हूँ समझ ही नही पाई सॉरी जी....." औरत ने एकदम से जोश में चिल्लाते हुए कहा।
"फिर तुमने उल्लू कहाँ......? तुम भी इंसान ही हो उल्लू नही समझी।" बंदर ने गुस्से से कहा।
"सॉरी, औरत हूँ ना, तो भूल जाती हूँ। कि मैं भी इंसान ही हूँ। माफ़ कर दो, गलती भी तो इंसान से ही होती है।" उसने बंदर की तरफ हाथ जोड़ कर कहा।
"हां जज साहब वें इंसान ही थे जो मेरे जिस्म को जानवरो की तरह नोच रहे थे।" औरत ने इस बार बड़े आत्मविश्वास से कहा।
इस बात पर बंदर दांत पीसकर रह गया। पर बोला कुछ नही।
"क्या तुम उनका चेहरा पहचान सकती हो...? जज साहब ने पूछा।
 
"साहब देखने में तो आप की ही तरह लगते थे।"
"कोई और पहचान बताओ मेरी तरह से क्या मतलब है..?"
"मतलब ये हुजूर... कि आप ही तरह दो आँखे, दो कान, दो हाथ, दो पैर और बाल भी आप ही के जैसे काले थे। औरत ने जज साहब को बड़े ध्यान से देखते हुए कहा।"
"साहब ये औरत पागल है। देखा नही कैसे एक बन्दर के बहकावे में आ गई।" एक संतरी जो जज साहब के पास खड़ा था। उसने धीरे से जज के कान में कहा।
"ह्म्म्म...." जज साहब ने गहरी सांस ली।
"क्या तुम पागल हो गई हो वो मेरी तरह कैसे हो सकते है। मैं तो जज हूँ।" जज साहब ने थोड़ा सकपकाते हुए औरत से कहा।
"पर हो तो इंसान ही और इंसान से तो गलतियां हो ही जाती है साहब..." औरत ने बंदर की तरफ देखते हुए कहा।
"लगता है। इसका दिमाग़ी संतुलन सही नही है। ये औरत पागल है। इसे पागल खाने में ले जाओ। और इस बंदर को भी पकड़ कर जंगल में छोड़ आओ।" जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा।और अपना काला चोगा संभालते हुए अदालत से बहार निकल गये।
औरत चिल्लाती रही "नही...... मैं पागल नही हूँ नही.... मैं पागल नही हूँ......।
"अरे...क्या हुआ..आँखे खोलो बेटी.. क्या हुआ..?  क्यों पागल नही हो पागल नही हो चिल्ला रही हो कोई सपना देखा है क्या ?"
अम्मी मुझे झंझोड़ रही थी। और मैं आँखे मथते हुए बदहवास सी इधर-उधर देख रही थी।
"जी अम्मी आज फिर वो ही अदालत वाला सपना देखा है। मैंने।"
"जिसमें बन्दर भी बोलते है...?
"जी..."
"तुम भी ना जोया, हद करती हो। सपनो से ही डर जाती हो। और सोचो बंदर भी कही ऐसे बोलते और गवाही देते है भला।" अम्मी ने हँसते हुए कहा। "अच्छा अब उठो, जल्दी से तैयार हो जाओ कॉलेज के लिए देर हो जायेगी वरना। पागल..." अम्मी मुस्कुराती हुए कमरे से बहार चली गई।


Wednesday, August 31, 2016

है कौन वो ?

है कौन वो ........ दिल जलाएं फिरता है जिसकी याद में, ये जुगनू रात भर,
जिसकी तड़प में तितलियाँ मचलती रहती है इधर से उधर।

है कौन वो जो कर देता है खुद से ही बेगाना,
है कौन वो जो देता है इस तरह के ख्यालों को पर।

कौन है जो लगाता है नीदों पे पेहरा मेरी,
है कौन वो जिसकी यादें कर देती है पलको को आँसूओ से तर।

कभी मैं आसमां में उड़ता फिरूँ, कभी जमी से लिपट कर तड़पा करूँ, 
है कौन वो जो मुझमें समाया रहता है इस कदर।

