Sunday, October 2, 2016

हमसफ़र

"अम्मी क्यों ? आप खामा खा इतनी परेशान होती है। हो जाएगी मेरी शादी आप टेंशन न ले...। "अरे बेटी क्यों न लूँ टेंशन तेरी उम्र  की सब लडकियाँ अपने घर-बार की हो गई है। ओर बेटी  मैं तो माँ हूँ। मुझे फ़िक्र होती है। अल्लाह करे कल तुम उन्हें पसन्द आ जाए तो मैं शुकर की नमाज़ पढूंगी।" जैनब ने लंबी सांस लेते हुए कहा।
"बहुत मज़ा आता है आप को मेरी नुमाइश लगाते हुए।" उसने गुस्से से कहा।
"नुमाइश कैसी पगली ये तो रिवाज़ है और अच्छा ही तो है मिलकर पहले ही सारे मामले तय हो जाये बाद में कोई परेशानी नही होती है।"
"तो लगाती रहिये हर आठवे दिन मेरी नुमाइश जानवरो की तरह, कोई पूछेगी जरा चलके दिखाना ?  कोई बोलेगी,बाल खुले रखती हो या चोटी बनाती हो बेटी ? कमीनी सीधे ही पूछ ले बाल कितने लम्बे है। ऊपर से खाने पीने की चीज़ों पर नदीदो की तरह ऐसे टूटते है मानो कई दिन के भूखे है।" 
"बेटा ये सब करना पड़ता है और अब तुम इतनी भी जाहिल ना बनो।" 
"पर अम्मी आप को पता है इन रोज़-रोज़ के चक्करो में पूरे महीने का बजट गड़बड़ा जाता है। अब्बू की मुक्तसर तनख्वाह है। और पुरे महीने मैं देखती हूँ आप कैसे हलकान होती है एक-एक चीज़ के लिए...... ।" "रिदा गलत बात है बेटा ऐसे नाशुक्री नही भेजते अल्लाह का शुकर है दो वक़्त अच्छी रोटी खाते है।" 
"हाँ पता है मुझे, सब कुछ होने के बाद बात दहेज़ पर आ जाती है " उसने गुस्से से मुंह बनाते हुए कहा।
"अच्छा अपना ज्यादा खून न जला सब लोग बुरे नही होते अच्छे लोग भी दुनिया में है बेटा जो दहेज़ को तवज्जो नही देते।
 "ये जिन्हें आप अच्छे लोग कहती है न बस किस्से कहानियो में  ही मिलते है" 
"अच्छा बस अब ख़त्म कर अपनी ये बेहुदा तक़रीर,शकीला बोल रही थी के वे लोग सुबह जल्दी आएंगे। जाकर कुछ तैयारी कर ले और घर की साफ़-सफाई भी अच्छे से कर लेना।"
"ये शकीला खाला तो किसी दिन मरेगी मेरे हाथ से। ये ही लाती है रोज़-रोज़ नये रिश्ते, चटोरी कही की।"  "तौबा है रिदा शर्म करो बड़ी है वो तुम्हारी,जाओ अब यहाँ से जो मुंह में आता है बके जाती है।"

मुस्तकीम मियां डाकघर में बाबू  है। रिदा, सदफ फिर अली और आलम दो लड़की और दो लड़के चार औलाद है सब पढाई में मसरूफ है। रिदा सबसे बड़ी है अभी बी ए से फारिग हुई है और जैनब को उसकी शादी की फिक्र हो गई वैसे भी लोअर मिडिल क्लास में लड़कियों की शादी हमेशा से बड़ा मशलाह होता है। रिदा जॉब करना चाहती थी पर अम्मी को उसकी शादी की जिद्द है।  इसीलिये आये दिन कोई न कोई रिश्ता आता ही रहता है। और रिदा इन सब से परेशान हो जाती है।

