पात्र: ५५ साल का अधेड़ आदमी, कोठे वाली
आपा (गुलाबबाई), मोहिनी, दीपा, जुगनी, ३ चार लडकियां, शराबी आदमी (दलाल)
सूत्रधार :- (स्टेज पर सूत्रधार आता है। पुरे स्टेज पर अन्धकार है। केवल सूत्रधार के ऊपर ही प्रकाश है। सूत्रधार बोलता है।) आज हम आपके सामने एक ऐसा नाटक प्रस्तुत करने जा रहे है। जो सत्य घटना पर तो आधारित नही, परन्तु सत्य के बहुत करीब है। जो आधारित है। हमारे समाज की एक ऐसी डरावनी और काली सच्चाई पर जो आज भी खूब फूल फल रही है। जहाँ नारी केवल मनोरंजन का साधन मात्र है। केवल भोग की वस्तु है। जो हमारे बनवाटी समाज के झूठे रिश्तो और हमारी बीमार मानसिकता का प्रमाण है। तो पर्दा उठाते है उसी काली सच्चाई से। (इतना कहकर सूत्रधार अँधेरे में विलुप्त हो जाता है।)
(पहला दृश्य)
धीरे-धीरे पर्दा उठता है। स्टेज पर तवायफ के कोठे
का सेट लगा है। शाम का समय है। कोठे पर मद्धम रौशनी है। नैपथ्य में कुछ फ़िल्मी
गीतों की आवाज़ आ रही है। सामने ही एक तगड़ी सी औरत दीवान पर बैठी सरोते से
छालिया (सुपारी) काट रही है। उसकी बगल में एक पानदान रखा है। कुछ लडकिया सजी धजी
हाथो में अपनी चोटिया घूमाते इठलाती इधर से उधर घूम रही है। गलियो में
राहगीर आ जा रहे है और लडकिया उन्हें अश्लील इशारे कर रही है।
स्टेज पर एक अधेड़ आदमी का प्रवेश होता है। उसने सफेद
धोती और कुरता पहना रखा है। लडकिया उसे देखकर खिलखिला कर हंसती है। आदमी थोड़ा सा
सहमकर इधर उधर देखता है। और लडकियो से पूछता है।
अधेड़ आदमी - बी/१६३ ये ही है?
लडकियाँ (खिलखिलाकर)- डाकिया है क्या ?
अधेड़ आदमी - नही डाकिया नही हूँ पर मुझे बी/१६३
पर जाना है। (आदमी थोड़ा सा सकपकाकर बोलता है)
लडकियाँ (एक साथ बोलती है।) - डर मत तू सही जगह
पर आया है।
आपा- (गुलाबबाई जो दूर से ही इनकी बात सुन रही थी)-
ऐ क्यों ग्राहक का टाइम खोटी करती हो, आने दो। आओ साहब (हाथ से इशारा करती है।)
बोलो कौन सी चाहिए। सामने खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा करके पूछती है।
आदमी - जी मुझे मोहिनी चाहिए।
आपा - (आश्चर्य से घूरते हुए) तू पहले तो कभी नही आया यहाँ, फिर मोहिनी को कैसे जनता है?
