Saturday, March 11, 2017

बाँझ


“अरे….आओ आओ रामदुलारी बहन आज हमारे घर का रास्ता कैसे याद आ गया। जब से मौहल्ला छोड़ा है तुम तो जैसे हमे भूल ही गई।”
“नही बिलक़ीस आपा कैसी बाते करती हो। अपनों को भी भला कोई भूलता है। वो तो बस काम में वक़्त ही नही मिल पता। खैर छोडो ये लो मिठाई खाओ रामदुलारी ने मिठाई का डब्बा आगे करते हुए कहा।
“अरे मिठाई ये किस ख़ुशी में?”
“बताती हूँ पहले आप मुहँ मीठा करो।”
“चलो अब बताओ।” बिलक़ीस ने बर्फी का टुकड़ा मुहँ में रखते हुए कहा।
“तुम दादी बन गई हो आपा। दिनेश के यहाँ लड़का हुआ है। रामदुलारी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“माशाल्लाह अल्लाह लम्बी उम्र दे बच्चे को। ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई दुलारी। और बिलक़ीस ने एक सौ का नोट पर्स से निकाल कर रामदुलारी की तरफ बढ़ा दिया।
“नही…नही…. आपा इसकी कोई जरूरत नही है।” दुलारी ने हिचकते हुए कहा।
“अरे तुझे नही दे रही ये तो मेरे पोते के लिए है।” बिलक़ीस ने आँखे मटकाते हुए कहा।
“जब आप घर आओगी तभी देना।”
“अरे दुलारी रख ले घर जब आऊँगी तब तो में पोते को गोद में लेकर ढेरे दुआएँ दूंगी।” बिलक़ीस ने नोट दुलारी के हाथ में रखते हुए कहा।
“हाँ…हाँ क्यों नही आपा, वैसे बहु नज़र नही आ रही कही बाहर गई है क्या?” दुलारी ने अंदर झाँकते हुए कहा।
“होगी यही कही बाँझ।” बहू के नाम पर बिलक़ीस ने मुँह बनाते हुए कहा।
“ऐसे नही बोलते आपा ऊपर वाले पर भरोसा रखिये भगवान ने चाहा तो जल्दी ही आप के घर में भी किलकारियां गूंजेगी।” दुलारी ने बिलक़ीस को तसल्ली देते हुए कहा।
“हम्म पिछले 4 साल से ये ही उम्मीद किये जा रही हूँ दुलारी।” बिलक़ीस ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
“तुम्हे तो पता है दुलारी, आसिफ के अब्बू की मौत के बाद कितनी मुसीबतों से ज़िन्दगी बसर की है मैंने’ सिर्फ आसिफ को क़ाबिल बनाने के लिए। इकलौते बेटी की शादी के कितने अरमान थे। पर आसिफ की ख़ुशी के लिए उनका भी गला घोट दिया मैंने, जहाँ उसने कहा वही शादी कर दी। पर क्या अब पोता-पोती को गोद में खिलाने का अरमान भी सीने में दफ़न कर दूँ।”
बिलक़ीस ने दुपट्टे से आँसू पोछते होये आह भरी।
“बिलक़ीस दिल छोटा नही करो भगवान के घर देर है अंधेर नही।” दुलारी ने उसको तसल्ली देते हुए कहा।
“लो मैं भी किन बातों में लग गई, तुमको को चाय नाश्ता भी नही पूछा, मरियम…..अरी… ओ मरियम कहाँ मर गई। बाहर  आ जल्दी।”
बिलक़ीस ने बहु को आवाज़ लगाई।
अंदर से एक नाज़ुक सी लड़की अपना दुपट्टा सही करते हुए सकपकाई सी जल्दी से बहार आई।
“जी अम्मी कहिये।”
“अरे कहना क्या है। दिखता नही दुलारी बहन आई है। इनके लिए कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम करो। वैसे किसी से सलाम दुआ की तो, तुम्हे तौफ़ीक़ है नही, कि किसी बड़े छोटे को देखकर सलाम कर ले।”
