Friday, September 2, 2016

पागल

"जज साहब....मेरे चारो तरफ गिद्ध थे। जो मेरे जिस्म को नोंच रहे थे।"
"अच्छा...तो वो गिद्ध थे। तुम्हे सही से याद है ना...?"
"जी....नही गिद्ध नही, गिद्ध तो मुर्दो को नोचते है। और मैं तो ज़िंदा हूँ। वें तो बाज़ थे। जो मुझे अपनी तेज़ निकुली चोंच से नोच रहे थे।"
"पक्का बाज़ ही थे ना...?" उन्होंने घूरते हुए पूछा।
"नही-नही बाज़ भी नही,बाज़ तो आसमान में उड़कर शिकार करते है। और वें तो खुली सड़क पर मुझे नोच रहे थे। लगता है वें आवारा कुत्ते थे। जो मुझे चाट भी रहे थे और पंजो से नोच भी रहे थे।"
"अरे...... सही से,आराम से सोच कर बताओ डरो नही।" उन्होंने अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए कहा।
अदालत में बैठे लोगो में भी खुसर-फुसर होने लगी।
"ओह ! रुकिए। वें कुत्ते भी नही थे। कुत्ते होते तो भौंकते जरूर । पर वें तो चुप थे।" उसने सोचते हुए कहा।
"पक्का वें शेर या चीते थे। जो इतनी बेरहमी से मुझे झंझोड़ रहे थे। पर शेर या चीते तो झुण्ड में शिकार नही करते है। और वें तो बहुत सारे थे। वें शायद.............???
"रुको, रुको.....एक मिनट रुको जरा। तुम पागल हो या अंधी हो, ये क्या तुमने कुत्ता,शेर ,बाज़,गिद्ध लगा रखा है इतनी देर से,क्यों जानवरो और पक्षियों को ज़लील और शर्मिंदा कर रही हो। आँखे खोल कर ध्यान से देखो क्या वें इनके जैसे ही इंसान नही थे। जो यहाँ बैठे है। और जब तुम बचाओ... बचाओ चिल्ला रही थी। क्या ये सब वहां खड़े तमाशा नही देख रहे  थे..? ध्यान से देखो।" एक बंदर जो काफी देर से अदालत की करवाई देख और सुन रहा था। उसने चिल्ला कर कहा।
"अरे हाँ वें तो इंसान थे। मैं भी कितनी बड़ी उल्लू हूँ समझ ही नही पाई सॉरी जी....." औरत ने एकदम से जोश में चिल्लाते हुए कहा।
"फिर तुमने उल्लू कहाँ......? तुम भी इंसान ही हो उल्लू नही समझी।" बंदर ने गुस्से से कहा।
"सॉरी, औरत हूँ ना, तो भूल जाती हूँ। कि मैं भी इंसान ही हूँ। माफ़ कर दो, गलती भी तो इंसान से ही होती है।" उसने बंदर की तरफ हाथ जोड़ कर कहा।
"हां जज साहब वें इंसान ही थे जो मेरे जिस्म को जानवरो की तरह नोच रहे थे।" औरत ने इस बार बड़े आत्मविश्वास से कहा।
इस बात पर बंदर दांत पीसकर रह गया। पर बोला कुछ नही।
"क्या तुम उनका चेहरा पहचान सकती हो...? जज साहब ने पूछा।
 
"साहब देखने में तो आप की ही तरह लगते थे।"
"कोई और पहचान बताओ मेरी तरह से क्या मतलब है..?"
"मतलब ये हुजूर... कि आप ही तरह दो आँखे, दो कान, दो हाथ, दो पैर और बाल भी आप ही के जैसे काले थे। औरत ने जज साहब को बड़े ध्यान से देखते हुए कहा।"
"साहब ये औरत पागल है। देखा नही कैसे एक बन्दर के बहकावे में आ गई।" एक संतरी जो जज साहब के पास खड़ा था। उसने धीरे से जज के कान में कहा।
"ह्म्म्म...." जज साहब ने गहरी सांस ली।
"क्या तुम पागल हो गई हो वो मेरी तरह कैसे हो सकते है। मैं तो जज हूँ।" जज साहब ने थोड़ा सकपकाते हुए औरत से कहा।
"पर हो तो इंसान ही और इंसान से तो गलतियां हो ही जाती है साहब..." औरत ने बंदर की तरफ देखते हुए कहा।
"लगता है। इसका दिमाग़ी संतुलन सही नही है। ये औरत पागल है। इसे पागल खाने में ले जाओ। और इस बंदर को भी पकड़ कर जंगल में छोड़ आओ।" जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा।और अपना काला चोगा संभालते हुए अदालत से बहार निकल गये।
औरत चिल्लाती रही "नही...... मैं पागल नही हूँ नही.... मैं पागल नही हूँ......।
"अरे...क्या हुआ..आँखे खोलो बेटी.. क्या हुआ..?  क्यों पागल नही हो पागल नही हो चिल्ला रही हो कोई सपना देखा है क्या ?"
अम्मी मुझे झंझोड़ रही थी। और मैं आँखे मथते हुए बदहवास सी इधर-उधर देख रही थी।
"जी अम्मी आज फिर वो ही अदालत वाला सपना देखा है। मैंने।"
"जिसमें बन्दर भी बोलते है...?
"जी..."
"तुम भी ना जोया, हद करती हो। सपनो से ही डर जाती हो। और सोचो बंदर भी कही ऐसे बोलते और गवाही देते है भला।" अम्मी ने हँसते हुए कहा। "अच्छा अब उठो, जल्दी से तैयार हो जाओ कॉलेज के लिए देर हो जायेगी वरना। पागल..." अम्मी मुस्कुराती हुए कमरे से बहार चली गई।