अधेड़ आदमी - जी दोस्तों से काफी नाम सुना है,
उन्ही से पता पूछ कर आया हूँ।
आपा - (मुस्कुराते हुए लड़कियों की तरफ हाथ करके)
देखा इसलिए मैं मोहिनी को तुम सब से जायदा प्यार करती हूँ। ग्राहक जाकर तारीफ करते
है उसकी। सीखो कुछ हराम खोरो। (फिर आदमी की तरफ देख कर बोलती है) सारी साहब
पर मोहिनी नही मिल सकती इस बख़्त।
अधेड़ आदमी - पर मुझे तो मोहिनी ही चाहिए।
आपा - पर साहब ये सब भी तो काफी अच्छी है। इनमे
से ले जाओ कोई। देखो वो सनम है। कमाल की लड़की है उसे ले जाओ।
अधेड़ आदमी - (थोडे उतावले पन से) आप समझ नही
रही मुझे मोहिनी ही चाहिए।
आपा - (थोड़े से तल्ख़ अंदाज में) - देखो बाबू
मोहिनी अभी ग्राहक के साथ बिजी है। वो नही मिल सकती। ज्यादा आग लगी है तो इनमें से
कोई भी ले जा।" (कतार में खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा करते हुए कहती है।)
अधेड़ आदमी- (बैचेन सा होकर) नही,
मुझे मोहिनी ही चाहिए।
आपा - (गुस्से से झल्लाकर) ऐ! ऐड़ा है
क्या, बात समझ में नही आती तेरी, बोला न मोहिनी बिजी है। और सुन और कोई नही चाहिए
तो फूट यहाँ से"
आदमी - (थोडी सी हठधर्मी के साथ) नही में बिना मिले नही
जाऊँगा। (और वो ढीट बनकर वही बैठ
गया।)
आपा - (गुस्से से खड़ी हो जाती है। और चुटकी बजाते हुए कहती है) "हेल्लो...... ज्यादा अन्ना हज़ारे बनने की कोशिश ना कर वरना ऐसी मार पड़ेगी के बाबा को तो स्त्री के कपडे भी नसीब हो गए थे। तुझे नंगा ही भागना पड़ेगा। हरामी साला....। धंधा तो पहले ही मंदा है ऊपर से ये ऐसे ढीठ ग्राहक सालो ने दिमाग का कश्मीर बना के रख दिया।"
अधेड़ आदमी - (आपा की बातो को अनसुना करके ढीटता के साथ) अगर आप मुझे मोहिनी से मिलवा देगी तो मैं 1000 दे सकता हूँ। सोच लो ।
आपा- (गुस्से से थोड़ी तेज़ आवाज़ में) ओये सुन बे दल्ले साले हम यहाँ जिस्म बेचते है। हमारे भी कुछ कायदे-कानून है। ईमान खरीदना है तो बराबर में पुलिस स्टेशन है वहाँ जा समझा। और तू एक बात तो बता इतना पागल क्यों है तू मोहिनी के पीछे ऐसा क्या है उसमें जो इन सब में नही है। (पास खड़ी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहती है।)
अधेड़ आदमी - आप जैसा समझ रही है ऐसा कुछ नही है मुझे कोई गलत काम नही करना है। बस में तो सिर्फ एक बार उस से मिलना चाहता हूँ।
आपा - (हा...हा...हा... पान से लाल
दांतो को दिखाते हुए बेहूदा सा ठहाका मारती है।) साले हरामी तू..नेता है क्या? जो
वोट से पहले ही मदद करना चाहता है। और वो भी पैसे देकर।
अधेड़ आदमी - (थोड़ा सा शर्मिदा होकर) देखिये आप मुझे गलत समझ रही है मैं ऐसा नही हूँ। मैं शरीफ आदमी हूँ।
आपा - (हुंन.न..न.. गहरी सांस लेकर पान की पिचकारी पास रखे थूकदान में मारते हुए) सारे शरीफजादे रंडियों के कोठो और संसद में ही तो आते है। भाग साले नोटंकी कही का। और हाँ एक बात तो बता तुझे जब कुछ करना नही तो मिलना क्यों है? काम क्या है मोहिनी से?"