"बाज़ी हमे आप की लड़की माशाल्लाह बहुत पसन्द है। एक मोटी सी खातून जो लड़के की माँ थी उसने समोसे को चटनी में डुबकी लगवाते हुए कहा।  "कमीनी तेरे से दस साल छोटी होगी मेरी अम्मी आयी कही से बाजी.......कहने वाली।" रिदा ने दिल ही दिल में दांत पीसते हुए कहा। "देखिये बाजी बस अच्छी शक्लो सूरत से तो घर नही चलता और भी बहुत कुछ  होता है जैसे खाना बनाना,कपडे धुलना सिलाई कढ़ाई वगैरह ये सब तो कर लेती हो न बेटा? अम्मी से मुखातिब होते हुए एक दूसरी खातून (जो लड़के की फुफ्फ़ो थी) ने मुझसे सवाल किया। "दिल तो किया बोल दूँ की बहु ढूंढ रही हो या नोकरानी पर अम्मी की आँखों ही आँखों में धमकी देख कर मैंने हाँ में गर्दन हिला दी।" "माशाल्लाह बहुत खूब मुझे अपने राहिल के लिए ऐसी ही बीवी चाहिए थी। बाजी हमारी तरफ से रिश्ता पक्का समझो बाकि अब आप के हाथ में है।" मोटी ने काजू कतली पर हाथ साफ़ करते हुए कहा।

"और राबिया माशाल्लाह हमारी रिदा ने बी.ए. भी किया है।" शकीला खाला जो अब-तक बस कोल्डड्रिंक और बाकि खाने की चीज़ों में ही मसरूफ थी पहली बार बोली और मुझे उनकी ये बात अच्छी लगी चलो कुछ तो ढंग की बात की इन्होंने मेरे बारे में। "देखिये जी हमे नौकरी तो करानी नही पढ़ी लिखी है सही है  पर अनपढ़ भी होती तो हमे कोई फर्क नही पड़ता हमे तो बस एक सलीकेमन्द बहु चाहिए। मोटी जिसका नाम अभी-अभी मुझे पता लगा कि राबिया है ने एक ही सांस में कोलड्रिंक के गिलास को गटकते हुए कहा।"
"दिल तो किया की मोटी के बाल नोच लू पर तहज़ीब और तरबियत आड़े आ गई।" अम्मी तो जैसे निहाल ही हुई जा रही थी उनकी तो दिली मुराद पूरी हो रही थी। "जी बहुत शुक्रिया आप ने हमारी बेटी को अपने घर की बहु बनने के काबिल समझा पर अगर सब कुछ तय करने से पहले लेन- देन की बात भी कर ले तो मैं समझती हूँ बेहतर रहेगा। वैसे तो अल्लाह के करम से हम से जो बन सकेगा हम देंगे पर फिर भी अगर आप की कोई ख्वाईश हो तो बताइये।" अम्मी ने मसनवी अपनी तरफ से दहेज़ की बात की। "देखिये बाज़ी हमारा राहिल माशाल्लाह बैंक में मैनेजर है। और हमारे घर में किसी भी चीज़ की कमी नही बस हमे तो आप की बेटी चाहिए बाकि जो भी आप अपनी बेटी और दामाद को देना चाहे हमे कोई मसला नही। " मुझे तो लगा था कि मोटी जरूर लंबी सी लिस्ट बना कर लायी होगी पर उसकी बात सुनकर मुझे यकीन नही हुआ और खुद अपनी सोच पर नदामत भी हुई।  क़ि मैं खामा खा इनके बारे में अनाप सनाप सोचे जा रही थी "
"अच्छा तो ठीक है अब आप लोग मशवरा कर के हमे खबर कर दीजियेगा  मेरी होने वाली सास ने बड़ी मुहब्बत से मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा। और बस अब इज़ाज़त दीजिये। अरे बातो-बातो में, मैं तो भूल ही गई अगर आप को ऐतराज़ न हो तो क्या में बच्ची की एक फोटो खींच लू ? "जी.......  जी क्यों नही" अम्मी से पहले शकीला खाला बोल पड़ी और उसने खटाक से मेरी फोटो अपने फोन में कैद कर ली।

