(हास्य-व्यंग्य | पृष्ठभूमि: मुस्लिम समाज)
मोहल्ला “चिकनवाला चौक” सुबह से हलचल में था।
हाजी समसुद्दीन की पान की दुकान पर भीड़ जमा थी। वजह? मोहल्ले के ‘अंतरराष्ट्रीय एजेंट’ बशीर मियां फिर से सऊदी भेजने वाला प्रोजेक्ट लेकर आए थे।
"अबे बशीर! पासपोर्ट तो लगेगा ना?" – रईस ने पूछा।
बशीर मियां ने बीड़ी सुलगाई, एक गहरी सांस ली और कहा –
"अबे गंवार! अब जमाना बदल गया है, अब पासपोर्ट की जगह राशन कार्ड से भी काम चल जाता है।"
भीड़ में खुसुर-पुसुर शुरू हो गई।
"सच कह रहे हो बशीर भाई?" – कलीम ने पान थूकते हुए पूछा।
"भाई, अल्लाह गवाह है! खुद क्राउन प्रिंस ने छूट दे दी है –
‘जो चावल खाता है, वही हमारे यहाँ काम करेगा।’"
लोगों की आँखों में चमक आ गई।
बशीर मियां ने समझाया –
"बस दस हजार रुपए जमा करो, एक फोटो दो, और राशन कार्ड की कॉपी – बाकी सब हम देख लेंगे।"
यह सुनते ही मोहल्ले के बेरोज़गारों में नई जान आ गई।
मुजफ्फर, जो अब तक दूल्हे का सेहरा पहनने के ख्वाब में था, बोला –
"अब्बू कहते थे रोज़गार निकले तो शादी की सोचूंगा… अब तो दो-दो बीवी ले आउंगा!"
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अगले दिन मस्जिद के बाहर "ओपन इंटरव्यू" रखा गया।
एक टेबल, एक गद्दा, और पीछे एक बैनर टंगा था –
> “राशन कार्ड रखो, रिजर्वेशन लो – सऊदी तुमको बुला रहा है।”
सवाल भी दिलचस्प थे:
> "तुम्हारे राशन कार्ड पर कितने यूनिट हैं?"
"पिछली बार कितनी बार केरोसिन लिया था?"
"चावल ज्यादा खाते हो या आटा?"
जिसने भी दिल से जवाब दिया, उसे “फाइनल सेलेक्शन” का ठप्पा मिल गया।
किसी ने बकरा बेच दिया, किसी ने बीवी के गहने – दस-दस हजार जमा हो गए।
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इसी बीच मोहल्ले में नई चर्चा शुरू हो गई –
"ये सब मोदी जी की विदेश नीति का कमाल है!" – चचाजान ने कहा।
"पहले वीज़ा-पासपोर्ट बनवाने में साल लग जाता था… अब राशन कार्ड से ही विदेश जाया जा सकता है!"
"देश बदल रहा है – पहले खाने को राशन चाहिए था, अब विदेश जाने को!" – दुकानदार ने चुटकी ली।
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मगर हर मोहल्ले में दो पढ़े-लिखे जरूर होते हैं –
यहाँ थे नसीम इंजीनियर और फारूक M.A. (इंग्लिश)।
उन्होंने बशीर मियां से इश्तहार का पन्ना मांगा।
गौर से पढ़ा, और माथा पकड़ लिया –
“सऊदी की भाषा अरबी की जगह ‘अरवी’ लिखी थी।”
“तनख्वाह 1500 रियाल की जगह लिखा था – '15,000 भारतीय रुपए + दो टाइम चाय'।”
“और सबसे बड़ी बात – पासपोर्ट की जगह राशन कार्ड से विदेश भेजा जा रहा था!”
नसीम ने पूछा –
"बशीर भाई, ये 'अरवी' कौन सी भाषा है?"
बशीर मुस्कराया –
"अबे तूने अरवी की तरकारी नहीं खाई क्या? वही वाली!"
फारूक बोला –
"भाई, तनख्वाह रियाल में होनी चाहिए, रुपए में क्यों?"
बशीर झल्लाया –
"कम्पनी भारतीय है मियाँ! काम सऊदी में करती है, तनख्वाह भारत में देती है। और पासपोर्ट-वासपोर्ट सब पुराने सिस्टम की चीजें हैं – अब राशन कार्ड से ही बायोमेट्रिक हो जाता है!"
लोग हँसी रोक न सके, मगर कुछ अब भी श्रद्धा में डूबे थे –
"इतनी जानकारी है भाई को, ज़रूर अंदर का लिंक होगा!"
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पर एक हफ्ते बाद… बशीर मियाँ ग़ायब!
फोन बंद, दुकान बंद, मोहल्ला फिर उसी चाय, पान और बेरोज़गारी की दुनिया में लौट आया।
अब हाजी समसुद्दीन की दुकान पर एक तख्ती टंगी है:
> “मोदी है तो मुमकिन है।”
🔸 समाप्त 🔸