अधेड़ आदमी - (हकलाते हुए) जी वो...वो....कुछ बात करनी है उसने हकलाते हुए कहा।"
आपा- (हाथ की ऊँगली हिलाते हुए)
अच्छा देख अब यहाँ से फूट जा कल्टी मार वरना लड़कियों से बोल कर तेरा वो हाल करुँगी
के सारी उम्र याद रखेगा।
अधेड़ आदमी औरत की बात सुनकर चुपचाप वहां
से चला जाता है। हरामी पता नही कहाँ-कहाँ से आ जाते है। नामुराद बोहनी के
टाइम दिमाग की दही कर दी आपा के बड़बड़ाने की आवाज़ आती है। अब स्टेज
पर धीरे धीरे अंधकार होने लगता है। और अन्धकार से सूत्रधार की आवाज़
उभरती है।
सूत्रधार - कौन था ये आदमी, जो इस
उम्र में भी इन बदनाम गलियो में अपनी हवस का बोझ लिए घूम रहा है। क्या वो कोई
समाज सेवक था। जो मोहिनी को इस जहन्नुम से आजाद कराना चाहता है। या हवस की आग में
जलता कोई ग्राहक जिसे सिर्फ मोहिनी ही चाहिए थी। आये देखते है।
(दूसरा दृश्य)
स्टेज पर धीरे धीरे रौशनी होने लगती
है। सामने गली के नुक्कड़ पर एक चाय के ठेले के पर वो ही अधेड़ आदमी हाथ
में चाय का कप लिए बैठा है। और गुलाब बाई के कोठे की तरफ देख रहा है। नेपथ्य में
फ़िल्मी गानो की आवाज़ आ रही है। एक शराबी किस्म का आदमी अधेड़ के पास आता है।
शराबी आदमी - (अधेड़ की तरफ आँख मरते
हुए) क्यों साहब मोहिनी पर दिल आ गया क्या? खैर आपकी ही क्या गलती मोहिनी माल ही
ऐसा है। मुलाकात हुई या नही। (खिलखिलाकर भँवरे मटकाता है।)
अधेड़ आदमी - आप कौन हो और आप को कैसे
पता की मुझे मोहिनी से मिलना है।
शराबी आदमी - (ठहाका लगते हुए) मैं
इन बदनाम गलियो का ठेकेदार हूँ। मोहिनी से मिलना है है तो एक ५०० सो का हरा पत्ता
निकाल।
अधेड़ आदमी - (उसकी तरफ बेयक़ीनी से
देखते हुए) तुम दलाल हो?
शराबी आदमी - (खिस्यानी सी हंसी के
साथ) बाबु तमाशा देखना है तो पैसे निकाल। मैं कौन हूँ ये छोड़।
अधेड़ आदमी - (चाय का कप रखते हुए)
ठीक है पहले मिलवाओ फिर पैसे दूंगा।
शराबी आदमी - देख बाबु ये धंधा गन्दा
जरूर है। पऱ यहाँ जिस्म के साथ जुबान का भी मोल है। कह दिया मिलवा दूंगा तो
मिलवाऊंगा समझे।
अधेड़ आदमी - (जेब में हाथ डालकर
पैसे निकालने लगता है।) ये लो।
शराबी आदमी - (500 का नोट चूम कर जेब
में रख लेता है) देख बाबु अपने रिस्क पर तुझे गुलाबो के कोठे पर दोबारा ले जा रहा
हूँ। कोई गड़बड़ की तो समझ लेना यहाँ इज़्ज़त का कोई मोल नही।
अधेड़ आदमी- पता है मुझे ।
और चुप-चाप उस दलाल के साथ चल देता
है। अब प्रकाश उन पर से हटकर स्टेज के दूसरी और चला जाता है। जहाँ गुलाब बाई का
कोठा है। कोठा पहले की तरह ही है। दोनों आदमी अंदर दाखिल होते है।
शराबी आदमी - (जबरदस्ती से
मुस्कुराते हुए) आपा क्या हाल चाल।
आपा - (शराबी के साथ अधेड़ को देखकर
कुछ गुस्से में) साले हलकट तू फिर ले आया इस सनकी को।
शराबी आदमी - अरे आप क्यों काम के