हवा उसकी ही खुश्बू लाती है, धड़कने उसके ही गीत गाती है,
है कौन वो जो हर शय में मुझको अब आता है नज़र।

ये घर के लोग,ये शहर,ये आइने में मेरा वज़ूद सब अज़नबी से लगते है आजकल,
है कौन वो जिसने कर दिया खुद से ही मुझको बे ख़बर।

रास्तो से पूछा, हवा से पूछा, उड़ते परिंदों, बहते पानी से भी मैं पूछता फिरूँ,
है कौन वो जिसका पता कहीं भी मिलता ही नही मगर।

रात चाँद भी सुनकर मेरी पुकार छुप गया बदलो में, ऐ खुदा तू ही आसरा दे अब,
है कौन वो जिसकी ख़ातिर हर दर पे जाके पटकता हूँ मैं सर।

अब तो रास्ते भी चिढ़ने लगे है मुझसे, मंज़िले भी कहती है भटक गया है तू,
है कौन वो जिसकी ख़ातिर बन गया मैं "मुसाफ़िर" छूट गया है घर।

है कौन वो, है कौन  वो.........  


Sunday, August 21, 2016

सृष्टि की अनमोल रचना

झरोंको से झांकती धूप जब तेरे चेहरे को छूती है,
तुम सूरज बन जाती हो ।
आंगन में जब खिले फूलो के बीच जाती हो ,
तुम चंचल तितली बन जाती हो।
जब जब लहराता है रेशमी अंचल तेरा,
तुम पुरवाइयाँ बन जाती हो।
ये स्याह ज़ुल्फे करती है जब चेहरे से अठखेलियाँ, ये भौंरा ,
तुम खिलता कमल बन जाती हो।
शब्द जब जब तेरे होंठो को छूकर बरसते है।
तुम मीर की रुबाई,ग़ालिब की ग़ज़ल बन जाती हो।
काजल भरी नज़रो से यूँ तेरा जी भर कर ताकना,
तुम सच में कातिल बन जाती हो।
जब लगाती हो बेबाक ठहाके सब कुछ भुलाकर,
तुम मेरी पूरी दुनिया बन जाती हो।
नन्हे कदमो के पीछे मधम-मधम जब दौड़ लगाती हो ,
तुम सृष्टि की सबसे अनमोल रचना ममता बन जाती हो।