बिलक़ीस ने कड़वे लहज़े में कहा।
“आदाब आंटी” मरियम ने दुलारी की तरफ देखते हुए कहा।
“जीती रहो बेटी दूधो नहाओ पूतो फलो।” दुलारी ने सिर पर हाथ रखते हुए बड़ी मोहब्बत से कहा।
“अब यही खड़ी रहोगी या चाय भी लेकर आओगी।” बिलक़ीस ने एक बार फिर से बहु को झिड़की लगाई। और मरियम चुपचाप वहाँ से चली गई।
“बिलक़ीस क्यों खामा खा उस बिचारी पर गुस्सा होती रहती हो। कितनी प्यारी बच्ची है। भगवान ने चाहा तो बच्चे भी हो जायेंगे।” दुलारी ने बहु के साथ बिलक़ीस के रवैय्ये को देखते हुए समझाने के लहजे में कहा।

मरियम की शादी 4 साल पहले बड़ी धूम-धाम से आसिफ़ से हुई थी। दरअस्ल ये एक लव मैरिज थी। आसिफ और मरियम एक ही कॉल सेंटर में जॉब करते थे। वही दोनों में प्यार हुआ और घर वालो की मर्ज़ी से दोनों ने शादी कर ली। पर शादी के 4 साल बाद भी मरियम माँ नही बन सकी। जिसकी वजह से उसकी सास बिलक़ीस उस से काफी नाराज़ रहती थी। आसिफ उनकी एकलौती औलाद थी और वैसे भी बिलक़ीस की बेटे के लिये अपनी मर्ज़ी की दुल्हन लाने की ख्वाहिश पहले ही अधूरी रह गई थी। और अब पोते पोती की शक्ल देखने की उम्मीद भी पूरी होती नजर नही आ रही थी। इसीलिए जब भी किसी के यहाँ से बच्चे होने की खबर आती बिलक़ीस मायूस हो जाती और सारी भड़ास बिचारी मरियम पर निकालती।

रामदुलारी पहले इसी मोहल्ले में रहती थी। पर पिछले साल अपना मकान बेच कर वो दूसरे मोहल्ले में रहने लगी थी। बिलक़ीस उसे प्यार से दुलारी कहती और दुलारी बिलक़ीस को हमेशा आपा बुलाती। बिलक़ीस और दुलारी पड़ोसन होने के साथ एक दूसरे की हमदर्द भी थी। इसीलिए दोनों एक दूसरे को दुःख-सुख में हमेशा याद रखती थी। जब से बिलक़ीस ने दुलारी के यहाँ पोता होने की बात सुनी थी। दादी बनने की उसकी ख्वाहिश और भी बढ़ गई थी। इसीलिए उसके सिर पर आजकल बेटे की दूसरी शादी का भूत सवार था। उठते बैठते खाते-पीते अब बस ये ही रट लगाये रखती, मरियम उनकी इस बात पर वैसे तो कभी कोई जवाब नही देती और अगर गलती से कोई जवाब दे देती तो कई दिनों तक उसे खरी खोटी सुन्नी पड़ती। अक्सर वो आसिफ़ को उनकी अम्मी की ये बात बताती पर आसिफ हमेशा उसे बड़ी मोहब्बत से समझाता। “मरियम तुम अम्मी की बात का बुरा मत माना करो। तुम्हे तो पता है कि उन्हें बच्चो से कितना प्यार है। इसीलिए कभी-कभी अपने जज़्बातों पर काबू नही रख पाती है।”
“तो आसिफ इसमें मेरी क्या गलती है। उन्होंने जिस डॉक्टर को कहा मैं वहाँ गई। जिस हकीम को बोला उसकी कड़वी दवाई खाई। यहाँ तक के कई झोला छाप और मौलवी मुल्लाओं से भी ना चाहते हुए इलाज़ कराया। सिर्फ उनकी खुशी के लिए। फिर भी बच्चे नही हुए तो इसमें मेरा क्या कुसूर है। क्या मेरा दिल नही करता की मैं भी माँ बनू, मेरे भी बच्चे हो जो मुझे अम्मी कहे। मरियम की आँखों से आंसू झरने लगे।