टाइम दिमाग को परेशान कर रही है। (धीरे से कान के पास जाकर) मोटी चिड़िया है फंसा
लो, एक बार मोहिनी का चस्का लग गया न तो सोने की मुर्गी साबित होगा। जमीन जायदाद
सब लुटा देगा।
आपा - (शराबी की बातो से थोड़ी सी
प्रभावित होकर अधेड़ से) देखो बाबु वैसे तो जिसे हम एक बार अपनी दहलीज से दुत्कार
देते है। उसे फिर दुबारा फटकने नही देते। पर जब ये मुआ (शराबी की तरफ देखकर) आप को
दोबारा ले ही आया तो आ जाओ। पर मोहिनी अभी भी व्यस्त है।
अधेड़ आदमी - देखिये मुझे मोहिनी ही
चाहिए। और मुझे कोई गलत काम नही करना बस मैं उसे देखना चाहता हूँ बाते करना चाहता
हूँ उससे।
आपा- (थोड़ा सा मुस्कुराकर) शर्माओ
नही यहाँ शर्म नही रहती, और तेरे जैसे खूसट यहाँ बात करने के हज़ारो रुपाये नही
लुटाते।
अधेड़ आदमी - देखिये में ओरो की तरह नही हूँ।
आपा - (फिर से गुस्से से तन तनाकर) देख सुन बे
तू जो भी है सही-सही बता दे अब, नही तो अपनी तशरीफ़ लेकर दफा हो जा यहाँ से मुझे
गुस्सा आ गया तो, तेरा ऐसा हाल करूंगी की रेलगाड़ियों में बधाई मांगता फिरेगा।
ये कोठा है कोई मोबाइल बूथ नही कि बात करनी है।
अधेड़ आदमी - (थोड़ा सा घबराकर) देखिये
बहन जी आप मिलवाने के पैसे लेती है ना, तो आप मेहरबानी करके उस से
मिलावा दे। मैं आप को जितना टाइम उसके साथ रहूँगा उसके पैसे दूँगा।
आपा - (थोड़ा सा चिढ़कर) ओये बिन
बरसात के मेंढक बहन होगी तेरी माँ, पर ये बात तूने सही कही कि हम अपने वक़्त के
पैसे लेते है। चल ठीक है। ढिल्ले मिलवाती हूँ। पर एक बात कान खोल कर सुन ले अगर
तुने कोई चालाकी की या तू कोई फालतू का समाजसेवी निकला तो मेरे से बुरा कोई नही
होगा। मुझे कोई लफड़ा नही मांगता मेरे कोठे पर। (अधेड़ के साथ साथ शराबी आदमी की तरफ
भी ऊँगली घुमाकर आँखों में आँखे डालते हुए कहती है।)
अधेड़ आदमी - (खुश होकर) जी...जी..
ऐसा कुछ नही है। आप निश्चिन्त रहे।
आपा - (एक लड़की को आवाज़ लगाकर)
ऐ..... दीपा देख तो मोहिनी फ्री हुई या नही, फ्री हो तो बोल के तुझसे देवदास मिलने
आया है। हा..हा..हा..हा। साला हलकट। (पान का बीड़ा गाल में दबाते हुए ठहाका मारती
है)
(एक लड़की जिसका नाम दीपा
है। मटकते हुए छम छम करती और तिरछी नज़रो से आदमी को घूरते हुए कमरे से बाहर
चली जाती है। आदमी चुप-चाप ऐसे ही खड़ा रहता है। थोड़ी देर बाद वो ही लड़की अंदर
आती है।)
दीपा - आपा........ फ्री
है। पर कह रही है। कि अभी थकी हुई है। सांस ठिकाने आने दे जब ही कोई नया
मुर्गा भेजना।
आपा - ह्म्म्म.. ठीक है ठीक है। जा
जाकर कोई ग्राहक फंसा सुबह से तेरी बोहनी नही हुई दीपा। बहुत ठंडी जा रही है तू
आजकल। (लड़की को फटकारते हुए से लहज़े में कहती है)
आपा- (अधेड़ आदमी से) "दस
मिलट रुक बे! मिलवाती हूँ। तब तक १००० रुपए दिल से जुदा कर।