अब्बू और चाचू ने लड़के और उसके घर वालो के बारे में काफी तहकीकात की और सब कुछ पसंद आने पर एक महीने बाद की शादी तय कर दी।  अब्बू ने कुछ अपने फण्ड और कुछ क़र्ज़ लेकर शादी की तैयारी शुरू कर दी लड़के वालो की तरफ से बस एक मांग थी कि शादी किसी अच्छे से मेर्रिज हाल में हो और खाने का इंतज़ाम भी अच्छा हो जो की कोई बड़ा मशला नही था। अम्मी और अब्बू ने अपनी हैसियत से बढ़ कर सब तैयारी की थी और वो मुतमईन थे कि चलो सब अच्छे से निपट जायेगा। पर अगर सब कुछ इतना आसान हो तो ज़िन्दगी इतनी मुश्किल न हो।

शादी से तीन  दिन पहले शकील खाला एक तूफ़ान लेकर आई  लड़के वालो ने कहलवाया था कि उन्हें कार चाहिए थी दहेज में। इस खबर ने हम सब के होश उडा दिए खुशी का माहौल पल में मातम में बदल गया। अब्बू की हालत बहुत बुरी थी जो कुछ था सब पहले ही खर्च कर दिया और अब जबकि शादी में तीन दिन बचे थे ये नामुमकिन सी मांग कैसे पूरी करेंगे। चाचू और अब्बू ने लड़के वालो से बात की पर उनका कहना था कि  उनका लड़का इतना काबिल है और समाज में उनकी काफी इज़्ज़त भी है अगर दहेज़ में कार  नही मिली तो उनकी क्या इज़्ज़त रह जाएगी। अब्बू ने काफी मिन्नतें की पर उन्होंने दो टूक लहजे में जवाब दे दिया कि अगर कार नही मिली तो वें बारात नही लाएंगे। बिरादरी में शादी के कार्ड बट चुके थे वक़्त पर बारात नही आई तो हमारी तो इज़्ज़त की धज्जिया  उड़ जाएँगी। अब्बू और अम्मी ये सोच सोच कर मरे जा रहे थे।

मेरी हालत ऐसी थी के काटो तो खून नही अब्बू और चाचू ने काफी भाग दौड़ की पर कुछ न हो सका आखिर थक हार कर घर को बेचने का फैसला किया गया। ये बात सुनकर मेरा मारने का दिल किया आज समझ में आया की लडकिया क्यों बोझ होती है क्यों उनकी पैदाइश पर लोग मातम करते है। मैंने अम्मी को साफ़ मना कर दिया।
"अम्मी मैं ये शादी नही करूँगी। मैं अपना घर बसाने के लिए अपने घर वालो के सिर से छत नही छीन सकती "
"पागल मत बनो रिदा अब्बू कुछ न कुछ  कर लेंगे बेटी।" "क्या कर लेंगे खुद को बेच देंगे।" आंसुओ का सेलाब था के रुकने का नाम ही नही ले रहा था।  फोन पर किये गए राहिल के बड़े बड़े वादे प्यार वफ़ा की बात सब तीर बनके दिल में चुभ रहे थे। "अम्मी में राहिल से बात करूँगी अभी " "पर.......  रिदा इस वक़्त.......  इतनी रात को और क्या बात करोगी बेटी तुम ? नही तुम परेशान न हो बेटी अल्लाह सब ठीक कर देगा अब्बू और चाचू लगे हुए है कुछ न कुछ हल जरूर निकल आयेगा।" "नही मुझे बात करनी है "  और राहिल का नंबर मिला दिया।  दूसरी  तरफ से कोई फ़ोन नही उठा रहा था उसने दोबारा ट्राई किया।
 हेल्लो.......  कौन....... रिदा तुम  क्या बात है इतनी रात को सब खैरियत "
"मुझे आप से शादी नही करनी आप बरात लेकर न आये हमारे यहाँ "
"यार ये कोई वक़्त है मज़ाक का हद करती हो तुम भी "
"मैं मज़ाक नही कर रही राहिल "
"क्या हुआ प्लीज मुझे बताओ तो सही क्यों ऐसी बहकी -बहकी बाते  कर रही हो। "
"अच्छा मैं बहकी बाते कर रही  हूँ और आपने क्या किया अगर कार मुझसे ज्यादा प्यारी थी तो पहले बताते ऐसे हमे दुनिया में जलील करने की क्या जरूरत थी। "
"कैसी कार क्या बोले जा रही हो  "
"ज्यादा भोले न बनिए आप को पता है मैं क्या बात कर रही हूँ।  वो ही कार जो अगर आप को हमने दहेज़ में न दी तो आप बारात नही लाएंगे।  जिसके लिए मेरे अब्बू हमारा घर बेच रहे है। " आँसुओ  के साथ सिसकी निकल गई। दूसरी तरफ सन्नाटा पसर गया। "तो बराए करम आप बारात न लाये। मुझे नही करनी आप से शादी" उसने मुश्किल से सिसकीयां रोकते हुए कहा।  दूसरी तरफ अब भी सन्नाटा था कोई जवाब नही और टू........ टू  की आवाज़ के साथ फ़ोन कट गया।