“पागल क्यों दिल छोटा करती हो मैं हूँ ना तुम्हारे साथ तुम अम्मी की बात दिल से न लगाया करो वो जुबान की कड़वी जरूर है पर दिल की बहुत अच्छी है। तुम परेशान न हो मैं अम्मी से बात करूँगा।” आसिफ ने मरियम को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

दिन ऐसे ही बीतते रहे मरियम और आसिफ ने बहुत से डॉक्टर्स को दिखाया बहुत सारी जाँच कराई पर कोई फायदा नही हुआ। पर बिलक़ीस की पोते-पोती की चाहत उम्र के साथ-साथ और बढ़ती जा रही थी। और मरियम के लिए उसके ताने और तीखे हो गये थे। पर मरियम आसिफ़ की मोहब्बत की वजह से कुछ नही बोलती। शायद उसने भी वक़्त और हालात से समझौता कर लिया था। अब बच्चो के लिए मरियम की बेकरारी भी उतनी नही रही थी। आसिफ और बिलक़ीस के लाख कहने पर भी वो डॉक्टर के पास नही जाती। बिलक़ीस के बाँझ कहने पर उसकी आँखों से अब आंसू नही गिरते। नाजुक सी मरियम अब बहुत मज़बूत हो गई थी। या शायद होने का दिखावा करती थी। क्योंकि आसिफ की मोहब्बत हमेशा उसकी ढाल बन जाती थी। पर एक दिन आसिफ़ की बात सुनकर वो अंदर तक टूट गई। उसके सारे भर्म रेत की दिवार की तरह ढह गए।
“मरियम, देखो तुम्हे तो पता है कि मुझे अम्मी ने अब्बू की मौत के बाद कितनी मुसीबतो से पाला है। उनके और तुम्हारे सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नही है। अम्मी ने आजकल फिर से दूसरी शादी की जिद लगा रखी है। और तुम तो जानती हो। कि कितने दिनों से मैं अम्मी को टालता आ रहा हूँ। पर अब अम्मी ने खाना पीना भी छोड़ दिया है। और जिद लगा कर बैठी है कि जब तक मैं दूसरी शादी के लिए हाँ नही करूँगा वो खाना नही खायेगी। अब मैं अपना मुकदमा तुम्हारी अदालत मैं लेकर आया हूँ। तुम ही बताओ अब मैं क्या करूँ एक तरफ माँ की ममता है और दूसरी तरफ तुम्हारी मोहब्बत।” आसिफ ने मरियम के हाथो को थामते हुए कहा।
मरियम किसी बुत की तरह एकटक आसिफ का चेहरा देख रही थी।
“बोलो मरियम ” आसिफ ने मरियम की ख़ामोशी से परेशान होकर पूछा।
“क्या बोलूं आसिफ़ तुम्ही बताओ? क्योंकि इन्कार शायद तुम्हे पसन्द नही आएगा और हाँ मेरे होंटो से निकलेंगे नही। तो अब तुम ही बताओ आसिफ क्या बोलूं ? ” मरियम ने खुद को सँभालते हुए कहा।
“तुम्हे क्या लगता है मरियम की ये सब मेरे लिए आसान है। क्या ये मैं अपने लिए कर रहा हूँ?” आसिफ ने सवाल करते हुए कहा।
“तो फिर ठीक है कर दो हमेशा की तरह इंकार दूसरी शादी से”
“मरियम बहुत इंकार किया मैंने, पर अम्मी को तो तुम जानती हो की वो जिद की कितनी पक्की है।”
“तो कर लो शादी, फिर मेरी इज़ाज़त की क्या जरूरत है।” मरियम ने सपाट लहजे में कहा।
“समझने की कोशिश करो मरियम वो माँ है मेरी, उन्होंने पूरी जावनी मेरे ऊपर कुर्बान की है मरियम, मेरे ऊपर। मैं उनकी एकलौती औलाद हूँ। मुझसे उनका दुःख नही देखा जाता।” आसिफ ने मरियम को झंझोड़ते हुए कहा।