Wednesday, August 3, 2016

आखिरी मौका

"अपने इन मासूम बच्चों का सोचो ......... क्या होगा इनका तुम्हारे बाद ?" पड़ोस वाली मीणा आंटी ने बड़े प्यार से पास खड़े दोनों बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"अपने परिवार का सोचो , माँ पर क्या गुजरेगी ,बाप पर क्या बीतेगी बेटी।" पड़ोस वाले रमेश अंकल ने भी पडोसी का हक़ अदा किया।
"हर साल रक्षाबंधन पर अपनी सुनी कलाई देखकर.........  भाई का क्या हाल  होगा। " एक और नवयुवक ने अपनी तरफ से कोशिश की।
"अरे......... अपने पति का सोचो कितनी बदनामी होगी उसकी समाज में लोग कैसी कैसी बातें बनाएंगे।" शर्मा जी ने अपने खादी के कुर्ते का मान रखते हुए रौबदार आवाज़ में समझाया।
"बूढी सास लोगो के ताने कैसे सह पाएंगे।" ये शीतल आंटी थी।
"नीचे आजा बेटी घर में छोटे मोटे झगडे तो होते ही रहते है। जिद छोड़ दे। मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूँ । " भीड़ में सबसे आगे खडी एक अधेड़ उम्र की स्त्री ने अपने वजूद के विपरीत मरी और घबराई सी आवाज में कहा।
"आप की क्या लगती है ?"
"मैँ इसकी सास हूँ। " स्त्री ने रोनी आवाज में जवाब दिया।
"कोई छत पर जाकर क्यों नहीं उतार लाता?"
भीड़ में से किसी ने कहा। कोशिश की थी,पर दरवाजा अंदर से लॉक है।
"पुलिस को फ़ोन किया।" कर दिया है पर अभी तक नहीं आई।
"अरे.........  सब नाटक है। मरना होता तो घर में पंखे से लटक कर फांसी लगाती या सल्फास खा कर मर जाती।"
"सही कहा बहन मरने वाले इतना तमाशा नहीं करते।"
भीड़ में औरते खुसुर फुसुर कर रही थी।
"अम्मा जी इनके पति,मेरे मतलब है आप का बेटा कहाँ है।" भीड़ में से किसी सज्जन ने पूछा।
"अरे...... वो तो दो दिन से काम के सिलसिले में बहार गया हुआ है।" स्त्री छाती पीटते हुए बोली ।
"आप को इनके घर वालो को फोन करना चाहिए, हो सकता है उनकी ही बात मान जाये।" एक सज्जन ने सलाह दी।
"खबर कर दी है आते ही होंगे।" पास ही खड़े लड़के ने (जो की इस पूरे घटनाक्रम की वीडियो बना रहा था। ) जवाब दिया।
"ये मरना क्यों चाहती है ?" काफी देर बाद किसी ने सही सवाल उछाला।
सब एक दूसरे का मुहं देखने लगे। "ये बात तो अम्मा ही बता सकती है." मीणा आंटी ने आत्महत्या पर उतारू स्त्री की सास की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"मुझे कुछ नहीं पता में तो मंदिर गई  हुई थी हाय हाय........ " अधेड़ ने दहाड़े मार मार कर रोते हुए कहा।
"मुझे तो मामला दहेज़ का लगता है। बुढ़िया झूठ मूट के आँसू  बहा रही है।" एक ने कहा।
"हो सकता है। बहु के अवैध सम्बन्ध हो और बुढ़िया ने रंगे हाथो पकड़ ली हो।" दूसरे ने कहा।
"मियां  हमारे घर नहीं हमे किसी का डर नहीं।" तीसरे ने चुटकी ली।
"अरे कू..... दी."
"रोको। "
"अरे  रोको "
'रुको "
'रुक जाओ ऐसा मत करो।"
आत्महत्या के लिए तीन मंजिले मकान की छत पर चढ़ी स्त्री को कूदता देख भीड़ ने शोर मचा दिया।
शोर सुनकर स्त्री फिर रुक गई और मुंडेर पर बैठ गई।
"ये आखिर चाहती क्या है। अगर मरना ही है तो कूद जाये। मरने से इतना ही डरती है। तो तमाशा ख़त्म करें और नीचे आ जाये।" काफी देर से इस हंगामे को देख रहे। एक सज्जन ने थोड़ा उक्ता कर कहा। उन्हें शायद जल्दी थी इसीलिए इस खेल का अंत जल्द चाहते थे। या तो मरे या नीचे आये।
"पुलिस.......... आ गई ।"
"पुलिस.......... आ गई।"
भीड़ ने पुलिस की गाडी का सायरन सुनकर कौतूहल में शोर मचाया। सब को लगा के शायद अब ये किस्सा जल्दी ही ख़त्म हो जायेगा।

