Thursday, October 13, 2016

मोहिनी



"देखो बाबू मोहिनी अभी ग्राहक के साथ बिजी है। वो नही मिल सकती। ज्यादा आग लगी है तो इनमें से कोई ले जा।" उसने कतार में खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा किया।
"नही,मुझे मोहिनी ही चाहिए।"
"ऐ ! ऐड़ा हे क्या,बात समझ में नही आती तेरे, बोला न मोहिनी बिजी है।और सुन और कोई नही चाहिए तो फूट यहाँ से"
"नही में बिना मिले नही जाऊँगा।" और वो ढीट बनकर वही बैठ गया। "
"हेल्लो...... औरत ने चुटकी बजाते हुए कहा। ज्यादा अन्ना हज़ारे बनने की कोशिश ना कर वरना ऐसी मार पड़ेगी के बाबा को तो स्त्री के कपडे भी नसीब हो गए थे। तुझे नंगा ही भागना पड़ेगा। हरामी साला....। धंधा तो पहले ही मंदा है ऊपर से ये ऐसे ढीठ ग्राहक सालो ने दिमाग का कश्मीर बना के रख दिया।"
"प्लीज...सुन ना,मिलवा दे ना मोहिनी से कुछ ले दे ले मैं 1000 दे सकता हूँ।अगर तू उस से मिला दे।"
"ओये सुन बे दल्ले साले हम यहाँ जिश्म बेचते है। हमारे भी कुछ कायदे है। ईमान खरीदना है तो बराबर में पुलिस स्टेशन है वहाँ जा समझा।और तू एक बात तो बता इतना पागल क्यों है तू मोहिनी के पीछे ऐसा क्या है उसमें जो इन सब में नही है।"
"आप जैसा समझ रही है ऐसा कुछ नही है मुझे कोई गलत काम नही करना है बस में तो उसके लिए कुछ अच्छा करना चाहता हूँ।"
"हा...हा...हा...उसने पान से लाल दांतो को दिखाते हुए बेहूदा सा ठहाका मारा। कुत्ते..नेता है क्या ? जो वोट से पहले ही मदद करना चाहता है।और वो भी पैसे देकर।"
"देखिये आप मुझे गलत समझ रही है मैं ऐसा नही हूँ। मैं शरीफ आदमी हूँ।"
"हुंन..न..न.. सारे शरीफजादे रंडियों के कोठो और संसद में ही तो आते है। भाग साले नोटंकी कही का।" उसने पान की पिचकारी पास रखे थूकदान में मारते हुए झिड़की लगाई। "अच्छा एक बता तुझे जब कुछ करना नही तो मिलना क्यों है? काम क्या है मोहिनी से ?"
"जी वो...वो....कुछ बात करनी है उसने हकलाते हुए कहा।"
"देख सुन बे तू जो भी है सही-सही बता दे अब, नही तो अपनी तशरीफ़ लेकर दफा हो जा यहाँ से मुझे गुस्सा आ गया तो तेरा ऐसा हाल करूंगी की रेलगाड़ियों में बधाई मांगता फिरेगा। ये कोठा है कोई मोबाइल बूथ नही कि बात करनी है"
"देखिये बहन जी आप मिलवाने के पैसे लेती है ना, तो आप मेहरबानी करके उस से मिला दे। मैं आप को जितना टाइम उसके साथ रहूँगा उसके पैसे दूँगा।" "ओये बिन बरसात के मेंढक बहन होगी तेरी माँ, पर ये बात तूने सही कही कि हम अपने वक़्त के पैसे लेते है।"औरत ने सोचते हुए कहाँ। "चल ठीक है। ढिल्ले मिलवाती हूँ।पर एक बात कान खोल कर सुन ले अगर तुने कोई चालाकी की या तू कोई फालतू का समाजसेवी निकला तो मेरे से बुरा कोई नही होगा। मुझे कोई लफड़ा नही मांगता मेरे कोठे पर।" औरत ने आँखों में आँखे डालते हुए कहा।
"जी...जी.. ऐसा कुछ नही है।आप निश्चिन्त रहे।"
"सुन दीपा देख तो मोहिनी फ्री हुई या नही, फ्री हो तो बोल के तुझसे देवदास मिलने आया है। हा..हा..हा..हा। साला हलकट।" पान का बीड़ा गाल में दबाते हुए उसने फिर से ठहाका मारा" एक लड़की मटकते हुए छम छम करती और तिरछी नज़रो से आदमी को घूरते हुए कमरे से बाहर चली गई।
"आपा........  फ्री है। पर कह रही है। कि अभी थकी हुई है। सांस ठिकाने आने दे जब ही कोई नया मुर्गा भेजना।" लड़की ने औरत से आकर कहा।
"ह्म्म्म.. ठीक है ठीक है। जा जाकर कोई ग्राहक फंसा सुबह से तेरी बोहनी नही हुई दीपा। बहुत ठंडी जा रही है तू आजकल।" उसने लड़की को फटकारते हुए से लहज़े में कहा। और आदमी से बोली। " दस मिलट रुक बे! मिलवाती हूँ। 500 की पत्ती दिल से जुदा कर" आदमी ने चुपचाप अपने बटुए से 500 का एक नोट निकाल कर औरत के हाथ पर रख दिया।
"पानी पियेगा या कुछ ठंडा मंगाऊँ।"
"जी..जी नही.. कुछ नही शुक्रिया।" आदमी पता नही किन सोचो में गुम था औरत की बात सुनकर थोड़ा हड़बड़ा कर बोला।
"डर मत इस मेहमान नवाजी के हम पैसे नही लेते।" और उसने आवाज़ लगाई "जुगनी दो पेप्सी लाना ठंडी सी।"
"आपा मोहिनी ने कहा है कि वो अब ठीक है मुर्गा भेज दे।" लड़की ने कोल्डड्रिंक की बोतल देते हुए कहा।
"जाओ जी आप की मुलाकात का वक़्त आ गया यहाँ से तीसरा कमरा मोहिनी का ही है। जा बे  ठंडे ये पेप्सी भी वही जाकर पी लेना।" औरत ने पेप्सी का घूँट गले से उतारते हुए कहा। "और सुन एक बार फिर कह रही है कुछ गड़बड़ नही चाहिए मुझे समझ लेना वरना नाम गुलाबबाई है पर में गुलाब जैसी हूँ नही।" औरत ने धमकी भरे अंदाज़ में आदमी को सिर से पांव तक ताड़ते हुए कहा।

