Saturday, August 28, 2021

मेरे बचपन का स्वतंत्रता दिवस 🇮🇳🇮🇳


बचपन पैदल चलता है, हर कदम हर मौड़ पर गुजरती हर चीज़ को ध्यान से देखता है महसूस करता है और उसे खुलकर जीता भी है इसलिए शायद बचपन की यादें हमेशा दिमाग की तिजोरियों में महफूज़ रहती है। बात उन दिनों की है जब हर खुशी, त्यौहार केवल मोबाइल की सेल्फी या व्हाट्सएप- फ़ेकबुक के स्टेटस मात्र नही थे, तीज त्यौहार पर एक दूसरे को व्हाट्सएप पर मैसेज भेजकर नही बल्कि गले मिलकर मुबारकबाद दी जाती थी। उन दिनों में छब्बीस जनवरी और पन्द्रह अगस्त की ख़ुशी ईद या दीपावली जैसे त्योहारों की खुशी से कम नही  होती थी।

सफ़ेद आर्ट के पन्ने पर बड़ी नफ़ासत से एक दिन पहले RG के रंगों से तिरंगा बनाकर साफ-सुतरी लकड़ी पर आटे की लई से बडे सलीके से चिपकाया जाता था, हफ़्तों पहले कागज पर बड़ी मेहनत से आज़ादी के नारे लिख-लिखकर याद किये जाते थे और स्कूल की छुट्टी से पहले जोर-जोर से बोलकर उनकी प्रेक्टिस भी की जाती थी।

फिर आती थी वो सुबह जिसके इंतेज़ार में रात भर नींद नही आती आई थी......
नीला कुर्ता सफेद पाजामा (जिसे नील देकर मज़ीद चमकाया होता था।) और उनके नीचे लखानी या बाटा की बुरुश से मनज़ी हुई हवाई चप्पल और हाथ मे तिरंगा झण्डा लेकर जब घर से निकलते थे तो आँखों की चमक और दिल की धड़कन खुद ब खुद बढ़ जाती थी। 

सुबह स्कूल की प्रभातफेरी में चिल्ला-2 पूरे गाँव में आज़ादी के नारे लगाते हुए घूमते थे, स्कूल में वापस आकर ध्वजारोहण होता था और सब एक सुर में जन-गण-मन गाते थे। जन-गण-मन उन दिनों सभी के मुँह जुबानी याद रहता था कुछ चंद एक किताबों के पिछले कवर पर वन्देमातरम भी छपा रहता था जिसे पढ़ने से उन दिनों ना तो ईमान से ख़ारिज होने का डर था ना ही पढ़ने से देशभक्ति का कोई प्रमाण पत्र अलग से मिलता था।

स्कूल में छोटे- मोटे प्रोग्राम भी होते थे जिनमें नज्म, कौमी तराने और एक आद हँसी-मज़ाक का प्रोग्राम होता था। इन सबके बाद स्कूल के हेडमास्टर या कोई अन्य मोअज्जि मेहमान देश की आज़ादी के बारे में छोटा सा भाषण देते थे।

आख़िर में गुलाबी लिफाफे में मुट्ठी भर गुलदाना मिलता था जिसे थोड़ा सा चखकर बाक़ी पेंट या कुर्ते की जेब मे रखकर घर ले जाते थे। ~कौशेन🇮🇳

अगर दरिया में रहना है बहाना सीख मौजों से,

ख़स-ओ-ख़ाशाक की मानिंद बह जाने से क्या होगा।

इसी एहसास से पैदा हुई है फ़िक्र-ए-आजादी,

क़फ़स में इस तरह घुट घुट के मर जाने से क्या होगा।।

ख़स-ओ-ख़ाशाक-घास, फूँस
कसफ़-पिजरा

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