“उनकी तो एक औलाद है। जो कम से कम उन्हें माँ तो कह सकता है। पर मेरा, मेरा कौन है आसिफ? मुझे तो एक भी माँ कहने वाला नही है। मैं किस से जिद करूँ?” मरियम ने आँसूओ को रोकते हुए सवाल किया। कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया।
“मरियम तुम तो इतनी बेहिस और बेदर्द नही थी। ” आसिफ ने कमज़ोर सी आवाज़ में कहा। “अब तुम बेहिस कहो या बेदर्द पर मैं तुम्हे दूसरी शादी नही करने दूंगी। क्योंकि अगर बात अम्मी की ख़ुशी की होती तो मैं कभी तुम्हारी दूसरी शादी के लिए इंकार नही करती। पर बात है उनके विश्वास की उनकी ममता की उनकी सारी जिद बच्चों के लिए है। पर तुम्हारी दूसरी शादी से क्या उनकी ये चाहत पूरी हो सकेगी?” मरियम ने आसिफ़ की आँखों में आँखे डालकर चुभते लहज़े में पूछा।
“आसिफ़ मैं अपने दिल पर पत्थर रखकर तुम्हारी मोहब्बत बाँट लेती तुम्हे ख़ुशी ख़ुशी दूसरी शादी की इज़ाज़त दे देती। पर जिस वजह से ये सब हो रहा है क्या वो वजह खत्म हो सकेगी? क्या तुम अम्मी को दादी बनने का सुख दे सकोगे?” मरियम ने आँसूओ से भरी आँखों से आसिफ़ की तरफ देखते हुए पूछा। आसिफ बुत बना बैठा रहा।
“आसिफ तुमने ये बात हमेशा मुझसे छुपाई है कि कमी मुझमे नही तुम में है और तुम्हारी मोहब्बत की जमानत पर मैंने कभी तुम्हे जाहिर ही नही होने दिया कि मुझे ये पता है कि तुम कभी मुझे माँ नही बना सकते। पर आज तुम्हारी बातो ने मुझे बोलने के लिए मजबूर कर दिया। मैंने आजतक तुम्हे ये जाहिर नही होने दिया की वो सारी रिपोर्ट्स मैंने पढ़ी है। जिनमे साफ़ साफ़ लिखा है कि तुम कभी बाप नही बन सकते। फिर भी मैं तुम्हारी मोहब्बत में ये सोच कर चुप रही की तुम्हे कमतरी का एहसास न हो। अपनी ममता का गला उसी दिन घोट लिया था मैंने। अम्मी के और दुनिया वालो के ताने सुनती रही। सिर्फ तुम्हारी खातिर, हमेशा सोचती रही की शायद तुम खुद मुझे एक दिन ये सच बता दोंगे। पर तुम में शायद सच कहने की हिम्मत ही नही थी। हाँ तुम मुझे बेदर्द कह सकते हो आसिफ क्योंकि अब मुझे दर्द का एहसास नही होता। हूँ मैं बेहिस क्योंकि जिससे मैंने बेपनाह मोहब्बत की थी उसे शायद मुझ पर यकीन ही नही था।” मरियम बदहवास बोले जा रही थी और आसिफ बेदम सा बैठा सब सुन रहा था।
“और सुनो आसिफ ये सिर्फ दूसरी शादी की इज़ाज़त और इनकार का मसला नही। ये बात है औरत के सम्मान की .. उसके वजूद की .. उसकी अना की ..  इसलिए मैं तुम्हे इस शादी की कभी इज़ाज़त नही दे सकती। क्योंकि मैं नही चाहती की मेरी तरह, तुम्हारी दूसरी बीवी भी अपने माथे पर बाँझ का तमगा लगाकर अपनी सारी उम्र घुट-घुट कर काट दे।”
मरियम ने हिचकी लेते हुए कहा।
आसिफ़ को काटो तो खून नही। वो बदहवास सा बैठा मरियम को देख रहा था। और दरवाज़े पर खड़ी बिलक़ीस अपने बिखरते वजूद को संभालने की नाकाम सी कोशिश करते हुए जमीन पर ढह गई।