Tuesday, January 19, 2016

इंसानियत जिंदाबाद........

गोलियों और चीखने चिल्लाने की आवाज़े आ रही थी। उठती आग की लपटे और धुआं रात के अंधेरे में भी साफ नज़र आ रहा था। "पता नही क्या क़यामत गुज़र रही है उन पर " बगल में खड़ी अम्मी ने घबराहट भरी आवाज़ में मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।
"कुछ नही होगा,अम्मी आप घबराये नही हो सकता है किसी के मकान में आग लगी हो।"  मैंने अम्मी से ज्यादा खुद को तसल्ली दी। चीखने चिल्लाने की आवाजे लगातार आ रही थी कभी-२ बचाओ बचाओ का सोर भी उठता।
पूरा मोहल्ला अपनी  छतो पर खड़ा था घबराई औरते दुआए मांग रही थी "या खुदा रहम करना" । मर्द अपने फ़ोन से एक दूसरे से  हालात  की खबर लेने की कोशिश कर रहे थे के आखिर मामला है क्या ? थोड़ा थोड़ा अंदाज़ा सब को था के क्या हो रहा है फिर भी हर कोई खुद को तसल्ली दे रहा था।

कई दिनों से कब्रिस्तान और श्मशान की बॉउंड्री को लेकर कस्बे  में तनाव का माहौल था पक्का ये उसी को लेकर हंगामा हो रहा है मैंने खुद से ही कहा और रजनीश जो मेरा दोस्त था और कब्रिस्तान के पास वाले मोहल्ले में ही रहता था को फ़ोन मिला दिया। "हैलो"...... रजनीश की डरी सहमी सी आवाज़ मेरे कान में पड़ी। "हैलो रजनीश में खालिद बोल रहा हूँ तुम ठीक तो हो ,क्या हो रहा है वहां" ------"खा...लिद यहाँ हिन्दू-मुस्लिम का झगड़ा हो गया है भाई बहुत ख़राब हालात है यार " उसकी डरी  सहमी आवाज़ सुनकर में अंदर ही अंदर सिहर उठा। फ़ोन में चीखने चिल्लाने और "नारा हु तकबीर" की आवाज़े साफ़ सुनाई आ रही थी। "खालिद यार कुछ कर"---रजनीश उधर से रुआं सी आवाज़ में कह रहा था। मुझे पता था के उसके घर के आस पास मुस्लिम आबादी अधिक है। "तू  घबरा मत कुछ नही होगा पुलिस फ़ोर्स आती ही होगी। सब ठीक हो जायेगा भाई" मैंने  कहा। पर  मेरी तसल्ली को अनसुना कर के वो जल्दी से बोला "यार पुलिस तो काफी देर से यही है पर कुछ नही कर पा रही। प्लीज यार तू कुछ कर ये सब तो तेरे अपने लोग है भाई बचा ले।" पीछे से उसके बच्चो के रोने की आवाज़े भी आ रही थी।"तू डर मत में कुछ करता हूँ ....... अच्छा घर में ही रहना और फ़ोन अपने पास ही रखना मैं अभी तुझसे बात करूगाँ ओके।" ये कहकर मैंने फ़ोन काट दिया और बेचैनी में इधर से उधर घूमने लगा। क्या करुं? किस से मदद मांगू।रजनीश और में कई सालो से दोस्त थे एक दूसरे के दुःख-दर्द में हमेशा काम आते थे ईद हो या दिवाली सब साथ मिलकर मानते। पुलिस के सायरन और एम्बुलेंस की आवाज़ हालत की भयानकता बखूबी बयां कर रही थी।अम्मी एकटक मुझे देखे जा रही थी उनकी डबडबाई आँखे सवाल कर रही थी के अब क्या करोगे? उन्होंने जब से रजनीश के बारे में सुना था अल्लाह की  बारगाह में उसकी सलामती की दुआ किये जा रही थी। माँ होती ही ऐसी है सब के लिए बराबर का प्यार उनकी  ममता का भण्डार खत्म ही नही होता।

लॉउडस्पीकर पर घरो से ना निकलने के निर्देश दिए जा रहे थे। सब हैरान परेशान थे क्या किया जाये सब को अपनों की फ़िक्र थी। मोबाइल के नेटवर्क बंद कर दिए गए थे। मैने हजारो बार रजनीश का फ़ोन लगाया पर कोई फायदा नही। कैसी क़यामत भरी रात थी खत्म ही नही हो रही थी ऐसा लग रहा था मानो सुबह कभी होगी ही नही। दिल में डरावने ख्याल आ रहे थे। रजनीश की बेटी मुझे अच्छे वाले चाचू बुलाती थी अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या में अच्छा चाचू रहूँगा? ये सवाल मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। फिल्म और हकीकत का अंतर आज अच्छे से नज़र आ गया था। बेबसी और लाचारी का ऐसा आलम मैने कभी नही देखा था।बरबस एक ही दुआ मुहं से निकल रही थी "या अल्लाह सब के हाल पर रहम रखना सबको सलामत रखना"। आँखों से आंसू बह निकल।