पुलिस की गाडी से तीन लोग बाहर निकले उनमे से दो कॉन्स्टेबल और एक सब इस्पेक्टर था।
"फैमली के लोग सामने आये।" एक पुलिस वाले ने कहा।
"जी मैं इसकी सास हूँ।"
"क्या मामला है,क्यों मरना चाहती है ये ? "
"साहब मुझे कुछ नहीं पता में मंदिर से लौटी तो घर का दरवाजा अंदर से लॉक था। बाद में बाहर शोर सुना तो देखा बहु मरने के लिए छत से कूद रही है। "
"हम्म्म.... इनके पति कहाँ है ?"
"वो तो दो दिन से काम के सिलसिले में बाहर गया हुआ है।" स्त्री ने जवाब दिया।
"आप नीचे आ जाइये जो भी दिक्कत है। हमे बताइए हम दूर करा देंगे।" इस्पेक्टर ने अपनी टोपी सँभालते हुए छत पर खड़ी स्त्री की तरफ देखते हुए कहा।
"हा हा हा हा ,आप दिक्कत दूर करेंगे हा हा हा " छत पर खड़ी स्त्री ने ठहाके मार मार कर हँसते हुए कहा।
"इसका मानसिक संतुलन तो सही है ?" पुलिस वाले ने पास खड़ी स्त्री से पूछा।
"जी सुबह तक तो सही थी।" बुढ़िया ने पसीना पोछते हुए जवाब दिया।
"घर में किसी बात को लेकर कोई झगड़ा हुआ हो ?"
"नहीं साहब ! ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ।"
"पारुल मेरी बच्ची......... हाय, हाय.......  बेटी...... "
भीड़ को चीरती हुई एक स्त्री जोर जोर से रोती हुई सामने आई।
" बेटी नीचे आजा, अपनी मम्मी की बात नहीं मानेगी बेटी..... पारुल..... " स्त्री बेसुध हुई जा रही थी। ये छत पर मरने के लिए खड़ी स्त्री की माँ थी।
बेटी तुम्हे क्या दुःख है क्या परेशानी है। मुझे बता,मरने से समस्या हल नहीं होती। बेटी मैं तेरा पापा हूँ प्लीज मेरी बात मान जैसा तुम कहोगी ऐसा ही होगा पर नीचे आजा। "
"आप इनके पिता है ? "
"जी इस्पेक्टर साहब "
"देखिये अगर ससुराल की तरफ कोई दहेज़ की मांग या दूसरा मामला है। तो साफ़ साफ़ बताईये। " इंस्पेक्टर ने कहा।
"नहीं-नहीं सर शादी को ४ साल  हो गए ऐसी तो कोई बात नहीं। "
"आप की लड़की का मानसिक बीमारी तो नहीं है ?"
"जी.... जी नहीं बिलकुल नही।" आदमी ने हिचकते हुए जवाब दिया।
"तो फिर आप अपनी लड़की से पूछिए मामला क्या है।" इंस्पेक्टर ने अपनी टोपी सही करते हुए थोड़ा झुंझलाकर कहा।
"आखिर तुम चाहती क्या हो बेटी ? " स्त्री के पिता ने चिल्लाकर पूछा।
"पापा मैं जीना चाहती हूँ।" स्त्री ने हिचकियाँ लेते हुए कहा।
"अरे पागल है क्या,जीना ही चाहती है, तो फिर मरना क्यों चाहती है?" भीड़ में से एक सज्जन ने कहा ।
"ठीक है बेटी हम भी ये ही चाहते है। शाबाश ! मेरी अच्छी बच्ची नीचे आ जाओ।"
"आप समझे नहीं पापा..... मैं अब खुद के लिए जीना चाहती हूँ। बचपन से आज तक दूसरों के लिए जीते-जीते,  मैं थक गई हूँ..... अब खुद से और समझौते नहीं कर सकती।" उसने सिसकते हुए कहा।
"पापा आप को याद है। बचपन में आप हमेशा भैय्या के लिए खिलौने लाते और मुझे हमेशा समझाते के तुम बड़ी हो भैय्या छोटा है। ६ साल की बच्ची बड़ी कैसे हो सकती है। पापा ?  थोड़ी बड़ी हुई तो हर बात पर, हर जिद्द पर तुम लड़की हो,लड़की ऐसे जिद्द नहीं करती,लड़की ऐसे नहीं हंसती, लड़की ऐसे नहीं करती, लड़की वैसे नहीं करती। ये सब सुनने को मिलने लगा। बस में ,मार्कीट में, स्कूल में ,जहाँ भी जाती लोगो की गन्दी नजर हमेशा मुझे घूरती। और मम्मी आप हमेशा मुझे ही समझाती, डाँटती , कि दुपट्टा सही से ओढ़ा करो, नज़रे नीची कर के चला करो। ऐसा क्यों था मम्मी ?
