Monday, August 21, 2017

मैं अधूरा इश्क़

तुम तितली सी फुदको, मैं भौंरे सा मंडराऊँ,
तुम बसन्त सी महको मैं पतझड़ सा बिखर जाऊँ।
तुम गंगा सी पावन मैं झरना कोई आवारा सा,
तुम सुबह की पहली किरण, मैं ढलते सूरज का कोई किनारा सा।
तुम कोई ज्ञानी आत्मा, मैं दुर्बल शरीर,
तुम धरा सी दानी, मैं कोई मलंग फ़कीर।
मैं कतरा कतरा सा, तुम सागर की अल्हड़ लहर,
मैं जेठ की तपती दोपहरी सा, तुम सुबह की पहली पहर।
तुम पूजा की थाली सी, मस्जिद की अजानों सी,
मीर की ग़ज़लों सी, मंटो के अफसानों सी।
मैं किसी मंदिर की सीढ़ी सा, मस्जिद के चौबारे सा,
राँझें की परछाई सा मजनूं के दुआरे सा।
तुम सच्ची कसम, किस्मत की लकीरों सी
कृष्ण की मुरली सी मीठी, तान कोई मंजीरों सी।
मैं अधूरा इश्क़, किताबो में रखें सूखे इरादों सा।
खतों की झूठी तहरीरों सा,सा जन्मों के बचकाने वादों सा।