(आदमी चुपचाप अपने बटुए से
५००-५०० के दो नोट निकाल कर औरत के हाथ पर रख देता है। शराबी आदमी
आपा की तरफ देखता। आपा उसका आशय समझ जाती है और एक सो का नोट उसे पकड़ा देती है।
शराबी खुश होकर दीपा के साथ मुस्कुराता हुआ वहां से बहार चला जाता है।)
कमरे में केवल गुलाब बाई (आपा) और
अधेड़ आदमी ही रह जाते है।)
आपा- पानी पियेगा या कुछ ठंडा
मंगाऊँ।"
अधेड़ आदमी - (थोड़ा सकपकाते हुए) जी..जी
नही.. कुछ नही शुक्रिया।
आपा- डर मत इस मेहमान नवाजी के हम
पैसे नही लेते। (और आवाज़ लगाती है) जुगनी..... दो पेप्सी लाना ठंडी
सी।
(दूसरे कमरे से मेकअप से पुते चेहरे
वाली एक लड़की जिसका नाम जुगनी है। ट्रे में दो पेप्सी की बोतल रखे हुए अंदर आती
है।)
जुगनी - (कोल्डड्रिंक की बोतल
देते हुए) आपा मोहिनी ने कहा है कि वो अब ठीक है। कस्टमर को
भेज दे।
आपा- (आदमी की तरफ कोल्ड्रिंक की
बोतल बढ़ाते हुए) जाओ जी आप की मुलाकात का वक़्त आ गया। यहाँ से तीसरा कमरा
मोहिनी का ही है। ये पेप्सी भी वही जाकर पी लेना। और सुन एक बार फिर कह रही है कुछ
गड़बड़ नही चाहिए मुझे समझ लेना वरना नाम गुलाबबाई जरूर है पर में गुलाब
जैसी हूँ नही। (धमकी भरे अंदाज़ में आदमी को सिर से पांव तक ताड़ती है)
अधेड़ आदमी - जी बेफिक्र रहिये।
(आदमी धीरे धीरे दूसरी तरफ चल देता
है। स्टेज पर अँधेरा होने लगता है। नेपथ्य में गानो की आवाज़ आती रहती है। एक बार
फिर सूत्र धार की आवाज़ आती है।)
सूत्रधार- आखिर इस अधेड़ का मसला क्या
है। क्यों ये मोहिनी (जिसे इसने पहले देखा तक नही बस दोस्तों से नाम ही सुना है)
मिलने के लिए इतना बेकरार है। क्या गुलाबबाई का शक सही है। कि ये कोई समाज सेवक
है। या ये कोई बहरूपिया है। जो मोहिनी के बहाने अपना कोई हित साधना चाहता है। आये
देखते है आखिर इस आदमी का सच क्या है। और कौन है मोहिनी।
(अंतिम दृश्य)
स्टेज पर मद्धम सी रौशनी हो जाती है।
अधेड़ आदमी एक दरवाजे के सामने खड़ा है।
अधेड़ आदमी (ठक-ठक...दरवाज़ा खट खटाता)अं दर से एक
चटकीली सी आवाज आती है। ज्यादा शरीफ ना बन अंदर आ जा दरवाज़ा खुला है।
अधेड़ आदमी दरवाज़ा खोल कर अंदर चला जाता है। पूरा कमरा बीड़ी के धुंए से
भरा हुआ है। सामने एक बेड पड़ा था और उस पर सिलवटों भरी एक मटमैली सी चादर बिछी है।
बेड के बगल में कुर्सी पर लगभग 26-27 साल की लड़की जिसका नाम मोहिनी है वो बैठी है
और अपने मुहँ से भट्टे की चिमनी की तरह धुंआ निकाल रही। कमरे में कम रौशनी और
धुएं के कारण लड़की का चेहरा साफ़ नज़र नही आ रहा है। अधेड़ आदमी धीरे से दरवाजा
बंद करता है। और लड़की की तरफ बढ़ता है।
मोहिनी - (हाथ से रुकने का इशारा करते
हुए) रुक जा इतनी भी क्या गर्मी चढ़ी है थोड़ा सब्र रख बीड़ी तो आराम से पीने दे। तू
भी पियेगा क्या?