"पढाई में भैया से हमेशा अच्छे नंबर लाती पर आप ने मुझे फिर भी जॉब नहीं करने दी। ये बोल कि समाज क्या कहेगा बिरादरी के लोग क्या सोचेंगे। समाज और बिरादरी की फ़िक्र थी आप को मेरी नहीं........ । भैय्या अपने सारे फैसले खुद करते। यहाँ तक की भैय्या ने लव मेर्रिज की। और मेरे लिए.... " लम्बी सास ली।
"आपने एक अच्छा कमाऊं लड़का ढूंढ कर मेरी शादी कर दी और आप के सिर से एक बोझ कम हो गया। हम्म्म ..... बोझ ही तो होती है लड़कियां माँ बाप के लिए। " उसकी आवाज़ हिचकी में अटक गई।
"ससुराल में दिन रात काम करो, सास-नन्द के ताने सुनो पति की हर अच्छी बुरी बात पर चुप रहो। क्यूंकि अच्छे घर की बहु ज्यादा नहीं बोलती। हा हा हा अजीब दस्तूर है।" उसने तंज़ से ठाहका लगाया। वहां मौजूद भीड़ में सन्नाटा पसर गया । "माँ बनना हर शादी-शुदा स्त्री का सपना होता है। पर अगर लड़की पैदा हो जाये ....... तो ये सपना ही उसके लिए सबसे बड़ा पाप बन जाता है। आखिर क्यों? क्यों ? पति किसी भी स्त्री से बात करें तो सही है । और स्त्री अगर किसी पराये मर्द की बात भी कर ले तो चरित्रहीन हो जाती है । क्यों ?  मैं खुल कर नहीं जी सकती क्यों अपना कोई भी फैसला खुद नहीं कर सकती। अरे....... थू  है ऐसी ज़िन्दगी पर जहां में सब्जी भी खुद की पसंद की नहीं पका सकती। उसके लिए भी पति की पसंद पूछनी पड़ती है। वो गुस्से से कांप रही थी।  नीचे खड़े लोग एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी।
"ये सब फिल्मों का असर है देखा कैसे भाषणबाजी कर रही है। "
"ये भी कोई बात हुई मरने के लिए अरे सभी औरत ये काम करती है। " जितने मुहं उतनी बातें हो रही थी।
"ठीक है अब से आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा। पर आप नीचे आ जाइए।" पुलिस वाले ने कहा।
"हा हा हा किसे दिलासा दे रहे हो इस्पेक्टर........ सीता  मैय्या से लेकर निर्भया तक कुछ नहीं बदला इस समाज में। कहानी वही है बस पात्रों के चेहरे अलग है। " स्त्री आज भी अग्नि परीक्षा देती। कभी सुना है किसी बलात्कारी पुरुष का कोई टेस्ट हुआ है। नहीं..... हमेशा बलात्कार पीड़ित स्त्री को ही टेस्ट देना होता है।ये साबित करने के लिए की हाँ उसका बलात्कार हुआ है। ऐ नारी को सम्मान और बराबरी का दर्ज देने का ढोल पीटने वालो आधुनिक बनने से पहले इंसान बनो।" उसने भीड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"मैं ये नहीं कहती के सभी बुरे है। या सब औरतो के साथ ऐसा होता है। पर मेरे साथ जो हुआ। जो कुछ मैंने जिया है। उसके हिसाब से ये दुनिया अभी मेरे काबिल नहीं है या मैं इस दुनिया के लायक नहीं। यहाँ मौजूद सभी लोगो ने मुझे मरने से रोकने के लिए अलग -अलग दुहाई दी। किसी ने बच्चों का मोह दिखाया,किसी ने माँ बाप के दुःख की दुहाई दी,किसी ने समाज में मेरे पति की बेइज़्ज़ती का भय दिखाया। किसी ने भी एक बार मेरे बारे में सोचा। मेरी ज़िन्दगी की दुहाई  दी........ ?  नहीं। आप सब मुझे बुजदिल कह सकते है। कुलटा कह सकते है। पागल कह सकते है। मुझे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि में खुश हूँ। जीवन में पहली बार अपने लिए कोई फैंसला ले रही हूँ। मैं नहीं चाहती की जो घुटन मेरे अंदर पिछले ३५ सालो से है। वो मेरा दम घोट कर मुझसे ये आखरी मौका भी छीन ले। चाहे वो मौत को चुनने का ही क्यों ना हो। अगर इंसानियत ने फिर से जन्म लिया तो हम जरूर मिलेंगे।" उसने छलांग लगा दी और तमाशा खत्म हो गया।