Sunday, January 1, 2017

नोटबंदी

आज दिनाँक ०७-नवम्बर  २०१६ :

"लाला बेटा बहुत बिमार है। थोड़े पैसे चाहिए। आप चाहे तो मेरी मज़दूरी से काट लेना" धन्नी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। 

"सरकारी अस्पताल में दिखा ले फ्री में सही इलाज़ होता है वहाँ।" लाला ने हरे-लाल नोट गिनते हुए कहा।

"गया था वहाँ, पर वो बोले बेड खाली नही है। इसीलिये आप के पास आया हूँ।" धन्नी ने दोनों हाथ जोड़कर, कमर को  झुकाते हुए कहा। 

"परसो 9 तारिख़ को मजदूरी मिलेंगे तब आना।" लाला ने चश्मे को सही करते हुए बेपरवाही से जवाब दिया। 

"पर लाला जी मेरा बेटा बहुत ही बिमार है। परसो तक तो शायद......" धन्नी की रुंधी हुए आवाज़ शायद से आगे कुछ ना कह सकी। 
धन्नी क्या बच्चो वाली बात करता है। मौत को कौन रोक पाया है। जिसकी परमात्मा ने लिख दी उसकी निश्चित है।" लाला ने फिर से बेदर्दी के साथ कहा। 

"पर लाला जी कुछ तो दया करो." धन्नी के माथे पर नवम्बर की हलकी सर्दी में भी पसीने की बुँदे साफ़ नज़र आ रही थी। 

"बोला है न परसो आना,आज 7 तारिख है कल 8 और परसो 9 बस कल का ही तो दिन बीच में है। चल भाग यहाँ से " लाला ने गुस्से से छिड़की लगते हुए कहा। 

आज दिनांक  ०९-नवम्बर २०१६-

आज  गाँव मैं पैसे की वजह दो मौत हुई है। एक लाला सुखीराम की दूसरा धन्नी मजदूर के बेटे की। एक पर अधिक थे और एक पर नही थे।