अधेड़ आदमी कुछ नही बोलता है
चुप-चाप आराम से बेड के एक कोने पर बैठ जाता है।
मोहिनी- (आदमी के हाव-भाव और क़द काठी
देखकर बोलती है) इस उम्र में भी गर्मी नही गई तेरी।
(आदमी अब भी कुछ नही बोलता है।)
मोहिनी- बीड़ी को जमीन पर फेंकती है
और कुर्सी से उठकर पास से एक कंडोम का पैकिट उठाकर आदमी के ऊपर फेंकती है) चल अब
ज्यादा टाइम कल्टी ना कर काम पे लग जा और भी कस्टमर है मेरे।
अधेड़ आदमी-(रोते हुए सिसकी भरी आवाज
में) बि..ट... बिट्टू....।
कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा हो
जाता है। सांस लेने की भी आवाज़ नही आती।
मोहिनी- (चोंककर जल्दी से कमरे की
खिड़की खोल देती है। और पास जाकर बोलती है।) कौन हो तुम? और अधेड़ का चेहरा फटी
आँखों से देखते हुए जमीन पर ढह जाती। कमरे में फिर कुछ देर के लिए सन्नाटा हो जाता
है। अब मोहिनी धीरे धीरे अपने बेतरतीब कपड़ो को सही करते हुए। जमीन से उठती है।
आदमी पागलो की तरह मोहिनी को देख रहा है।
मोहिनी- (सिसकी भरी आवाज़ में) बाबा
तुम ।
इतना सुनते ही आदमी दहाड़े मार-मार कर
रोने लगता है। लड़की जिसका नाम कुछ देर पहले तक मोहिनी था और जो बड़ी बेशर्मी
से बक बक कर रही थी बहते आंसू और पथराई नजरो से उस आदमी को देखती रहती है। कुछ देर
तक दोनों एक दूसरे को देखते रहे और रोते रहे। फिर मोहिनी बोलती है।
मोहिनी- (हाथो से आंसू पूछते हुए) आज
अचानक यहाँ क्यों, कैसे?"
अधेड़ आदमी गर्दन झुकाये बैठा रहता
कुछ नही बोला।
मोहिनी- (सिसकी दबाते हुए एक सांस
में बोलती है) भैय्या कैसा है? हमारा घर, वो नीम का पेड़, मेरा झूला, गाँव की
वो कच्ची कीचड़ से भरी गालियां, वो आम का बाग़ और बाबा वो मेरे सब
दोस्त, सब कैसे है बाबा?"
अधेड़ आदमी- (मोहिनी के पास आकर) मेरी
बच्ची तू कैसी है?
मोहिनी- (अधेड़ आदमी की बात काटते हुए
डब डबाई आँखों से) आप यहाँ इतने सालों के बाद कैसे और क्यों आये
है?