"जी समझ गया।"
ठक-ठक... उसने तीसरे कमरे के सामने जाकर धीरे से दरवाजा खट खटाया।
"ज्यादा शरीफ ना बन अंदर आ जा दरवाज़ा खुला है ।" अंदर से एक चटकीली सी आवाज़ आई।
आदमी दरवाज़ा खोल कर अंदर चला गया। पूरा कमरा बीड़ी के धुंए से भरा हुआ था। सामने एक बेड पड़ा था और उस पर सिलवटों भरी एक मटमैली सी चादर जो कुछ देर पहले ही गुजरे लम्हो की दास्तान बयान कर रही थी। बेड के बगल में कुर्सी पर लगभग 25 -26  साल की लड़की अपने मुहँ से भट्टे की चिमनी की तरह धुंआ निकाल रही थी। कमरे में एक तो रौशनी कम थी ऊपर से धुआं इसिलए चेहरा साफ़ नज़र नही आ
रहा था। आदमी ने दरवाजा धीरे से बंद किया और लड़की की तरफ बढ़ा।
"रुक जा रुक जा इतनी भी क्या गर्मी चढ़ी है थोड़ा सब्र रख बीड़ी तो आराम से पीने दे। तू भी पियेगा क्या?" लड़की ने बीड़ी का लंबा सा कस मारते हुए कहा। आदमी कुछ नही बोला चुप-चाप आराम से बेड के एक कोने पर बैठ गया।
"इस उम्र में भी गर्मी नही गई तेरी।" लड़की ने बीड़ी बुझाते हुए कहा।
"चल अब ज्यादा टाइम कल्टी ना कर काम पे लग जा और भी कस्टमर है मेरे" उसने कॉन्डोम का पैकिट आदमी के ऊपर फेंकते हुए कहा।
"बि..ट... बिट्टू...." आदमी ने आँसूओ के साथ सिसकी लेते हुए मुश्किल से कहा।
कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया सांस लेने की भी आवाज़ नही आ रही थी। "कौन हो तुम ?" कहते हुए लड़की ने जल्दी से कमरे की खिड़की खोल दी। और फटी आँखों से देखते हुए जमीन पर ढह गई। कुछ देर बाद अपने बेतरतीब कपड़ो को सही करते हुए लड़की ने सिसकी भरी आवाज़ में बस इतना कहा "बाबा" ये सुनते ही आदमी दहाड़े मार-मार कर रोने लगा। लड़की जिसका नाम कुछ देर पहले तक मोहिनी था और जो बड़ी बेशर्मी से बक बक कर रही थी बहते आंसू और पथराई नजरो से उस आदमी को देख रही थी। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे और रोते रहे।
"आज अचानक यहाँ क्यों,कैसे?"
आदमी गर्दन झुकाये बैठा रहा कुछ नही बोला।
"भईया कैसा है" लड़की ने सिसकी दबाते हुए फिर पूछा। आदमी अब भी चुप ऐसे ही बैठा रहा ।
"हमारा घर, वो नीम का पेड़, मेरा झूला, गाँव की वो कच्ची कीचड़ से भरी गालियां,वो आम का बाग़ और बाबा वो मेरे सब दोस्त , सब कैसे है बाबा ?"  लड़की एक सांस में सब कुछ बोल गयी , मानो एक पल में सब कुछ जो पीछे छूट गया था उसे पाना चाहती हो जीना चाहती हो सब कुछ फिर से।
"बिट्टू मेरी बच्ची" आदमी ने उठ कर लड़की को गले से लगा लिया।