"अम्मी दहेज़ में कार की डिमांड आप ने की "
"क्या हुआ राहिल बेटा ?"
"अम्मी हाँ या ना में जवाब दीजिये आपने दहेज़ में कार की मांग की है या नही ? "
"हाँ की है और वें राजी भी है बेटा देने के लिए " राबिया बेगम ने खुश दिली से जवाब दिया।
"हाँ बहुत खुश है और इसी ख़ुशी में अपना घर बेच रहे है" उसने तन्ज़िया लहज़े में कहा।
"अम्मी क्या कमी है हमारे पास क्यों आपने उनसे कार की मांग की ?"
"बेटा तुम काबिल हो आला तालीम हो समाज में इज़्ज़त है तुम्हारी और हमने तुम्हारी परवरिश में कोई कमी भी तो नही की इस लिहाज़ से हमारे भी कुछ अरमान है "
"तो वो अरमान आप मुझसे पूरे कीजिये यूं  मेरा सौदा करके नही,आपने मुझे तालीम दी मुझे काबिल बनाया इसमें रिदा की फॅमिली का क्या फायदा सब के माँ बाप अपने बच्चो के लिए ये सब करते है। आप ने क्या नया किया अम्मी आप मुझे बोलो आप को क्या चाहिए, मैं आप को वो सब ला कर दूंगा ऐसे दहेज़ मांग कर आप किसी को मज़बूर नही कर सकती।"
"राहिल समझने की कोशिश करो बेटा समाज में हमारी इज़्ज़त है लोग क्या कहेंगे तुम्हारे दोस्त क्या बोलेंगे की राहिल को ससुराल से कुछ नही मिला। "
"अम्मी मुझे लोगो की परवाह नही वो क्या कहते है आप अभी रिदा के घर फोन करके उन्हें कहे की हमे कुछ नही चाहिए "
"मैं ऐसा नही करूँगी। और तुम्हे उनकी इतनी फिक्र है मेरे जज़्बातो की मेरी इज़्ज़त की मेरे अरमानो की कोई कदर नही राहिल "
अम्मी बात इज़्ज़त की नही इंसानियत की है आप ऐसे मुझे जज़्बाती होकर ब्लैकमेल न करे। और प्लीज इस तरह की बाते करके आप मुझे मेरी नज़रो में गिरा रही है। मुझे कार या दहेज़ नही एक हमसफ़र चाहिए जो मेरे दुःख सुख में मेरे अच्छे बुरे में मेरा साथ निभाए जो मेरी इज़्ज़त करे मेरे माँ बाप का अहतराम करे नाकि की किसी के अरमानो और मज़बूरी के सौदे में मिली कोई अदना सी चीज़। अगर आप ये काम नही कर सकती तो में खुद उन्हें फोन करता हूँ।"
"मुझे ये हरगिज़ मंज़ूर नही और अगर तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हारी शादी में शामिल नही हूँगी।  राबिया बेगम ने आखरी दांव चला "
"ठीक है जैसी आप की मर्ज़ी। " और राहिल ने फोन मिला दिया
"हेल्लो........ अस्सलाम वालेकुम मुस्तकीम अंकल में राहिल बोल रहा हूँ। आप बिलकुल फ़िक्र न करे हम टाइम से बारात लेकर आयेंगे और हमे कार या किसी भी चीज़ की कोई जरूररत नही बस आप शादी की तैयारी करे अल्लाह हाफिज।" और राबिया बेटे का मुंह ताकती रह गई।

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