अधेड़ आदमी- (सिसकी भरते हुए) मैं
तुम्हे लेने आया हूँ मेरी बच्ची। पिछले महीने हरिपुर में लाला के बेटे की
शादी में तुम्हे नाचते हुए देखा था। वहां बिरादरी की शर्म से कुछ ना कह सका बड़ी
मुश्किल से तेरा पता ढूँढ़ते ढूँढ़ते आया हूँ बेटी मेरे साथ घर चलो।
मोहिनी- (आदमी की तरफ देखते हुए)
बिरादरी की शर्म ह्म्म्म.....।
अधेड़ आदमी- (मोहिनी के सर पर हाथ
रखते हुए) अब में तुझे यहाँ से घर ले जाऊंगा बेटी।
मोहिनी- (तिरिस्कार भरी नजरों से
आदमी को देखते हुए) घर...... हुं.... घर...(कहते कहते रोने लगती है)
आदमी बेबस सा मोहिनी की तरफ देखता
रहता है। और उसके कंधों पर हाथ रख देता है।
मोहिनी- (आदमी की तरफ से मुंह फेरकर)
देखिये आप अच्छे घर के नैक इंसान मालूम पड़ते है। मुझे ऐसे बार बार मत छुइए आप
अपवित्र हो जायेंगे। और शायद आप को कोई गलतफेमी हुई है। मैं कोई बिट्टू सिट्टू नही
हूँ मैं मोहिनी हूँ।
अधेड़ आदमी - (एकदम सकपका कर) नही नही
ऐसे मत कहो बेटी, अभी तो तुमने मुझे बाबा कहा था।
मोहिनी- वो शायद आप को रोता देख कर मेरे मुहँ से निकल गया।
अधेड़ आदमी- (तड़पकर बेचैनी से) नही
बेटी तुम मेरी बिट्टू ही हो अभी तुमने भईया को और सबको पूछा था। तुम मेरी
बिट्टू ही हो। बेटी मुझे मेरी गलती की सजा मिल चुकी है। तेरी सौतेली माँ और
भाई सब के सब केदारनाथ में आई बाढ़ में बह गए मेरा अब तुम्हारे सिवा कोई नही है।
(और वह घुटनों के बल जमीन पर बैठ जाता है)
मोहिनी- (सपाट लहजे में) देखिये मैं
आप को नही जानती आप यहाँ से चले जाइए वरना में धक्के देकर आप को यहाँ से निकलवा
दूंगी आप एक शरीफ और अच्छे आदमी है आप की बेटी इस कोठे पर कैसे हो सकती है। (और
चिल्लाने लगती है)
मोहिनी- आपा..... आपा...
एक साथ कई लड़कियां और गुलाबबाई (आपा)
दौड़ीती हुई आती है।
आपा- (जमीन पर घुटने के बल बैठे अधेड़
की तरफ देखते हुए) क्या हुआ मोहिनी?
मोहिनी- (आदमी की तरफ ऊँगली से इशारा
करते हुए) आपा इसे निकल दीजिये बड़ा बेहूदा इंसान है शायद पागल है मुझे अपनी बेटी
बता रहा है।
आपा- (गुस्से से) साले हरामी मैं
तुझसे पहले ही बोली थी कि कोई लफड़ा नही करना । पर तू माना नही। ऐ लड़कियों फेंक दो
उठाकर इसे बहार। और अगर आइंदा इधर नज़र भी आये तो साले के कपडे फाड़ कर नंगा कर
देना।
लडकिया अधेड़ को घसीटते हुए कमरे से
बहार ले जाती है। आदमी बिट्टू मेरी बच्ची, बिट्टू…बिट्टू चिल्लाता रहता है। सब
लडकिया और आपा स्टेज से चली जाती है। और मोहिनी बेदम सी वही बैठ जाती है। और रोते
हुए बोलने लगती है।
मोहिनी- बाबा जब मुझे सौतेली माँ
अपने भाई के साथ शहर भेज रही थी। मैं भी ऐसे ही बाबा..बाबा चिल्ला रही थी। काश!
आपने उस दिन मेरी बात सुनी होती, काश! आपने उस दिन माँ की बात न सुनकर मुझे रोक
लिया होता। तो आज आप की बिट्टू यूँ इन बदनाम गलियों की जीनत नही बनते। अब मै आप के
साथ कैसे जा सकती हूं। अब बहुत देर से आये है बाबा काश आप पहले आ जाते। अब तो आप
की बिट्टू मर चुकी है यहाँ अब बिट्टू नही सिर्फ मोहिनी है। और दहाड़े मार मार कर
रोने लगती है। स्टेज पर धीरे धीरे अँधेरा होने लगता है।
और सूत्रधार की आवाज आती है।
ना जाना कि दुनिया से जाता है
कोई।
बहुत देर की मेहरबाँ आते आते।।
क़यामत भी आती थी हमराह उनके।
मगर रह गई हम-इना* आते आते।।
क़यामत भी आती थी हमराह उनके।
मगर रह गई हम-इना* आते आते।।
और पर्दा गिर जाता है।