"आप यहाँ कैसे और क्यों आये है?" उसने डब बाई आँखों से देखते हुए कहा। 
"बिट्टू मैं तुम्हे लेने आया हूँ मेरी बच्ची।" आदमी ने सिसकी लेते हुए कहा।
"हरिपुर में लाला के बेटे की शादी में तुम्हे नाचते हुए देखा था। वहां बिरादरी की शर्म से कुछ ना कह सका बड़ी मुश्किल से पता ढूँढ़ते ढूँढ़ते आया हूँ बेटी मेरे साथ चलो घर।"

"बिरादरी की शर्म  ह्म्म्म....." इतना कहकर लड़की छत को घूरने लगी। 
"बिट्टू अब में तुझे यहाँ  से घर ले जाऊंगा।" आदमी ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा।
"घर...... हुं.... घर..." कहते कहते लड़की की हिचकी बंध गई। थोड़ी देर बाद खुद को संभालते हुए उसने कहा "देखिये आप अच्छे घर के नैक इंसान मालूम पड़ते है। मुझे ऐसे बार बार मत छुइए आप अपवित्र हो जायेंगे। और शायद आप को कोई गलतफेमी हुई है। मैं कोई बिट्टू सिट्टू नही हूँ मैं मोहिनी हूँ।
"नही नही ऐसे मत कहो" आदमी ने तड़प कर कहा उसका हाथ पकडते हुए कहा।

"अभी तो तुमने मुझे बाबा कहा था।"
"वो शायद आप को रोता देख कर मेरे मुहँ से निकल गया।" उसने हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"नही बेटी तुम मेरी बिट्टू ही हो अभी तुमने भईया को और सबको पूछा तुम मेरी बिट्टू ही हो।" आदमी ने लड़की का हाथ पकड़ते हुए बेचैनी से कहा।
"बेटी मुझे मेरी गलती की सजा मिल चुकी है। तेरी सौतेली माँ और भाई सब केदारनाथ में आई बाढ़ में बह गए मेरा अब तुम्हारे सिवा कोई नही है।" और वह घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया।
"देखिये मैं आप को नही जानती आप यहाँ से चले जाइए वरना में धक्के देकर आप को यहाँ से निकलवा दूंगी आप एक शरीफ और अच्छे आदमी है आप की बेटी इस कोठे पर कैसे हो सकती है। आपा..... आपा...लड़की ने चिल्लाकर आवाज़ लगाई। एक साथ कई लड़कियां दौड़ी आई क्या हुआ मोहिनी, आपा इसे निकल दीजिये बड़ा बेहूदा इंसान है शायद पागल है मुझे अपनी बेटी बता रहा है।"
 आदमी रोता रहा गिड़गिड़ाता रहा पर मोहिनी या और लड़कियों ने एक न सुनी और उसे धक्के मार कर गली से बहार पटक आये। मोहिनी खिड़की से देखती रही। बीते 12 सालों की एक-एक बात उसके जहन में घूमने लगी।
"बाबा मुझे नही जाना इनके साथ ये मेरे सगे मामा नहीं है। माँ की बातों में मत आइये मैं सारे काम करूंगी सब बात मानूँगी आप की, मुझे इनके साथ मत भेजिए मैं आप की बेटी हूँ।  मैं बिट्टू हूँ आप की बिट्टू।"
"अरे देखा मुझे माँ नही समझती तो मेरे भाई को मामा कैसे समझेगी, मैं तो इसके भले के लिए ही भेज रही हूँ। शहर में रहेगी कुछ तौर तरीके सीख लेगी फिर किसी अच्छे घर इसकी शादी कर देंगे। बाकि आप की मर्जी वैसे सौतेली माँ की कौन सुनता है ।"
"चटाक...चटाक...  दो थप्पड़ गालो को लाल कर गए। चुपचाप चली जा तेरे भले के लिए ही भेज रहा हूँ मै। बाबा....बाबा........
"क्या हुआ मोहिनी ?" दीपा दौड़ी हुई आई । मोहिनी जैसे नींन्द से जाग गई।
"नही कुछ नही बस ऐसे ही  इस आदमी को देख कर कुछ भूली बाते याद आ गई " उसने बेड की चादर से आँसू पोछते हुए कहाँ।

क्यों दिल छोटा करती है। हम सब है न यहाँ और वो तो कोई सटका हुआ आदमी था। चला गया। और सुन तेरा चहेता कस्टमर आया है राकेश, भेज दूँ क्या ?" दीपा ने आँख मरते हुए कहा।
"हाँ भेज दें।"

ना जाना कि दुनिया से जाता है कोई। 
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते।।
क़यामत भी आती थी हमराह उनके।
मगर रह गई हम-इना* आते आते।।


(लगाम, बंधी हुई, same rein, common bridle)