अल्लाह अल्लाह कर के रात बीती और सूरज की पहली किरण रात की रानी के पत्तो पर उतर आई। पैरो में चप्पल डाल कर मै दरवाजे तक अपने बिखरे वजूद के साथ पहुचाँ। दरवाजा खोलते हुए अजब ही हालत हो रही थी लग रहा था जैसे सदियों बाद दरवाजा खोल रहा हूँ । दरवाजे से बहार निकल कर मै सीधे मेन रोड पर पहुंचा चारो तरफ खामोशी थी इक्का दुक्का लोग ही  नज़र आ रहे थे। मेरी आँखे अखबार वाले को तलाश रही थी। पर आज शायद कोई अखबार नही पंहुचा था यहाँ। किसी से खबर मिल जाये की आखिर हालत कैसे है दिल में बस ये ही चाह थी। सामने से पुलिस की गाडी आती दिखाई दी सब भाग कर गली में घुस गए पर मेरे कदम न हिले। मै वहीँ खड़ा रहा गाड़ी में से दो पुलिस वाले उतरकर मेरे पास आये। "ऐ लड़के यहाँ क्यों खड़ा है तुझे हालत का पता  नही भाग यहाँ  से वरना उठा कर गाडी में डाल देंगे " उन्होंने अपने चिरपरिचित पुलिस वाले अंदाज में मेरी तरफ डंडा उठाते हुए कहा। " सर मेरा एक दोस्त दंगे वाले इलाके में फंसा  हैं और उसका फ़ोन भी नही लग रहा है मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा।"
"नाम क्या है तेरा ?"
"जी खालिद "
"कहाँ रहते हो ?"
"जी इस गली में तीन मकान छोड़ कर बी-६३ "
मैने कांपती ऊँगली से गली की तरफ इशारा करते हए कहा।
"करते क्या हो ?"
"जी जॉब करता हूँ बैंक में, मेरा दोस्त भी मेरे साथ ही काम करता है हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त है वो  कब्रिस्तान के पास वाले गली में रहता है " पुलिस वाले के अजीब सवालो से डरकर मैने एक सांस में कहा।
 "खालिद अरे ओ खालिद"........... अम्मी नंगे पैर दौडी आ रही थी उन्होंने शायद दरवाजे से ही मुझे पुलिस के साथ बात करते देख लिया था।
"क्या हुआ दूध वाला दिखा या नही,चल छोड़ घर चल  एक दिन बिना दूध की चाय पी लेंगे" और उन्होंने पुलिस वाले को नज़र अंदाज़ करते हुए मेरा हाथ पकडा और लगभग मुझे घसीटते हुए घर की तरफ दौड लगा दी।
"क्या कर रहा था वहां तुझे पता नही के हालत कितने ख़राब है। पुलिस तो वैसे भी तिल का ताड़ बना देती है अभी उठा कर ले जाती तुझे और दंगा भड़काने के इलज़ाम लगा कर जेल में डाल  देती "
अम्मी ने उखड़ी साँसों के साथ मुझे झंझोड़ते हुए कहा। मैं अजीब हालत में था कुछ नही समझ पा रहा था के क्या हो रहा है खामोश सा मै कुर्सी पर ढेर हो गया।

कर्फू का आज तीसरा दिन था। अफवाह और हकीकत में अंतर करना मुश्किल हो रहा था। कई लोग दंगे में मारे गए। और घरो में आग लगा दी गई। न्यूज़ चैनल पर ये ही खबरे चल रही थी। पर हकीकत क्या है ये वेँ ही जानते थे जिन पर गुजरी थी। रजनीश का फ़ोन मै बार बार मिला रहा था पर वो बंद आ रहा था। उसकी कोई खबर नही थी। सुनने में आ रहा था कि कई परिवार जिन्दे जला दिए गए। सुनकर ही रूह काँप जाती थी।

मरकर श्मशान या कब्रिस्तान ही तो जाना है फिर किस लिए ये मारामारी ? एक फुट इधर या उधर क्या फर्क पड़ता है। पर धर्म के इन ठेकेदारो को मासूमो की लाशो पर चढ़कर ही जन्नत या स्वर्ग मिलेगा। कैसा धर्म है ये जो आये दिन मासूमो की बलि मांगता है। अगर ये ही धर्म है तो में नास्तिक ही अच्छा। इन कथित धर्म के ठीकेदारो ने धर्म का कुछ भला नही किया। हाँ इंसानियत को जरूर नुक्सान पहुँचाया है।


"हेलो खालिद में रजनीश बोल रहा हूँ ....... "
"रजनीश मेरे भाई कैसा है तू ? कहाँ है ? मैंने तुझे कितने फ़ोन किये तेरा फ़ोन बंद क्यों था? गुड़िया कैसी है ?"
 रजनीश की एक हैलो  पर मैंने अपने सारे सवाल कर डाले।
"मेरे भाई में ठीक हूँ रहमान चाचा के यहाँ हूँ। तेरे साथ फ़ोन पर बात करने के बाद हम अपनी छत पर जाकर छुप गए।पर इन्होने हमे अपने घर की खिड़की से देख लिया। हमे लगा की अब हम नही बच पाएंगे ये लोग हमे मार देंगे। पर ऐसा नही हुआ। रहमान चाचा हमें अपने घर ले गए और बड़े आराम से हमे रखा। हमारी हिफाज़त की। खालिद अगर रहमान चाचा नही होते तो पता नही हमारे साथ क्या होता।"  रजनीश अपनी आपबीती बता रहा था और मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे या अल्लाह तूने इंसानियत को बचा लिया "तू बहुत करीम है रहीम है मेरे मौला।"

हालत अब धीरे धीरे सामान्य हो रहे है। मरने वालो की जान की कीमत सरकार ने १५ लाख तय कर दी है । धर्म और मजहब के नाम पर मासूमो की बलि चढाने वाले। अलग अलग न्यूज़ चैनलों पर इंसानियत और हमदर्दी की माला जप रहे है।
पर इंसानियत तो रहीम चाचा जैसे लोगो के साथ रजनीश की बेटी के जन्मदिन की पार्टी में केक खा रही है।