Wednesday, March 9, 2016

तलाक..

"तुम दूसरी शादी कर लो ताबिश।" उसने आंसुओ को आँखों की दहलीज़ पर रोकते हुए कहा।
"मैं तुमसे बेइन्ताह मोहब्बत करता हूँ। दूसरी शादी के बारे में सोच भी नही सकता। ये कैसी बाते कर रही हो।" ताबिश ने उसका हाथ अपने हाथो में लेते हुए कहा। "मैं चाहे तुमसे कितना ही लड़ झगड़ लूँ। पर दूसरी शादी की बात आजतक मेरे मन में भी नही आई।" ताबिश ने सायमा की तरफ देखते हुए है।  सायमा कुछ नही बोली।
"पर क्या तुम नही चाहती सायमा, हमारा भी एक बेटा हो, रायमा ,रिमशा और ज़ूबी का एक भाई हो। जो  हमारी नस्ल को आगे बढ़ाये।" सायमा की ख़ामोशी से लापरवाह वो बोले जा रहा था। "बोलो,जवाब दो,क्या तुम्हे बेटा नही चाहिए ?" ताबिश उसकी लगातार ख़ामोशी से झुंझलाकर थोडी तेज़ आवाज़ में बोला। नर्स दौड़ती हुई कमरे में आई।
"सर आप मरीज़ के पास इतनी जोर से बात नही कर सकते।"
"ठीक है। ठीक है। सॉरी "
"क्यों तमाशा बना रही हो सायमा। तुम पहली बार तो प्रेगनेंट नही हुई। शुरू में थोड़ी बहुत तो दिक्कत होती ही है। ये डॉक्टर तो हर बार ऐसे ही बोलते है तुम्हे याद है न , ज़ूबी के टाइम भी ऐसे ही बोला था कि या तो अभी एबॉर्शन करा लो वरना बाद में माँ और बच्चे दोनों की जान जा सकती है । " नर्स के जाने के बाद वह फिर शुरू हो गया।

"और तुमने भी ऐसी ही दलीलें दे दे कर मुझे मज़बूर किया था। " सायमा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
हाँ तो कुछ हुआ तुम्हे ? सब सही से निपट गया था ना।" उसने नज़रे चुराते हुए कहा। "हम्म्म , तो अब तुम क्या चाहते हो ?" सायमा ने गहरी सांस लेते हुए पूछा।
"तुम एबॉर्शन न करवाओ प्लीज। इस बार लड़का ही होगा " ताबिश ने कहा।
"ठीक है। मेरी जान की परवाह नही तो न सही, पर क्या गारंटी है। कि इस बार लड़का ही होगा।" सायमा ने सवाल किया। कमरे में कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। "बोलो चुप क्यों हो ताबिश क्या होगा अगर इस बार भी लड़की ही हुई। सायमा ने गर्दन झुकाएं बैठे ताबिश का हाथ झटकते हुए कहा। "अच्छा मान लो अगर लड़का ही हुआ।" इतना कहकर सायमा रुक गई। ताबिश की आँखों में एक चमक सी आ गई। "और मैं न रही।" सायमा ने आस भरी नज़रो से ताबिश की तरफ देखते हुए अपनी बात पूरी की। कमरे में फिर से सन्नाटा छा गया ताबिश की आँखों की चमक पल में फुर्र हो गई। वह लाजवाब होकर सायमा का मुहं ताकने लगा।
"तो तुम पक्का चाहती हो की में दूसरी शादी कर लूँ ?"
"अगर मैं न कहती तो क्या तुम नही करते ? " सायमा ने ताबिश को एक बार फिर लाजवाब कर दिया।
"आखिर तुम चाहती क्या हो ?" ताबिश ने झल्लाते हुए पूछा। "मैं जीना चाहती हूँ ताबिश। मेरी बेटियो को भाई से ज्यादा माँ की ज़रुरत है। सायमा की आँखों से आंसू उबल पड़े।
"क्या तुम्हे नही पता हमारे मज़हब और देश के क़ानून में एबोर्सन हराम है।" ताबिश ने आखरी दांव चला।
"और ख़ुदख़ुशी करना भी हराम है।" सायमा ने सपाट लहज़े में कहा। "कैसी खुदखुशी कौन कर रहा है खुदखुशी" ताबिश ने बदहवास सा होकर सायमा की तरफ देख कर पूछा। "मुझे पता है कि अगर मैंने इस बच्चे को जन्म दिया तो मेरा बचना मुश्किल है। फिर भी मैं इसे जन्म दूँ। ये खुदख़ुशी नही तो और क्या है ?"
"तुम माँ होकर ऐसी बाते सोचती हो।" ताबिश ने तंज़ किया।

"माँ हूँ। तभी ऐसा सोच रही हूँ ताबिश ,तुम उस के लिए मुझसे बहस कर रहे हो। जिसे मेरी कोख में आये सिर्फ दो महीने हुए है। और में उनके बारे में सोच रही हूँ। जिन्हे मैने  ९-९  महीनो तक अपनी कोख में रख कर जन्म दिया है। शादी के वक़्त जब दहेज़ में कार की मांग की थी तब तो तुमने मज़हब और देश के क़ानून के बारे में नही सोचा। उस वक्त दहेज़ के साथ ये भी कह दिया होता कि लड़की की कोख से एक बेटा भी ज़रूर चाहिए।"  सायमा ने सुलगते लहज़े में कहा । "मैने तुम्हारी हर बात मानी, तुमने जॉब छोड़ने को कहा मैने छोड़ दी । परदे में रहने के लिए कहा मै बुरखा ओढ़ने लगी। और कितने समझोता करूँ खुद से।अब नही ताबिश। अब मुझे खुद के और अपनी बेटियों के लिए जीना है। और रही तुम्हारी मोहब्बत की बात, तो वो तुमने कभी की ही नही थी। अगर की होती तो सैकड़ो बार ज़रा-ज़रा सी बात पर तलाक की धमकी नही देते । रायमा ,रिमशा और ज़ूबी की पैदाईश पर हज़ारो ताने नही दिए होते। " सायमा बोले जा रही थी और ताबिश बुत बना सुन रहा था उसके पास कोई जवाब नही था। "तुमने कभी मोहब्बत के नाम पर और कभी मज़हब के नाम मुझे बहुत मज़बूर किया है। तुम्हे तो इन दोनों लफ्ज़ो का मतलब भी नही पता। जाओ हर बार तुम मुझे तलाक की धमकी देते थे। आज मैं तुम्हे तलाक देती हूँ ताबिश। तलाक......... तलाक.......  तलाक..... ।"