Tuesday, June 14, 2016

नई डिमांड

बचपन में गुड्डे-गुड़िया की ,खेल-खेल में शादी कराते-2 पता नही कब मैं खुद की शादी के सपने सजाने लगी।
और कब ये सपना हकीकत बन गया पता ही नही चला। ऐसा लगता है जैसे मानो कल की ही बात है।
विदाई के समय मम्मी-पापा का तो रो-रो कर बुरा हाल था।
पापा तो मेरे जाने के बाद कई दिनों तक बहुत उदास रहे थे।
आह... कितने अच्छे दिन थे।
और अब अगर बिना फोन किये मम्मी-पापा से मिलने चली जाती हूँ तो उनके चेहरे पीले पड़ जाते है।
सोचते है। पता नही दामाद ने अब कौन सी नई डिमांड की है।